बिलकीस रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट का इम्तेहान

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बिलकीस रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट का इम्तेहान

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! तीन मार्च 2002 को गुजरात के दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में बिलकीस बानो नाम की उस वक्त 21 साल की पांच महीने की हामिला (गर्भवती) खातून की इज्तेमाई आबरूरेजी (सामूहिक बलात्कार) करने और बिलकीस के खानदान के एक दर्जन से ज्यादा अफराद को कत्ल करने के जुर्म में उम्र कैद की सजा पाए ग्यारह मुजरिमीन को गुजरात सरकार के जरिए रिहा किए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. अब इस मामले के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सख्त इम्तेहान की सूरतेहाल पैदा हो गई है. जिन ग्यारह मुजरिमों को जेल एडवाइजरी कमेटी के जरिए छोड़ा गया है उन्हें सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने उम्र कैद की सजा दी थी जिसपर बाद में बाम्बे हाई कोर्ट ने भी अपनी मोहर लगा दी थी. जिस जेल एडवाइजरी कमेटी ने उन्हें रिहा करने की सिफारिश की उसमें बीजेपी के पांच मेम्बरान शामिल थे. एक मेम्बर मुरली मूलचंदानी गोधरा ट्रेन जलाए जाने के मामले में गवाह भी रहे हैं. कमेटी में शामिल गोधरा से बीजेपी के मेम्बर असम्बली सी के राउल जी ने बाद में कहा कि मुजरिमीन ब्राहमण हैं जो ‘संस्कारी’ होते हैं उन्हें जेल में रखना मुनासिब नहीं है. उन्होने यह भी दावा किया कि कमेटी ने इत्तेफाक राय से सभी ग्यारह लोगों को रिहा करने की सिफारिश की. सवाल यह है कि जब सरकार ही उन्हें छोड़ने का फैसला कर चुकी थी तो कमेटी में शामिल अफसरान की इतनी हिम्मत कहां कि उसकी मुखालिफत करते. इन ग्यारह मुजरिमीन की रिहाई से इतना खौफ पैदा हो गया कि बिलकीस कहीं छुप गई हैं. उनके गांव रणधीर पुरा में रहने वाले सैकड़ों मुसलमान गांव छोड़कर रहीमाबाद रिलीफ कालोनी में चले गए हैं.

बिलकीस के मुजरिमीन को रिहा किए जाने के बाद से पूरे मुल्क में इंसाफ पसंद लोगों खुसूसन ख्वातीन में जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है. दिल्ली के जंतर-मंतर और अहमदाबाद समेत देश के कोने-कोने में लोग मुजाहिरा करते और धरना देते देखे गए. इन हंगामों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कोई बयान तक नहीं आया. बयान आए भी कैसे पार्टी और उसकी गुजरात सरकार ने बाकायदा एक सोचे समझे मंसूबे के तहत इंतेहाई घिनौना और भयानक जुर्म करने वालों को रिहा कराया है. सीपीएम लीडर सुभाषिनी अली, लखनऊ युनिवर्सिटी की वाइस चांसलर रही प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा और सहाफी रेवती लाउल ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अदालत में तेइस अगस्त को एक अपील दायर करके इस मामले की जल्द सुनवाई करने और मुजरिमीन को वापस जेल भेजने की दरख्वास्त की, टीएमसी की लोक सभा मेम्बर महुआ मोइत्रा ने अलग से एक अपील दायर की है. अदालत ने कहा कि वह इस मामले को देखेगी. अब सुप्रीम कोर्ट का सख्त इम्तेहान है कि वह इंसाफ के साथ खड़ा होता है या गुजरात हुकूमत के साथ.

बिलकीस के गांव रणधीरपुरा में रह रहे उनके चचा अय्यूब ने बताया कि जब सभी ग्यारह लोग छूट कर आए तो उनके जुलूस में बाकायदा डीजे बज रहा था, लाखों रूपए के पटाखे छुड़ाए गए और नारेबाजी की गई. जगह-जगह उन लोगों को हार-फूल पहना कर इस्तकबाल किया गया. मुसलमान इतने खौफजदा हो गए कि वह गांव छोड़कर भाग निकले. गांव की चैबीस साल की सुल्ताना कहती हैं कि यह मुजरिम पहले पेरोल पर भी छूट कर आ चुके हैं. उस वक्त मुसलमान इसलिए खौफजदा नहीं हुए थे कि उन्हें पता था कि यह लोग पेरोल पर छूट कर आए हैं और दोबारा जेल चले जाएंगे. लेकिन अब तो वह सब पूरी तरह आजाद हो गए हैं. अब वह फिर वही हरकतें कर सकते हैं जो उन्होने 2002 में की थी.

याद रहे कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा में हुए शर्मनाक ट्रेन हादसे के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर मुस्लिम मुखालिफ दंगे भड़के थे. दंगों में कई हजार लोग मारे गए थे. हालांकि सरकार ने मरने वालों की तादाद तीन हजार से कम बताई थी. दंगा गांव-गांव फैला तो लोग भागने लगे, बिलकीस और उसके कुन्बे के लोग भी अपना गांव छोड़कर भागे, दरिंदों ने उनका पीछा किया तो लिमखेड़ा तालुके के एक खेत में वह सब छुप गए. दरिंदे वहां पहुंचे, उन्होेंने बिलकीस और उसकी वालिदा समेत कई ख्वातीन की इज्जत लूटी, सात लोगों को मौके पर ही कत्ल कर दिया, आठ लोगों को बाद में मारा गया. उस वक्त बिलकीस पांच महीने की हामिला (गर्भवती) थी और उसकी तीन साल की बच्ची सालेहा साथ में थी. वहशी दरिंदों पर नफरत का जहर ऐसा चढा था कि उन्होंने बिलकीस की आंखों के सामने ही तीन साल की बच्ची को जमीन पर पटख-पटख कर मार डाला. गुजरात पुलिस ने मामले में ठीक से कार्रवाई नहीं की तो सुप्रीम कोर्ट ने मामला सीबीआई को सौंप दिया. सीबीआई ने रिपोर्ट पेश की और मुल्जिमीन की शिनाख्त की, फिर भी यह मसला रहा कि क्या गुजरात की किसी अदालत में यह मामला ठीक से चल सकता है. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने ही य मामला मुंबई मुंतकिल कर दिया. 21 जनवरी 2008 को सीबीआई के स्पेशल अदालत के जज यू डी साल्वी ने मुल्जिमीन को कुसूरवार ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुना दी. 2018 में बाम्बेे हाई कोर्ट ने सभी ग्यारह मुजरिमीन की सजा बरकरार रखी और सीबीआई अदालत का वह फैसला भी उलट दिया जिसमें सुबूतों की कमी की बुनियाद पर सात मुल्जिमीन को बरी कर दिया था.

सजायाफ्ता मुजरिमों में शामिल राधे श्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी और यह कहा कि उसने पन्द्रह साल की सजा मुकम्मल कर ली है इसलिए सरकार की माफी की पालीसी के मुताबिक उसकी रिहाई कर दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मामला गुजरात सरकार को भेज दिया कि वह अपनी सतह से इस मसले पर गौर करे. बस गुजरात हुकूमत को मौका मिल गया. सरकार ने एक जेल एडवाइजरी कमेटी बना दी जिसमें पार्टी के दो मेम्बरान असम्बली समेत पांच लोगों को शामिल कर दिया. कमेटी में गोधरा कलेक्टर, एक मजिस्ट्रेट और दीगर दो अफसरान को भी शामिल किया गया. गोधरा से बीजेपी के मेम्बर असम्बली सी के राउल जी, कलोल की मेम्बर असम्बली सुमन बेन चैहान, गोधरा नगर निगम में बीजेपी के कारपोरेटर रहे मुरली मूलचंदानी, बीजेपी खातून शाखा की स्नेहा बेन भाटिया और बीजेपी स्टेट एक्जीक्यूटिव के मेम्बर सरदार सिंह बारिया पटेल को सोशल वर्कर के नाम पर शामिल कर दिया गया. इस कमेटी ने शैलेष भटट, राधेश्याम शाह, मितेश भटट, विपिन जोशी, केशर भाई वोहनिया, बांका भाई वोहनिया, रमेश चांदना, प्रदीप मोढडिया, राजीव भाई सोनी, गोविंद नाई और जयवंत नाई की सजा माफ करते हुए उन्हें जेल से रिहा करने का फैसला कर दिया. पन्द्रह अगस्त को आजादी की पचहत्तरवीं सालगिरह के मौके पर लाल किले की फसील से तकरीर करते हुए वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने ख्वातीन का एहतराम और इज्जत करने पर बड़ा जोर दिया था तकरीर करके मोदी अपने घर भी नहीं पहुंच सके थे कि उनकी गुजरात सरकार ने सभी ग्यारह मुजरिमों को रिहा कर दिया.

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