भारत और मोदी के उत्थान में व्युत्क्रमानुपाती संबंध है !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

भारत और मोदी के उत्थान में व्युत्क्रमानुपाती संबंध है !

डा  रवि यादव

देश शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य , व्यापार , अर्थव्यवस्थाऔर सामाजिक मोर्चे पर बेहद गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर संकलित और प्रकाशित होने वाले महत्वपूर्ण आँकड़े या तो प्रकाशित नहीं किए जाते या फिर जो आँकड़े आते है वे दिन व दिन ख़राब होती आर्थिक सामाजिक स्थिति की और इशारा कर रहे होते है. अंतराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा प्रकाशित आँकड़ो में सभी लाभकारी सूचकांकों - मानव विकास, ख़ुशहाली , साम्प्रदायिक सौहार्द , स्वास्थ्य , मानवाधिकार, प्रेस फ़्रीडम , लिंग समता, डेमोक्रेसी,सरकारी नीतियों की पारदर्शिता में  देश की स्थिति हर साल बद से बदतर होती जा रही है तो अलाभकारी सूचकांकों भ्रष्टाचार व भुखमरी में भारत की रैंकिंग शुरू के देशों में होती है.

सरकार की पक्षपात पूर्ण आर्थिक नीति के परिणाम स्वरूप आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है .  आज़ादी के समय ब्रिटिश राज में देश के 10 फ़ीसदी अमीरों के पास देश की कुल सम्पत्ति की 50 फ़ीसदी थी . आज़ाद भारत में अपनाई गई समाजवादी नीतियो से यह हिस्सा 1980 में 37 फ़ीसदी हो गया था . नई बाज़ार व्यवस्था को अपनाने से 1990 से यह बढ़ने लगा और 2014 से अपनाई जा रही एकपक्षीय भेदभाव पूर्ण नीतियों के कारण अब सिर्फ़ 1 फ़ीसदी अमीरों के पास देश की कुल सम्पत्ति का 77फ़ीसदी हिस्सा है. जिस तरह एयर पोर्ट , रेल , शिक्षा , ऊर्जा से सीबरेज ट्रीटमेंट प्लांट और कोयले की दलाली सिर्फ़ एक व्यापारी के पास जा रहे है उससे मुँह काला होने की आशंका और आने वाली स्थिति की भयावयता का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है .आर्थिक ग़ैरबराबरी अंततः स्वास्थ्य शिक्षा में पहुँच के अवसर के माध्यम से सामाजिक ग़ैरबराबरी को बढ़ाती है शायद उन्ही हालातों को रेखांकित करते हुए जनकवि अदम गौंडवी ने लिखा था –

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नासाज़ है.

दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है.

क्रोनी कैपिटलिस्म के अलावा आर्थिक नीतियो की अनिश्चितता / अनिरंतरता दूसरी बड़ी मुसीबत है , यह पूँजी और कारोबार की लागत बढ़ाती है , ख़राब और उलझन भरे क़ानून और उनमें रोज़रोज़ बदलाव , मनचाही रियायतें ,नियमों की असंगत व्याख्याएँ जिनसे पैदा होने वाले क़ानूनी विवाद ....उसके बाद नया निवेश तो क्या आएगा पुराना ही फँस जाता है .....यें मेरी व्याख्या नहीं और ना ही किसी कम्यूनिस्ट या कांग्रेसी की .....नहीं किसी मुसलमान या ईसाई का ऐसा कथन है और न ही किसी देशद्रोही या हिंदूविरोधी ने ऐसा कहा है यह किसी विशेष विचारधारा से प्रेरित अर्थशास्त्री की नसीहत भी नहीं है । यह तो पिछले वर्षों में भारत सरकार की आर्थिक समीक्षा में छपा है जिसमें से नए वर्ष का बजट निकलता है.

तो क्या कहा जाय कि सरकार के एक हाथ को दूसरे हाथ की ख़बर नहीं है या संतोष किया जाय कि चलो  एक हाथ तो हक़ीक़त से बाख़बर है ।

पिछले आठ साल में एक भी निर्णय ऐसा नहीं जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा देने और माँग प्रोत्साहित करने वाला हो. आज भी देश की आधी से अधिक जनसंख्या कृषि और पशुपालन पर निर्भर है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में हमेशा से अदृष्य बेरोज़गारी रही है नोटबंदी और कोरोना ने इस समस्या को और भी गम्भीर बना दिया , उसपर एमएसपी / उचित मूल्य न मिलने से पहले ही परेशान किसान के दूध उत्पादों पर जीएसटी उनकी आय रोज़गार और माँग में कमी ही करेगा . लेकिन सरकार बहादुर आठों पहर बेख़ुदी में है और उनका कार्यालय देश को यूएसए, यूके और सिंगापुर की क़तार में बराबरी से खड़े होने की देशवासियों को बधाई दे रहा है. 

25 जुलाई को वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने एक प्रश्न के लिखित जवाब में लोकसभा में बताया कि भारत सरकार की देनदारियाँ वर्ष 20-21 के 138.88 लाख करोड़ से बढ़कर इस वर्ष 155 .33 लाख करोड़ हो गई है. यह पिछले वर्ष से 12 प्रतिशत अधिक है व वर्ष 2014 के 54 हज़ार करोड़ से तीन गुना अधिक है. 2014 से रसोई गैस की क़ीमत 2.5 गुना, अप्रत्यक्ष कर दो गुना , पेट्रोलियम उत्पाद 1.5 गुना बढ़ जाने के बाद और एक भी नया पीएसयू न बनाए जाने व पुराने अनेक के निजी हाथों को दे देने के बाद भी क़र्ज़ का बढ़ना घोर वित्तीय कूप्रबंधन को दर्शाता है और भारत की दयनीय होती अर्थव्यवस्था का द्योतक है.

दोस्तवाद , नीतियो में निरंतरता की कमी , बेख़ुदी में लिए गए मनमाने आय , रोज़गार , विकास विरोधी फ़ैसलों के कारण देश में कारोबारी प्रतियोगिता और अवसर की समानता ख़त्म होने के कारण सितम्बर 2015 से सितम्बर 2021 के बीच नौ लाख लोगों ने भारत की नगरिकता त्याग कर अन्य देशों की सदस्यता ली है, साल 2021 में ही एक लाख 68 हज़ार लोगों ने “मेरा भारत महान “ से किनारा कर लिया. ये देश के सुपर रिच थे जिनमें हज़ारों ऐसे कारोबारी थे जो देश में निवेश करते तो देश में रोज़गार और आय को बढ़ाने में मदद कर सकते थे.अब इतनी बड़ी संख्या में धनाढ़्य पलायन कर जिस भी देश में बसेंगे वहाँ डंका तो बजेगा मगर वह डंका भारत की बदहाली और बदहाली के लिए ज़िम्मेदार व्यवस्था की नाकामी का और मतदाताओं के धार्मिक नशे में होने का . यह भी एक बिडम्बना ही है कि भारत आर्थिक- सामाजिक रुप से कमजोर होता गया ,मोदी जी  राजनीतिक रुप से उतने ही मजबूत, दोनों के उत्थान के बीच मजबूत व्युत्क्रमानुपाती संबंध अभी तक बरकरार है.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :