सियासी इफ़्तार और मुसलमान

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

सियासी इफ़्तार और मुसलमान

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

रमज़ान में इफ्तार की सियासत खूब होती है. हालांकि रमज़ान शुरू होने के साथ ही मुसलमानों का एक तबका शिद्दत से इस सवाल को उठाता है कि सियासी इफ्तार से बचा जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. देश के कई हिस्सों में इन दिनों सियासी इफ्तार का जलवा है. कोई सियासत में पीछे नहीं रहना चाहता. लेकिन दिलचस्प यह है कि जिन पर क़ौम की राह दिखाने की ज़िम्मेदारी है वे उलेमा हज़रात भी बहुत लहक कर ऐसे इफ़्तार में शिरकत करते हैं. दुआ भी मांगते हैं. उलेमाओं में भी सियासी लीडरान के साथ तसवीरें खिंचवाने का एक अलग तरह का जनून रहता है. कोई मना नहीं करता ऐसे इफ़तार पार्टियों में जाने से. यह ठीक वैसा ही है जैसा चैनलों पर उलेमा दिखाई देते हैं और टीवी बहसों में हिस्सा लेकर मज़हब की ऐसी-तैसी करते हैं.

मुसलमानों में भी इफ़्तार में शिरकत करने की होड़ लगी रहती है. कुर्ता टाइट कर पहुंच जाते हैं. नेताओं के साथ तसवीरें खिंचवाते हैं (यह बात मुझ पर भी कुछ-कुछ लागू होती है. कभी-कभार इस तरह की इफ़तार पार्टी में मैं भी जाता रहा हूं. लेकिन यह भी बता दूं कि इस तरह की इफ़्तार पार्टी में बहुत कम जाना हुआ है. शायद अब तक की जिंदगी में बमुश्किल दस बारह ही.) और फिर सोशल मीडिया पर ठसक से डालते हैं. फेसबुक पर मेरे कई मुसलिम दोस्तों ने अपील की थी कि इस तरह के इफ़्तार से दूर रहें. लेकिन मुसलमानों का ज़मीर अब मुर्दा हो चुका है. वे इस तरह की इफ़्तार पार्टियों में शामिल होकर शान समझने लगे हैं. 

रोज़ा भले न रखें लेकिन इफ़्तार पार्टियों में जाने की होड़ मची रहती है. कुछ चेहरे तो ऐसे हैं जो हर इफ़्तार पार्टी में नज़र आ जाते हैं. रमज़ान निपट गया. इफ़्तार पार्टियां भी अगले साल के लिए लपेट कर किसी तहख़ाने में रख दी जाएंगी और मुसलमान झुनझुना बजाते हुए अगले साल का इंतज़ार करेंगे. सियासी इफ़्तार पार्टियों पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन लगे तो कैसे. ख़ुद भी सियासत में हूं. सियासी पार्टी से वाबिस्ता हूं. हम तो नहीं चाहते हैं कि इफ़्तार का आयोजन सियासी दल करें. इस साल इसका ध्यान भी रखा. अगले साल देखते हैं क्या होता है.


  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :