हम आपका नाम नही जानते

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हम आपका नाम नही जानते

डीयर  देवी जी ! 

चंचल 

  हम आपका नाम नही जानते , असूचित मूढ़ हूँ , जगत गति से अनजान , अख़बार देखते ही आँख गड़ने लगती है , कचरे का डिब्बा गंहाता है , शहर त्यागी हूँ , आते जाते अनजाने में मिलने वाली सूचनाए करोना ने प्रतिबंधित कर दिया है .  बोलना और  दुश्वार है , जब से सरकार का ख़ौफ़िया एलान हुआ है क़ि  डर कर जीने का युग शुरू हो चुका है , मुह पर खोंथा बांधो , नाक से साँस मत लो , संभ्रांत नागरिक की तर्ज़ पर अपने तजुर्बे को दूर छोड़ आओ .  तब से ही देवी जी ! हमने डरना सीख लिया है .  असमय बधिया किए गये शोहदे , लबे  सड़क  सलीका बाँट  रहे हैं ,  खुद पर आज़माए की गारंटी देकर मूताचमन और गोबर औषधि का खुला प्रदर्शन हो  रहा है .  इस विवेकी समाज से भागा , भगोड़ा नागरिक हूँ , देवी जी ! 

    कल किसी परसंतापी शुभेक्षु ने , अपने जलते दिल के अंगारे पर हमे भी घसीटने की गरज से , आपकी तस्वीर भेज दी - इसे देखो , इसे सुनो , इसे सूँघो , इसे महसूस करो , तब पता चलेगा तुम  कहाँ खड़े हो .  मुदित मन से आपको देखा .  अछा लगा .  

तमाम पुरुषों के बीच एक सम्भ्रांत महिला झक्क सफ़ेद  लिबास में बेलौस  खड़ी है .  सफ़ेद रंग से खादी का भ्रम हुआ .  आज जब हिजाब , पर्दा ,  घूँघट जेरे बहस है , खुला चेहरा  , अच्छा लगा .  लेकिन जब तस्वीर को चलाने फिराने लगा तो आपकी तस्वीर तकलीफ़ देने लगी .  बुलडोज़र की लम्बी बाहों से नोचे जा रहे इंसानी घरौंदे , थके माँदे  काम से लौटे मज़दूरों के बिखेरे जा रहे घोंसले , और आपकी आवाज़ .  उफ़्फ़ ! लगा सीमा पर फ़तह हो  रही है , बढ़ो , फाटक टूटा , ये दीवार गिरी , क्या आवाज़ थी  मुह से फ़ेच्कुर आ  रहा था , आप हाँफ रही थी , लेकिन उत्साह की कमी नही थी .  बीच  बीच में आप  चुभांकर चुभांकर बोल  रही थी .  मन टूट  गया .  ग़ुस्सा आया अपने दोस्त पर जिसने यह क्लिपिंग भेजी थी / कोई गुनगुना  रहा था - 

     सो  रहा था चैन से , ओढ़े कफ़न मज़ार में 

     फिर आ गये सताने , किसने पता बता दिया .  

देवी जी ! आप जिस चैनल से हैं , प्रकारांतर से कभी हमारा भी सम्बंध उससे  रहा है .  एसपी , कमर वहीद  नकवी , राम कृपाल हम सब एक  ही  हुज़रे के बासिंदे हैं देवी जी ! सरकार क्रूर होती है , उसका हल , फल सब उसे पता रहता है लेकिन आप क्या कर रही हैं ? एक शब्द है ' एथिक ' .  आपके दफ़्तर में कलेंडर नही है क्या ? देवी जी ! यह इस्लाम का पाक महीना है . सालों साल  से इक्रोचमेंट खड़ा है , कुछ दिन सब्र कर लेते .  रमज़ान तो बीत जाने देते . यही ईसा मसीह के क्रूस पर  लटकाए जाने का महीना है .  हम आपको यह नही कह  रहे की आप तोड़  रही  थी या तुड़वा  रही थी ! यह ख़त तो हमने आपकी ज़ुबान , हाव - भाव और हाँफने पर लिखा है .  एक बार अपनी क्लिपिंग फिर देख लें .  

      शुक्रिया

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