हिंदोस्तान का यूनान यानी चिरैयाकोट

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

हिंदोस्तान का यूनान यानी चिरैयाकोट

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान

ऐसा पत्रकार था वो जिसे ब्रिटिश सरकार ने जितना डराया उतना ही वो निडर होता गया और हर बार डराने पर उसने नया अख़बार निकाला.उर्दू पत्रकारिता के दौ सौ बरस पूरे होने की सालगिरह मनाई जा रही है.1822 में पहला उर्दू अख़बार जाम-ए-जहाँ-नुमा कलकत्ता से हरिहर दत्ता ने निकाला था.उर्दू सहाफ़त के दो सौ बरस पूरे होने पर हमें अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ ज़िंदगी भर कलम से लड़ने वाले निडर और अब गुमनाम उर्दू पत्रकार अल्लामा कैफ़ी चिरैयाकोटी की याद आ गई.

यूपी के पुराने ज़िला आज़मगढ़ के कस्बा चिरैयाकोट में सन् 1892 में पैदा हुए कैफ़ी चिरैयाकोटी.चिरैयाकोट में प्राचीन काल में चेरू जनजाति का शासन था.चेरू राजा का कोट होने की वजह से उस जगह को चेरूकोट कहा जाता था.बाद में चेरूकोट से नाम ज़बान-दर-ज़बान बदलते-बदलते चिरैयाकोट हो गया.

आज़मगढ़ शहर से जाने वाले ग़ाज़ीपुर रोड पर स्थित चिरैयाकोट की दूरी शहर से तकरीबन तीस किलोमीटर है और अब ये जगह आज़मगढ़ काटकर बने नए ज़िले मऊ में है.यहाँ का फ़ारूक़ी ख़ानदान और कई मुस्लिम ख़ानदान इल्म के मामले में बहुत शोहरत रखते थे.फ़ारूक़ी ख़ानदान को जौनपुर के शर्की सुल्तान हुसैन शाह शर्की ने जागीर दी थी और तभी से ये ख़ानदान चिरैयाकोट में आबाद है.


चिरैयाकोट को हिंदोस्तान का यूनान भी कहा जाता था.वजह कि यहाँ बड़े-बड़े विद्वान और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पैदा हुए.यहाँ यूनानी चिकित्सा पद्धति के कई मशहूर हक़ीम भी गुज़रे हैं.तो चिरैयाकोट के इसी फ़ारूक़ी ख़ानदान में जन्मे कैफ़ी चिरैयाकोटी.इनके पिता का नाम मौलाना फ़ारूक चिरैयाकोटी था जो आला दर्जे के आलिम थे और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले रहते.

फ़ारूक़ साहब के शिष्यों में अकबर इलाहाबादी, अल्लामा शिब्ली नोमानी,सैय्यद सुलेमान नदवी थे जिनको बहुत शोहरत हासिल है.कैफ़ी चिरैयाकोटी के चाचा मौलाना इनायत रसूल चिरैयाकोटी सर सैय्यद अहमद ख़ान के गुरू थे.


कैफ़ी चिरैयाकोटी ने सबसे पहले अपने वालिद और चाचा से तालीम हासिल की और उर्दू,अरबी,फ़ारसी ,हिब्रू और तुर्की सीखी.अल्लामा कैफ़ी चिरैयाकोटी ने यूनानी हक़ीमी इल्म और संस्कृत, लेटिन, जर्मन, फ़्रेंच भी सीखी और बहुत ही कम समय में एक विद्वान के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली.


ब्रिटिश सरकार ने चाहा कि इतने बड़े आलिम को सरकारी नौकर कर लें लेकिन अल्लामा कैफ़ी चिरैयाकोटी ने सभी प्रस्ताव ठुकरा दिए.वजह कि आप मुल्कपरस्त थे और ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी आपको गवारा नहीं थी.


अब कैफ़ी चिरैयाकोटी आए अपने आज़मगढ़ शहर और 1916 में यहाँ से उन्होंने उर्दू मासिक पत्रिका निकाली जिसका नाम था ' अलअलीम '.


कैफ़ी चिरैयाकोटी अपनी इस पत्रिका में ब्रिटिश सरकार की ज़ोरदार आलोचना करते.ब्रिटिश सरकार चौकन्नी हो गई और अलअलीम के कार्य में बाधा डालने लगी.तब कैफ़ी चिरैयाकोटी अलीगढ़ चले गए और सर सैयद के बनाए इदारे में काम करने लगे.


लेकिन उनका मन तो हिंदोस्तान से अंग्रेज़ों को भगाने में लगा था.लिहाज़ा अलीगढ़ छोड़ दिया.मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौक़त अली के साथ ख़िलाफ़त आंदोलन में शामिल हो गए.साथ ही साथ गोरखपुर के चौरी-चौरा कांड का नेतृत्व किया.ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए.जेल भेज दिए गए.


जेल से बाहर आए तो महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डा. मुख़्तार अहमद अंसारी के साथ मिलकर आज़ादी की जंग में शामिल हो गए.अल्लामा कैफ़ी चिरैयाकोटी ने 1921 में गोरखपुर से एक साप्ताहिक उर्दू अख़बार निकाला था जिसका नाम था 'सहबान'.ये अख़बार ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आग उगलता था. 

अंग्रेज़ों की नींद हराम हो गई और उन्होंने अख़बार पर नकेल कस दी.ब्रिटिश सरकार ने कैफ़ी को डराया धमकाया लेकिन कैफ़ी चिरैयाकोटी नहीं माने.चले गए कलकत्ता और वहाँ जाकर एक उर्दू अख़बार शुरू किया ' इन्क़लाब '.अपने इस अख़बार के द्वारा कैफ़ी चिरैयाकोटी ने वतनपरस्ती की अलख अवाम में जगा दी और अपनी कलम से ब्रिटिश सरकार पर और तेज़ हमला शुरू कर दिया.अख़बार पूरे मुल्क में मशहूर हो गया.आख़िरकार एक दिन डर के मारे ब्रिटिश सरकार ने कैफ़ी चिरैयाकोटी को गिरफ़्तार कर लिया और जेल में डाल दिया जहाँ उन्हें किस्म-किस्म की यातनाएं दी गईं.


इन्क़लाब अख़बार को ब्रिटिश सरकार ने बंद करा दिया और इन्क़लाब का दफ़्तर सील कर दिया.जेल में कैफ़ी चिरैयाकोटी को ब्रिटिश हक़ूमत जमकर कष्ट देती.जब कैफ़ी चिरैयाकोटी जेल से छूटे तो ब्रिटिश सरकार को उम्मीद थी कि डर गए होंगे.जैसे बहुत से वीर डर गए और माफ़ीनामा लिख दिया.लेकिन वाह हिंद के वतनपरस्त शेर अल्लामा कैफ़ी.जेल से छूटते ही एक दैनिक उर्दू अख़बार शुरू किया जिसका नाम था ' इंकलाब ज़माना '.


ये अख़बार अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ और धारदार लिखने लगा. ब्रिटिश सरकार सकते में आ गई.सोचा कि ये कैसा इंसान है जो जेल की यातना से भी नहीं डर रहा है न ब्रिटिश सरकार से डरता है.जब जेल में डालो तो बाहर आकर और धारदार लिखता है.इसलिए इस बार ब्रिटिश सरकार ने कैफ़ी चिरैयाकोटी को गिरफ़्तार नहीं किया,उनकी गिरफ़्तारी से हिंद की अवाम में पैदा होने वाली नाराज़गी भी एक कारण थी.


ब्रिटिश सरकार ने इंकलाब ज़माना को बंद करा दिया और दफ़्तर सील कर दिया.कैफ़ी चिरैयाकोटी फिर नहीं माने. कलकत्ता से इलाहाबाद चले आए.इलाहाबाद आते ही उन्होंने एक मासिक उर्दू अख़बार 'कलीम ' निकाला.


कुछ ही दिनों बाद फिर निकाला एक साप्ताहिक उर्दू अख़बार ' तरजुमान ' और दैनिक उर्दू अख़बार ' ख़ादिम ' एक साथ शुरू किए और ब्रिटिश सरकार पर हमला और तेज़ी से शुरू कर दिया.जिन्ना की टू नेशन थ्योरी की भी धज्जियां उड़ाकर रख दीं.


पाकिस्तान की मांग की ऐसी की तैसी कर दी.ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर दिया.देश के बंटवारे के मामले में कांग्रेस और हिंदू महासभा की भी जमकर आलोचना की.ये असली पत्रकार थे.हिंद के बहादुर बेटे.ग़लत दिशा में जाने वाले किसी को भी इनकी कलम छोड़ती नहीं थी.


परेशान हो ब्रिटिश सरकार ने दबाव बढ़ाया तो गुप्त रूप अख़बारों की छपाई और सर्कुलेशन भी कुछ दिन तक हुआ.ख़ैर कैफ़ी चिरैयाकोटी की कलम चलती रही और एक दिन मुल्क़ आज़ाद हो गया.


आज़ादी के बाद भारत सरकार ने चाहा कि कैफ़ी चिरैयाकोटी को पेंशन दे.कैफ़ी ने पेंशन लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि मैंने पेंशन लेने के लिए मुल्क़ को आज़ाद नहीं कराया है.जबकि उस समय कैफ़ी चिरैयाकोटी की कोई बंधी इनकम भी नहीं थी.


आज़ादी बाद कैफ़ी चिरैयाकोटी ने अपनी ज़िंदगी इल्म बांटने में बसर की.अल्लामा कैफ़ी चिरैयाकोटी ने सन् 1956 में इस फ़ानी दुनिया से पर्दा किया.


कैफ़ी चिरैयाकोटी ने उर्दू में 'मयकदा-ए-कैफ़ी' नाम की किताब सन् 1929  में लिखी और उनकी एक किताब 'वफ़ा की देवी नूर-ओ-नाज़' बहुत मशहूर हुई जो 1933 में कैफ़ी चिरैयाकोटी ने लिखी थी.संयोग है कि मुंशी प्रेमचंद ने भी 'वफ़ा की देवी' नाम से एक किताब लिखी लेकिन दोनों का कथानक अलग है.दोनों हमने पढ़ी हैं.


कैफ़ी चिरैयाकोटी की किताब वफ़ा की देवी अरबी पात्र अलिफ़ लैला के अजीबो-ग़रीब क़िस्से के प्लॉट पर आधारित एक नाटक है.इसे राय साहब लाला राम दयाल अग्रवाल इलाहाबाद ने पब्लिश किया था.


कैफ़ी चिरैयाकोटी को तो अाज के दौर में आज़मगढ़ में भी या तो गिनती के लोग जानते हों या ये भी कहा जा सकता है कि शायद ही कोई जानता हो.बाहर के लोगों की तो बात ही छोड़ देते हैं.कैफ़ी चिरैयाकोटी को इस मतलबी ज़माने ने भुला दिया.शायद उनका उर्दू पत्रकार होना भी एक वजह रही.


कैफ़ी चिरैयाकोटी को ब्रिटिश सरकार ने अख़बार निकालने पर जेल में डाल दिन-रात बहुत कष्ट दिए थे.ऐसे में कैफ़ी चिरैयाकोटी की एक ग़ज़ल की चंद पंक्तियाँ उनके हाल का वर्णन करने के लिए बहुत सटीक हैं कि

'उफ़ मेरी ज़िन्दगी की रात उफ़ मेरी ज़िन्दगी के दिन

 ऐसी न है किसी की रात ना ऐसे हैं किसी के दिन'

 

(तस्वीर में कैफ़ी चिरैयाकोटी के जन्मस्थान ज़िला आज़मगढ़-मऊ में बहने वाली टौंस-तमसा नदी)

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :