हिसाम सिद्दीकी
लखनऊ. उत्तर प्रदेश असम्बली एलक्शन में 23 फरवरी को हुई चौथे राउण्ड की पोलिंग ने भारतीय जनता पार्टी की शिकस्त को तकरीबन तय कर दिया है. चौथे दौर में प्रदेश की राजधानी लखनऊ, सीतापुर, हरदोई, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, उन्नाव, फतेहपुर, बांदा और रायबरेली नौ जिलों की 59 सीटों के लिए पोलिंग हुई, इसी के साथ असम्बली की आधी सीटों की पोलिंग मुकम्मल हो गई. इनमें भारतीय जनता पार्टी को पचास-साठ से ज्यादा सीटें मिलती नहीं दिख रही हैं. बुंदेलखण्ड की 19 सीटों पर बीजेपी जरूर मजबूत दिखी लेकिन इन 19 में उसे दस से बारह सीटें ही मिलती दिख रही हैं. बीजेपी ने जिन दो पुलिस अफसरान असीम अरूण और राजेश्वर सिंह को वीआरएस दिलाकर बड़ी धूम से असम्बली एलक्शन में उतारा था. वह दोनों कन्नौज और लखनऊ की सरोजनीनगर सीटों पर बुरी तरह घिरे नजर आए. सरोजनीनगर में राजेश्वर सिंह तो कड़े मुकाबले में रहे लेकिन कन्नौज में असीम अरूण मुकाबले में ही नहीं आ पाए. बीजेपी की इतनी बुरी हालत होने की एक बड़ी वजह यह रही कि इस बार शहरों में आरएसएस के रजाकार पूरी तरह बेजार (उदासीन) दिखे. उन्होने वोटरों को पोलिंग बूथों तक लाने में कोई दिलचस्पी या जोश नहीं दिखाया. लखनऊ जैसे शहर की पांच असम्बली सीटों पर ही 2017 के एलक्शन के मुकाबले इस बार तकरीबन डेढ फीसद ज्यादा पोलिंग हुई. जाहिर है कि इसका नुक्सान बीजेपी को ही उठाना पड़ेगा. पहले राउण्ड से चौथे राउण्ड तक जिन दो सौ इकत्तीस (231) सीटों पर पोलिंग हुई. इन सभी में मुस्लिम वोटों में कोई बटवारा नहीं हुआ और वह पूरी तरह मुत्तहिद होकर समाजवादी पार्टी के हक में गए.
उत्तर प्रदेश असम्बली के इस एलक्शन में कोई भी मनफी (नकारात्मक) मुद्दा काम करता नहीं दिखा. असल मुद्दे महंगाई, बेरोजगारी, देश के बड़े-बड़े लीडरान का झूट और आवारा मवेशी ही रहे. किसान आंदोलन का जितना जबरदस्त असर पच्छिमी उत्तर प्रदेश में दिखा वह असर बाकी जगहों पर नहीं दिखा. फिरकापरस्ती, हिन्दू मुस्लिम, मुजफ्फरनगर दंगा, कब्रस्तान, श्मशान, समाजवाद के साथ-साथ तमंचावाद, माफियावाद, किसी भी मुद्दे पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया. भारतीय जनता पार्टी ने एक काम बहुत अच्छा कर दिया कि इसके सभी लीडरान ने पच्छिमी उत्तरप्रदेश में 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे और कैराना से हिन्दुओं को भगाए जाने के फर्जी इल्जामात को बार-बार दोहरा कर मुस्लिम वोटरों को पूरी तरह मुत्तहिद कर दिया. अच्छी बात यह दिखी कि मुस्लिम मर्दो और बुर्का पोश औरतों की पोलिंग बूथ पर लगने वाली कतारों का जिक्र करके बीजेपी हिन्दुओं को भड़का नहीं पाई. भड़काने की कोशिश जरूर हुई लेकिन हिन्दुओं के कई तबकों ने इसपर नाराजगी जाहिर करने के बजाए पूरी तरह मुत्तहिद हुए मुसलमानों के साथ मिलकर अपनी पसंद के उम्मीदवारों को वोट दिया.
जब हिन्दू मुसलमान कराने के बीजेपी के मंसूबे पूरी तरह नाकाम हो गए तो वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने बाराबंकी में मुस्लिम ख्वातीन से हमदर्दी जाहिर करने का काम किया और कहा कि उनका भले ही परिवार न हो लेकिन उन्हें परिवार के दर्द का बखूबी एहसास है. इसी लिए उन्होंने मुस्लिम बेटियों को तीन तलाक से निजात दिलाई. होम मिनिस्टर अमित शाह ने मुस्लिम वोटरों को गुमराह करके तकसीम करने की गरज से यह कहना शुरू कर दिया कि बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटर बहुजन समाज पार्टी के साथ भी जा रहा है. उनका बस चलता तो वह कह देते कि बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटर बीजेपी को भी वोट दे रहे हैं. बीजेपी ने शिया लीडर कहे जाने वाले कल्बे जवाद को भी किसी तरह मैनेज किया और चौथे दौर की पोलिंग से दो दिन पहले उनका एक वीडियो बड़े पैमाने पर वायरल कराया गया जिसमें वह बीजेपी को वोट करने की अपील करते दिखाई दिए. उनकी इस अपील के बाद शिया तबके के लोग ही उनके खिलाफ हो गए और बायकाट करने तक की बात करने लगे. इस तरह बीजेपी का यह दाव भी उल्टा पड़ गया.
चौथे दौर में जिन उनसठ सीटों पर पोलिंग हुई 2017 में इन उनसठ (59) में से इक्यावन (51) सीटें बीजेपी ने जीती थी. इस बार बीजेपी पच्चीस सीटों पर भी कामयाब होते नहीं दिखती. लखनऊ शहर और देहात की नौ सीटों में से बीजेपी ने आठ सीटें जीत ली थीं, इस बार चार-पांच भी जीतती नहीं दिखती. इसी तरह लखीमपुर की सभी आठ सीटें पिछली बार बीजेपी के खाते में गई थीं इस बार पलिया और मोहम्मदी सिर्फ दो सीटों पर ही बीजेपी आगे दिख रही है. सीतापुर में भी यही हाल है. उन्नाव, रायबरेली और हरदोई में भी सूरतेहाल कमोबेश इसी तरह की है. रायबरेली सदर सीट पिछली बार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठजोड़ की उम्मीदवादर के तौर पर अदिती सिंह जीती थी. लेकिन जल्द ही वह कांग्रेस पार्टी को धोका देकर भारतीय जनता पार्टी में चली गई. असम्बली स्पीकर के फैसला न करने की वजह से वह आखिर तक असम्बली की मेम्बर तो बनी रहीं लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के साथ उनका कड़ा मुकाबला है. उनकी भी शिकस्त तय मानी जा रही है.
अब जो तीन राउण्ड की पोलिंग बाकी बची है. उनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के ही सारे जिले हैं जहां लड़ाई मण्डल और कमण्डल की दिखती है. योगी ने दहशतगर्दी का शोशा जरूर छोड़ा लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ा. 2014, 2017 और 2019 में बीजेपी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के तकरीबन तमाम गैर यादव बैकवर्ड तबकों को अपने हक में करने में कामयाबी हासिल कर ली थी, बड़ी तादाद में यादव वोट भी बीजेपी के साथ चला गया था इस बार मामला उल्टा है. ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य और अपना दल की कुर्मी लीडर के साथ-साथ नोनिया, कांछी और मल्लाह समाज की अक्सरियत समाजवादी पार्टी के साथ है. इस लिए पांचवें, छठे और सातवें राउण्ड में भी भारतीय जनता पार्टी को कोई खास फायदा होता नजर नहीं आता.
जदीद मरकज
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