कुमार नरेंद्र सिंह
अपने उपन्यास ' ट्रेन टू पाकिस्तान ' और किताब 'अ हिस्ट्री ऑफ़ सिख्स ' से मशहूर ' इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया ', ' नेशनल हेराल्ड ' और ' हिंदुस्तान टाइम्स ' के एडिटर रहे खुशवंत सिंह जी खुद को दिल्ली का सबसे यारबाज और दिलफेंक बूढ़ा मानते थे .मेरे गुरु, राजनीतिक चिंतक डीपी त्रिपाठी (डीपीटी ) उनके सबसे अच्छे मित्रों में से एक थे . सतत शोधार्थी, स्कॉलर और वरिष्ठ पत्रकार कुमार नरेंद्र सिंह बताते हैं --
तब डीपीटी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के ' पॉलिटिकल एनेलिस्ट व स्ट्रेटजी प्लानर ' थे और मुझे मध्यप्रदेश सरकार का सूचना सलाहकार बनवा दिया था . मैं भोपाल के सर्किट हाउस में रुका था . त्रिपाठी जी जबलपुर के डीएम भगीरथ प्रसाद से मिलते हुए तकरीबन तीन बजे रात मुझसे मिलने सर्किट हाउस पहुंचे थे . सुबह उन्होंने बताया कि एक सेमिनार में व्याख्यान देने खुशवंत सिंह जी भी भोपाल आये हैं, उन्होंने बुलाया भी है, चलना है . वह बहुत तरंगित और उन्मुक्त उड़ान की शाम थी . खुशवंत सिंह जी उम्र में खासा बड़े होने के बावजूद डीपीटी की बहुत इज्जत करते थे . खूब बात हुई हम तीनों के बीच जो गिलास तो खाली लेकिन , मुझे बहुत भरती यानी समृद्ध करती गयी . उसी में खुशवंत सिंह जी ने यह जानकर कि मैं भी पॉलिटिकल साइंस का छात्र रहा हूं, मुझे गर्व से बताया कि वह हेराल्ड जे लास्की के छात्र रहे हैं .....'
खुशवंत सिंह जी ने ' कंपनी ऑफ वूमन ' जैसी बेस्ट सेलर, ' आई शैल नॉट हियर द नाइटिंगल ' और ' डेल्ही ' जैसी क्लासिक समेत कुल 80 किताबें लिखी हैं . 95 साल की उम्र में उन्होंने उपन्यास ' द सनसेट क्लब ' लिखा . नॉन फिक्शन में उन्होंने सिख धर्म, संस्कृति, दिल्ली, प्रकृति, करेंट अफेयर्स और उर्दू कविता पर भी बहुत उल्लेखनीय काम किया है जिसमें दो खंडों वाली किताब 'अ हिस्ट्री ऑफ द सिख्स' भी शामिल है . 2002 में उनकी ऑटोबायोग्राफी 'ट्रुथ, लव एंड अ लिटिल मैलिस' छपकर आई थी . खुशवंत सिंह 1980 से 1986 तक सांसद भी रहे हैं .
वह बहुत बेबाक शख्स रहे जो पाखंडी शुचिता के हिमायतियों को उनकी बेशर्मी लगती थी . अपने बारे में तमाम चटख कहानियां जो लपलप जीभों से गुजरती दूर तक चली जाएं, खुद ही फैलाते रहना उनका प्रिय शगल था . मशहूर कार्टूनिस्ट मारिओ मिरांडा ने तो अपने एक कार्टून में उन्हें स्कॉच की बोतल, कुछ किताबों और एक मैगज़ीन के साथ बल्ब में ठूंस कर दिखाया था . यह कार्टून ही कुछ और नीली कथाओं के साथ उनकी पहचान बन गया था . अपनी हाज़िर जवाबी, शरारती और मज़ाकिया लहजे ने उन्हें एक ठरकी बूढ़े की छवि में घटा दिया था जो बस शराब - शबाब में ही डूबा रहता हो . दिलचस्प बात ये कि ख़ुशवंत सिंह ने कभी अपनी इस छवि को बदलने की कोशिश भी नहीं की . न उन्हें इससे कोई परेशानी थी .
एक बार मशहूर अभिनेत्री नरगिस दत्त कसौली के पास लॉरेंस स्कूल में पढ़ रहे अपने बेटे संजय दत्त से मिलने जाना चाहती थीं . उन्हें पता था कि कसौली में ख़ुशवंत सिंह का एक घर है . उन्होंने खुशवंत से पूछा कि क्या वो एक दिन के लिए उनके घर रह सकती हैं ? खुशवंत सिंह ने जवाब दिया - ' सिर्फ़ एक शर्त पर कि आप मुझे सबसे ये कहने का अधिकार देंगी कि आप मेरे बिस्तर पर सोई हैं ' . राज्यसभा में जब दोनों का नामांकन एक साथ हुआ और अगल-बगल सीटें दी गईं तो किसी ने नरगिस का उनसे परिचय कराना चाहा . तब नरगिस ने शरारती मुस्कराहट से कहा था -- ‘आपको हमारा परिचय कराने की जरूरत नहीं है, मैं इनके बिस्तर में सो चुकी हूं .'
पंडित नेहरू के लिए उनके दिल में बेपनाह इज्जत थी . पंडित नेहरू के लिए वह अल्लामा इकबाल का शेर अक्सर उद् धृत किया करते थे -- ‘ निगाह बुलंद, सुखन दिलनवाज़ और जां पर सोज़, यहीं हैं रख़्ते-सफ़र मीरे कारवां के लिए ’ . यानी लीडर वह जो दूर दृष्टा, अच्छा वक्ता और जां को जलाने वाला हो . उनकी नज़र में इन बातों के अलावा नेहरू में सबसे ख़ास बात थी कि वे सच्चे सेक्युलर थे और लोकतंत्र में उनका अटूट भरोसा था .फोटो -प्रभासाक्षी से साभार
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