चंचल
बिना लाइन में लगे दर्शन . इसे कहते हैं - गुजरात माडल . श्रद्धा नक़द में आ गयी . मुट्ठी “ गरम “ करो , बिना लाइन लगे दर्शन . आस्था , श्रद्धा , भक्ति भाव के साथ चलनेवाली नैतिकता अब ? अब उस पत्ते की तरह हो गयी है , जिस पर बनारस पान पाता है , चूना , तम्बाकू के साथ . पहले पान गया मुह में फिर तम्बाकू और उँगली की पोर पर चूना कांछ कर , उस पत्ते को नीचे फेंक दिया जाता है .लेकिन यह पत्ता भी लाइन से मिलता है बनारस में . पंडित कमला पति त्रिपाठी हों या लल्लू सिंह , डाक्टर काशीनाथ सिंह हों या किशन महराज , मिलेगा नम्बर से ही . आपके पहले लछ मन रिकसावाला आया है तो उसे ही पहले मिलेगा . चाची की कचौड़ी हो या केशव का पान . सब की अपनी औक़ात है गुरु . बनारस में नैतिकता उसकी रवायत का हिस्सा है . लेकिन अब उस नैतिकता की पूँछ मरोड़ रहा है प्रशासन - सरकारी ऐलान है - “ बिना लाइन में लगे दर्शन “ गणित है - सुगम (?) दर्शन ३०० रुपए . आरती १८० . बीस कम पूरे पाँच सौ .
कल तक बाबा सबके थे . कहीं से भी लोग गुज़रते - एक पल रुको गुरु ! बाबा के दर्शन करते चलें . ड्योढ़ी पर मत्था टेका प्रसाद मिला , आगे बढ़ गये . बाबा गली में थे , गली संकरी थी लेकिन बाबा का विस्तार असीमित था . पुष्पम पत्रम से लेकर अकूत तक .
जय हो सरकार की.
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