अखिलेश यादव को पूर्वांचल में मिला ब्राह्मण चेहरा !

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अखिलेश यादव को पूर्वांचल में मिला ब्राह्मण चेहरा !


अंबरीश कुमार 

रविवार को भाजपा और बसपा दोनों को बड़ा झटका लगा है . पूर्वांचल के बाहुबली और ब्राह्मण बिरादरी के सबसे बड़े चेहरे पंडित हरिशंकर तिवारी का परिवार समाजवादी हो गया . उनके पुत्र विनय शंकर तिवारी के साथ उनके रिश्तेदार और विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पांडेय व पूर्व सांसद कुशल तिवारी भी सपा में आ गए.दूसरी तरफ लोकसभा में बसपा संसदीय दल के नेता रितेश पांडेय के पिता राकेश पांडेय ने भी लाल टोपी पहन ली ये जलालपुर से चुनाव लड़ेंगे . ये बानगी है उस पूर्वांचल की जहां न तो किसान आंदोलन हुआ न ही उसका बहुत ज्यादा असर रहा . दूसरे यह अंचल देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व की नर्सरी भी माना जाता है . इसका असर करीब दर्जन भर जिलों पर पता है . देवरिया ,गोरखपुर ,कुशीनगर ,महाराजगंज ,बस्ती ,संत कबीर नगर से मऊ और आजमगढ़ तक . पर योगी के साथ एक दिक्कत भी रही है . वे राजपूत पहले होते हैं और हिंदू बाद में . यह पूर्वांचल के ठाकुर तो मानते ही हैं बाकी कोई माने या न माने . वैसे इसकी पुष्टि करनी हो तो सत्ता के सबसे निचले स्तर पर ध्यान दें . सोशल मीडिया पर ही प्रदेश के विभिन्न जिलों में दरोगा से लेकर बे पुलिस अफसर एक खास बिरादरी के मिल जाएंगे . पर इसका दोष सिर्फ योगी को देना भी ठीक नहीं होगा . मुलायम सिंह सत्ता में आए तो ज्यादातर थानों पर यादव दरोगा काबिज हो गए थे तो बसपा के राज में भी एक खास बिरादरी को प्राथमिकता मिली थी . योगी भी तो वही कर रहें हैं जो रास्ता इन नेताओं ने बनाया था . खैर मुद्दा तो ब्राह्मण है और खासकर पूर्वांचल का ब्राह्मण . 

कुछ पीछे चलते हैं .सत्तर और अस्सी के दशक में पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का जो टकराव हुआ था उसमें एक तरह थे हरिशंकर तिवारी तो दूसरी तरफ रवींद्र सिंह और वीरेंद्र प्रताप शाही . रवींद्र सिंह जो विधायक भी बने इसी टकराव में मार दिए गए . वीरेंद्र प्रताप शाही भी बाद में एक माफिया का निशाना बने और लखनऊ में उनकी हत्या कर दी गई . इसके बाद हरिशंकर तिवारी को कब कोई चुनौती भी नहीं मिली . वे राजनीति में आ गए और विधायक बन गए . वह पहला चुनाव 1985 में जेल में रहते हुए गोरखपुर की चिल्लूपार विधान सभा सीट से जीते थे. इस सीट से वह छह बार विधायक चुने गए और मंत्री भी बने.. इस दौरान वह सपा, बसपा , भाजपा और कांग्रेस में भी रहे .दरअसल हरिशंकर तिवारी और योगी आदित्यनाथ का टकराव भी पुराना है और उसके तार भी पूर्वांचल की ठाकुर बनाम ब्राह्मण टकराव से ही जुड़ा है . गोरखनाथ मठ को राजपूतों की सत्ता के केंद्र के रूप में भी देखा जाता है तो हरिशंकर तिवारी के धर्मशाला बाजार स्थित घर जिसे हाता कहा जाता है उसे ब्राह्मणों के सत्ता के केंद्र के रूप में भी देखा जाता है . वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए एक उप चुनाव में मुझे इस हाता में हरिशंकर तिवारी से बात करने का मौका मिला तो मैंने उनसे पूछा कि योगी से टकराव क्यों बढ़ रहा है ? हरिशंकर तिवारी का जवाब था ,मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ लगातार बदले की भावना से काम कर रहें है . सत्ता में आते ही हाता पर छापा डलवा दिया . वे ब्राह्मण विरोधी हैं . इस उप चुनाव में हरिशंकर तिवारी ने समाजवादी पार्टी की खुलकर मदद की और योगी के गढ़ में भाजपा लोकसभा का उप चुनाव हार गई थी . यह एक उदाहरण है हरिशंकर तिवारी की ब्राह्मण बिरादरी पर असर का . 

पर अब हरिशंकर तिवारी की उम्र हो गई गई है वे राजनीति में सक्रिय नहीं रहते पर उनके पुत्र और भतीजे का भी असर  है . दरअसल तिवारी परिवार के समाजवादी होने के साथ ही अखिलेश यादव को एक ब्राह्मण चेहरा पूर्वांचल में मिल गया है . यह बात अलग है कि बृज भूषण तिवारी ,जनेश्वर मिश्र से लेकर माता प्रसाद पांडेय जैसे खाँटी समाजवादी नेता देने वाली समाजवादी पार्टी को अब हरिशंकर तिवारी का साथ लेना पड़ रहा है . हालांकि अब न तो वे बाहुबली माने जाते हैं न ही अपराध की दुनिया से वर्षों से कोई नाता रहा है . पुत्र विनय शंकर तिवारी लखनऊ विश्वविद्यालय के बदलावकारी छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं . ऐसे में इस परिवार को भी समाजवादी पहचान का फायदा मिलेगा और अखिलेश यादव को ब्राह्मण चेहरा भी मिल गया है . पूर्वांचल में इसका असर पड़ना तय है . 

दूसरे पूर्वांचल में यह योगी के लिए भी बड़ा  झटका है और मायावती के लिए भी . मायावती के पास अब पूर्वांचल में कोई बड़ा कद्दावर नेता नहीं बचा . उन्होंने जय श्रीराम का नारा लगा कर सामाजिक न्याय की ताकतों को तो झटका दिया ही था अब ब्राह्मण भी बसपा को आसानी से वोट नहीं करेगा . खासकर पूर्वांचल में जहां हरिशंकर तिवारी के परिवार का दबदबा है . इस अंचल में कोई और ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी के विरोध का प्रयास नहीं कर सकता . दरअसल हरिशंकर तिवारी का दबदबा सिर्फ राजनीति में ही नहीं है बल्कि नौकरशाही में भी है . का बड़े बड़े अफसर उनके यहां हाजिरी लगाते हैं . इसलिए पूर्वांचल की राजनीति में अब बड़े बदलाव की संभावना लोग देख रहे हैं .


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