रमा शंकर सिंह
विनोद था तो मुझसे क़रीब दो ढाई साल छोटा ही, पर मित्र जैसा भाई और भाई जैसा मित्र रहा .हम लोग १९७०-७१ में हंसराज कॉलेज दिल्ली विवि से साथ रहे और १९७५ में आपात्काल के दौरान अलग हुये तो फिर क़रीब दस साल बाद खान मार्केट दिल्ली में टकराये और एक दशक का अंतराल एक पल में छूमंतर हो गया. विनोद को कॉलेज स्तर की डिबेट में जाना पसंद रहा और पतलून की जेब में सदैव माउथ ऑर्गन रहता था जो कहीं भी कभी भी मूड आने पर या फ़रमाइश पर बजने लगता था. जैसा नाम वैसा ही विनोदी स्वभाव .
मुझे जब १९७२ में दिल्ली विवि के छात्र आंदोलन के कारण निष्कासित कर दिया गया तो छात्रों ने खुद का एक न्यायिक पैनल बना कर मामले की सुनवाई की और विनोद दुआ उस पैनल के जज बने. ज़ाहिर है कि रिपोर्ट ने तत्कालीन कुलपति को ज़िम्मेदार ठहराया और हमें बरी किया.
मैंने १९७१ में ही खूब कोशिश की थी विनोद समाजवादी युवजन सभा में आयें पर उसे किसी राजनीतिक पक्ष के साथ आना ही नहीं था. राजनीति की अंदरूनी गहरी समझ, राजनेताओं के लिये निष्पक्ष तल्ख़ बोल और राष्ट्रीय परिदृश्य की पैनी पकड़ विनोद दुआ की विशेषताओं में से थीं .
विनोद अपने नज़दीक नेताओं को फटकने नहीं देता था सिवाय छात्र जीवन के गिनेचुने मित्रों के.
भारत में दूरदर्शन ( ब्लैक एंड व्हाइट टीवी ) की शुरुआत में ही ‘ युववाणी ‘ कार्यक्रम देकर वे भारतीय टीवी माध्यम के सबसे वरिष्ठ पत्रकार बने और ऐसे कि कोई कभी आर्थिक फायदे के लिये विनोद पर ऊँगली न उठा सका . बेहद ईमानदार मगर ठाठ वाले पत्रकार थे. बहुत सी सरकारें ख़िलाफ़ रहीं पर विनोद दुआ पर कोई आरोप तक नहीं लगा सका. उनके टीवी कार्यक्रमों के लिये ठीकठाक पैसा मिलता था .
कोविड से चिन्ना भाभी के पीड़ादायक बिछोह के बाद विनोद एकदम झटक कर आधा रह गया था. उसके बाद कभी कभार मैसेंजर या फ़ोन पर संक्षिप्त बात होती थी . आख़िरी बात कुछ हफ़्ते पहले ही हुई जब विनोद ने अपने एलपी रिकॉर्ड्स के संग्रह को देने की बात फ़ेसबुक पर लिखी . बहुतों नें चाहा कि वह संग्रह उनके पास जाये , मैंनें भी शायद लिख दिया “ मी टू “ . कुछ दिनों बाद ही फ़ोन आया कि किसी को भेज दो वे सब रिकॉर्ड्स ले जाये. मैंनें जानबूझकर देरी कि जल्दबाजी क्यों दिखाई जाये ? मल्लिका बिटिया के सार्वजनिक संदेश से खबर लगी कि विनोद फिर अस्पताल में चले गये. विनोद के साथ मित्रों के इतने सुखद निजी प्रसंग है कि अब शायद उन सबको लिपिबद्ध कर , संग्रहित कर छपवाना चाहिये कि नई पीढ़ी के पत्रकारों को खबर तो रहे कि ऐसा भी कोई पत्रकार हुआ. क्या ही शानदार ठाठदार इंसान , जीवट और साहस से लबरेज़ पत्रकार और सच्चा मित्र खोया है हम सबने. आख़िर में धोखा दे गये ! अलविदा विनोद !
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