शिप्रा शुक्ल
केरल : 70 के दशक में कई फ़िल्में बनी थी जिसमे माँ-बाप अपनी अविवाहित गर्भवती लड़की का बच्चा चोरी से किसी और को दे देते थे. कुछ ऐसा ही किस्सा देखने को आया है देश के सबसे प्रगतिशील माने जानें वाले राज्य केरल में जहाँ 3 दिन के दुधमुंहे बच्चे को को रिश्तेदारों ने उसकी माँ से अलग कर दिया. क्या पांच दशकों में समाज में कुछ भी नहीं बदला या फिर अब भी हम उसी जगह पर खड़े हुए हैं. क्या सामाजिक मान्यताएँ समय के हिसाब से बदलती है या नहीं?
केरल की अनुपमा को पूरे 1 साल की जद्दोजहद के बाद लगता है अपना बेटा खिलाने को मिल जाएगा लेकिन क्या सरकारी तंत्र, उनके अपने माँ बाप जो राजनीतिक रसूख रखते हैं, और समाज ने क्या पूरी कोशिश नहीं लगा दी कि एक माँ अपने बच्चे से बिछड़ जाए. यदि एक माँ ने अपने बच्चे को फीड नहीं कराया तो उसका जिम्मेदार कौन है? कहते है माँ का दूध बच्चे के लिए अमृत तुल्य होता है लेकिन ये बच्चा अमृत से वंचित रह गया. अनुपमा इस समय शिकायत करने की स्थिती में नहीं है क्योंकि वो खुश है कि किसी भी तरह महीनों की लड़ाई के बाद उसका बच्चा अब उसे हासिल होने वाला है.
कुछ सच्चे किस्से शायद फिल्मों को प्रेरणा देते हैं. ये भी कुछ इसी तरह का किस्सा है. 23 साल की अनुपमा के माता पिता को जब पता चला कि वह गर्भ से है तो उनको घर लाया गया और बहन की शादी तक बच्चे की बात छुपाकर रखने के लिए बच्चा कहीं और रहेगा ऐसा कहा गया. अनुपमा का कहना है कि माँ बाप को दलित ईसाई से उनका संबंध पसंद नहीं था, ऊपर से 35 वर्षीय उनके साथी अजीत पहले से विवाहित थे और उनका अपनी पत्नी से तलाक का केस चल रहा था. शायद कुछ प्यार से और कुछ लड़ाई झगड़े से अनुपमा को साथ में रहने के लिए राजी कर लिया गया लेकिन उसके बाद जो हुआ वो अनुपमा के लिए सोचना भी संभव नहीं था. मार्क्स पार्टी के मेंबर्स उनके माता पिता ने बिना अनुपमा की जानकारी के बच्चा माँ से अलग कर दिया और उसको गोद दे दिया. और ये सब हुआ सरकारी संस्थाओं के द्वारा.
अनुपमा ने अपनी लड़ाई जारी रखी. पहले सीपीएम, बाद में सरकारी जगहों पर जाकर धरने, प्रदर्शन, ज्ञापन दिए. बच्चे के जन्म के ठीक 1 साल बाद अनुपमा को एफआईआर लिखवा पाने का अवसर प्राप्त हुआ. मामला केरल विधानसभा में भी गूंजा. और विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल पर आरोप लगाया कि उन्होंने माँ को दूध पीते बच्चे से अलग करने का दुष्कर्म किया है. मामला जब मीडिया में पहुंचा और देशभर में बातचीत होने लगी तब यह तय हुआ कि संस्था द्वारा गोद दिए गए बच्चों की तलाश की जाएगी.
अंततःअनुपमा की अपने बच्चे को पाने की तलाश खत्म हुई. उनका बेटा 4.5 महीनों से आंध्र प्रदेश में एक दंपति के पास रह रहा था. बच्चे को केरल वापस लाया गया और अनुपमा और उनके साथी अजीत (अब पति) के साथ डीएनए टेस्टिंग की गयी. अनुपमा के बच्चे का डीएनए उनके साथ मिला और उनकी तलाश खत्म हुई. लेकिन यह पूरा किस्सा पिछले कई दशकों से केरल में चल रहे महिला सशक्तीकरण, वामपंथी दलों द्वारा समानता के अधिकार, महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने के अधिकार, दलित या दूसरे धर्म में जीवन साथी चुनने का अधिकार होना चाहिए नहीं इन सब पर बहुत से सवाल खड़े करता है. सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियां केरल में है, कामकाजी लड़कियां केरल में है. जीवन साथी चुनने का अधिकार किसके पास होना चाहिए? किसी वयस्क लड़की के पास? या फिर उसके माँ बाप के पास? और यदि माँ बाप को जीवन साथी पसंद नहीं आता तो क्या वह लड़की के साथ गैरकानूनी तरीके से इस तरह की हरकतें कर सकते हैं ?
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments