दक्षिण के गांधीवादी संत शोभाकांत दास !

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दक्षिण के गांधीवादी संत शोभाकांत दास !

अंबरीश कुमार  
पता नहीं आप श्री शोभाकांत दास को कितना जानते हैं .  मेरे जीवन का बड़ा बदलाव उन्ही की वजह से आया .  वे जयप्रकाश नारायण के करीबी रहे तो एक्सप्रेस समूह के संस्थापक श्री रामनाथ गोयनका के पड़ोसी और मित्र भी .  यह साथ दरभंगा के रिश्ते से शुरू होकर मद्रास तक चला और रामनाथ गोयनका के जीवन तक चला .  वे महात्मा गांधी के कहने पर आजादी की लड़ाई से जुड़े तो क्रांतिकारियों के साथ रहे और उसी राह पर भी चले .  सरगुजा की जेल फांद कर क्रांतिकारियों के समूह से जुड़े रहे तो जेपी जब जेल गए तो उनके लिए टिफिन में पत्र पहुंचाने का भी काम किया .  मद्रास में एमजीआर से लेकर  करुणानिधि तक का साथ रहा पर सत्ता की राजनीति से दूर रहे .  वे अपने बारे में नहीं बोलते .  दो साल पहले एक कैमरामैन को लेकर गोपालपुरम स्थित उनके घर गया ताकि जेपी से लेकर गांधी तक के संस्मरण को रिकार्ड कर लूं पर उन्होंने बड़ी शालीनता से कहा ,जाने दीजिए क्या होगा इस सबसे .  मेरे जैसे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के कार्यकर्ता को उन्होंने पत्रकारिता सीखने के लिए ही श्री रामनाथ गोयनका के पास भेजा था .  गोयनका जी से मिलने के बाद ही मैं दिल्ली क बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित  एक्सप्रेस बिल्डिंग की जो सीढ़ी चढ़ा तो करीब तीन दशक तक एक्सप्रेस समूह से जुड़ा रहा .  वे शोभाकांत दास नहीं रहे .  बीते शनिवार को काठगोदाम से लखनऊ की ट्रेन में जब फ़ेसबुक देख रहा था तभी पता चला कि सुबह ही उनका निधन हो गया .  करीब बीस दी पहले ही प्रकाश से कहा था जब भी घर जाएं तो शोभाकांत जी से फोन पर बात करा दें .  उनके पुत्र प्रदीप कुमार के जाने के बाद अपनी हिम्मत ही नहीं हुई कि उनसे बात करने का प्रयास करूं .  अब क्या बात होगी ? 
याद आया करीब दशक भर पहले वर्ष 2013 का अगस्त का महीना शुरू हुआ था .   शुक्रवार की शाम चेन्नई के गोपालपुरम में जयप्रकाश नारायण के साथी शोभाकांत दास जी के यहां  जब पहुंचा तो वे चरखा से सूत / धागा तैयार कर रहे थे .  करीब तीस साल से अपना शोभाकांत जी से संबंध है जिसकी शुरुआत अस्सी के दशक में तबके मद्रास से एक अखबार निकालने को लेकर हुई थी .  तब मै लखनऊ से पहली बार वाहिनी की साथी किरण और विजय के साथ मद्रास सेंट्रल के ठीक बगल में ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट पहुंचा था और बगल में ठहरने का इंतजाम था . बहुत ही अलग अनुभव था .  उनका जड़ी बूटियों का बड़ा कारोबार स्थापित हो चूका था . शोभाकांत जी के पुत्र तब तमिलनाडु छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के संयोजक भी थे और उनसे मित्रता हो गई क्योकि वे अपनी उम्र के आसपास के ही थे . पत्रिका की योजना बनने से पहले शोभाकांत जी का निर्देश हुआ कि मै पत्रिका शुरू करने से पहले तमिलनाडु को समझ लूं .  उन्होंने अपने दफ्तर को कहा कि पांडिचेरी में अरविंदो आश्रम के गेस्ट हाउस में हम लोगों के रहने और आने जाने का इंतजाम कर दिया जाए और खर्च के लिए नकद भी दे दिया जाए.  उस दौर में बिहार से रोजाना बहुत से लोग उनके यहाँ आते थे और सबका खाना भी साथ नीचे बैठकर ही होता था .  शोभाकांत जी की पत्नी मैथिल बोलती थी और उनका आतिथ्य कभी भूल नहीं सकता . अमूमन इडली वडा साम्भर आदि का नाश्ता तो पास के होटल से आ जाता था पर दोपहर और रात का खाना वे खुद बनाकर खिलाती  थी चाहे कितने ही लोग न हो .  
खाना उत्तर भारतीय होता था बिहार का उसपर प्रभाव भी दिखता था . तब बिहार के सभी वरिष्ठ नेता जो मद्रास आते थे शोभाकांत जी के ही मेहमान होते थे . एम् करूणानिधि समेत तमिलनाडु के शीर्ष राजनीतिक भी उनके मित्र ही थे .  जयप्रकाश नारायण को शोभाकांत जी ने जो बादामी रंग की फियट दी थी बाद में उससे हमने भी कई यात्रा की . पास में ही उनके मित्र और मीडिया के सबसे बड़े और कद्दावर व्यक्तित्व श्री रामनाथ गोयनका का घर था .  कल बाद में दिल्ली से साथ आए वर्ल्ड सोशल फोरम के विजय प्रताप ,भुवन पाठक और मुदगल जी से शोभाकांत जी की रात के भोजन पर मुलाक़ात हुई तो उन्होंने विजयप्रताप से उलाहना देने के अंदाज में कहा -अंबरीश जी को तो मद्रास से अखबार निकालने के लिए बुलाया था पर जब इनका मन उत्तर भारत छोड़ने का नहीं हुआ तो रामनाथ गोयनका के पास भेज दिया . तबसे आजतक वह अखबार नही निकल पाया . खैर विजयप्रताप से गाँधी , जेपी ,सुभाष चंद्र बोस से लेकर धर्मपाल और राजीव गाँधी तक के कई संस्मरण उन्होंने सुनाए .  तेरह साल की उम्र में वे आजादी की लड़ाई से जुड गए थे और जवान होते होते आंदोलन और जेल के बहुत से अनुभव हो चुके थे .  हजारीबाग जेल में जेपी को क्रांतिकारियों का पत्र पहुंचाते और उनका सन्देश बाहर लेकर आते . बाद में सरगुजा जेल में खुद रहना पड़ा जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी के नाम उन्होंने गुडवंचारी में आश्रम बनवाया जिसके ट्रस्ट में तमिलनाडु के सभी महत्वपूर्ण लोग शामिल थे और आसपास के तीस गांवों में इसका काम फैला हुआ था .  बिहार से बहुत से लोग मद्रास के वेलूर अस्पताल में इलाज करने आते तो वे शोभाकांत जी के घर या बादे में राजेंद्र भवन में रुकते जो उन्होंने मद्रास शहर के बीच बनवाया हुआ है . कई साल पहले वाहिनी के सम्मलेन में ही शोभाकांत जी ने जनादेश वेबसाईट की शुरुआत की थी और मुलाक़ात होने पर उसकी भी चर्चा की .  अनुपम मिश्र की पुस्तक आज भी खरे है तालाब देख कर बोले -तमिल में इसे छपवा देता हूँ अगर वे इजाजत दे दे . जयप्रकाश नारायण की कई पुस्तकों को वे तमिल भाषा में प्रकाशित करवा चुके है . बाद में तय हुआ पर्यावरण और परम्परागत चिकत्सा पद्धति पर तमिलनाडु में पहल की जाए और इसकी पहली बैठक बुलाने की जिम्मेदारी प्रदीप कुमार ने स्वीकार कर ली साथ ही तमिल में लोगों से संवाद की भी . बिहार के लोगों की खासकर चौहत्तर आंदोलन के साथियों की उन्होंने कितनी मदद की यह बहुत कम लोग जानते हैं .    
सब याद या रहा था .  शोभाकांत जी के पुत्र और अपने मित्र प्रदीप कुमार कुछ महीने पहले ही गुजर गए .  मन उचट गया .  अब शोभाकांत जी भी चले गए .  मुझे अभी भी 59 गोविंदप्पा नेकन स्ट्रीट की बरसात में भीगी हुई गली और वह विशाल घर याद आता है जिसमें न जाने कितनी बार रुकना हुआ .  शादी के बाद सविता के साथ पहुंचा तो सबसे ऊपर का कमरा उन्होंने मुझे दे दिया जो प्रदीप जी का कमरा था .  रात में ही भारी तूफान आया और लगा  वह कमरा उड़ जाएगा .  दहशत में हम नीचे या गए .  वह अपना दक्षिण का घर था .  शोभाकांत जी को  हम भी बाबूजी ही कहते थे अब वे कहां मिलेंगे .  इस जनादेश वेब साईट का उद्घाटन उन्ही ने किया था .  आज उनकी अंतिम यात्रा पर यह इसी पर लिख रहा हूं .  वे यादों में हमेशा रहेंगे .   
 

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