राजेंद्र माथुर और एसपी सिंह

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

राजेंद्र माथुर और एसपी सिंह

टिल्लन रिछारिया  
ट्रेंड सेटर सुरेंद्र प्रताप सिंह . ...कोलकाता से नवभारत टाइम्स , बम्बई  लौट आये हैं सुरेन्द्र प्रताप सिह हैं . सम्पादक तो नवभारत के हैं पर ज्यादातर समय अपने पुराने घर ' धर्मयुग '  की अमराइयों में ही बिताते हैं . अपनी पुरानी यादों  के साथ , अपना कैशोर्य तलाशते हैं . लगता है कि उनकी कोई अनमोल निधि यहीं कहीं आसपास है .आते जाते भारती जी भी ठोंकते हैं , नवभारत में मन नहीं लगता तो यहीं धर्मयुग में बुला लेते हैं .अक्सर मेरी ओर मुस्कुराते हुए आते हैं .एक दे दो यार .एक नहीं दो दे देंगे , पर मेरे लिए सामने से एक चांसलर ले आये .अभी 5 मिनट में लाता हूँ . वे विल्स पसंद करते थे . ...धुंए को छल्लों के बीच उनकी चमकीली आंखें कुछ तलाशती रहती हैं .  इन आँखों में एक अजीब किस्म की चाहत है . इलेस्टेटेड वीकली से कोई रिश्ता  बन रहा था .  यह रिश्ता क्या था , यह  धीरे धीरे खुलने  लगा है . जल्दी ही वो एक से दो होने वाले हैं . बधाइयां मिलने लगीं , जल्दी ही शहनाई भी बज गईं . अब सुरेन्द्र प्रताप सिंह धर्मयुग की अमराइयों में कम ही दिखते हैं . सन 1985 के बसंत ने उनकी दशा और दिशा दोंनों ही बदल दी .सुरेन्द्र प्रताप सिंह के आने साथ नवभारत टाइम्स के तेवर बदलने लगे , उधर दिल्ली में प्रधान संपादक राजेन्द्र माथुर अपने कौशल से नवभारत के रंग ढंग बदल चुके थे . वह दौर पत्रकारिता का स्वर्णकाल था . नावभारत टाइम्स और धर्मयुग में नई उमर की नई फसल आ गई . इंदिरा ग़ांधी विदा हो चुकी थीं  , प्रधानमंत्री राजीव ग़ांधी का सौम्य चेहरा आमफहम हो चुका था . बम्बई कांग्रेस शताब्दी समारोह के खुमार से गुजर रही थी .राजेन्द्र माथुर जी थे तो अंग्रेजी माध्यम के अध्यापक पर भारतीय भाषा में भारत के सरोकारों को समझने के लिए उन्होंने हिंदी भाषा की पत्रकारिता को अपने माध्यम के रूप में चुना. पत्रकारिता की दुनिया में उन्होंने दैनिक 'नईदुनिया' के माध्यम से दस्तक दी. नईदुनिया के संपादक राहुल बारपुते से उनकी मुलाकात शरद जोशी जी ने करवाई थी. बारपुते जी से अपनी पहली मुलाकात में उन्होंने पत्र के लिए कुछ लिखने की इच्छा जताई. राहुल जी ने उनकी लेखन प्रतिभा को जांचने-परखने के लिए उनसे उनके लिखे को देखने की बात कही. उसके बाद अगली मुलाकात में राजेंद्र माथुर अपने लेखों के साथ ही बारपुते जी से मिले. 

अंतरराष्ट्रीय विषयों पर गहन अध्ययन एवं जानकारी को देखकर राहुल जी बड़े प्रभावित हुए. उसके बाद समस्या थी कि राजेंद्र माथुर के लेखों को पत्र में किस स्थान पर समायोजित किया जाए. इसका समाधान भी राजेंद्र जी ने ही दिया. राहुल बारपुते जी का संपादकीय अग्रलेख प्रकाशित होता था, राजेंद्र जी ने अग्रलेख के बाद अनुलेख के रूप में लेख को प्रकाशित करने का सुझाव दिया. अग्रलेख के पश्चात अनुलेख लिखने का सिलसिला लंबे समय तक चला. सन 1955 में नई दुनिया की दुनिया में जुड़ने के बाद वह 27 वर्षों के लंबे अंतराल के दौरान वे नई दुनिया के महत्वपूर्ण सदस्य बने रहे.14 जून, 1980 को वे प्रेस आयोग के सदस्य चुने गए. जिसके बाद सन 1981 में उन्होंने नई दुनिया के प्रधान संपादक के रूप में पदभार संभाला. प्रेस आयोग का सदस्य बनने के पश्चात वे टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक गिरिलाल जैन के संपर्क में आए.  

गिरिलाल जैन ने राजेंद्र माथुर को दिल्ली आने का सुझाव दिया. उनका मानना था कि राजेंद्र जी जैसे मेधावान पत्रकार को दिल्ली में रहकर पत्रकारिता करनी चाहिए. लंबे अरसे तक सोच-विचार करने के पश्चात राजेंद्र जी ने दिल्ली का रुख किया. सन 1982 में नवभारत टाइम्स के प्रधान संपादक बन कर वे दिल्ली आ गये.बम्बई नवभारत को सज्जित सुसज्जित करने के बाद 1985 में सुरेन्द्र प्रताप सिंह दिल्ली आ गए . ...दिल्ली आने से पहले उन्होंने बम्बई में कुछ नए ढंग का काम किया ...जाने माने फिल्मकार मृणाल सेन की ‘जेनेसिस’ और ‘तस्वीर अपनी अपनी’ फिल्मों की पटकथा लिखी. विजुअल मीडिया के लिए एसपी की यह शुरुआत थी. गौतम घोष की फिल्म ‘महायात्रा’ और ‘पार’ फिल्में भी उन्होंने लिखीं लेकिन सराहना मिली ‘पार’ से. इस फिल्म को अनेक पुरस्कार मिले. ... 
 राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप  ने हिंदी पत्रकारिता में अनेक सुनहरे अध्याय लिखे. अखबार की भाषा, नीति और लेआउट में निखार आया.1988 में मैं भी दैनिक वीर अर्जुन की मार्फत  दिल्ली प्रवेश कर गया . ...इसी दौर में किसी और के साथ मैं नवभारत टाइम्स के ऑफिस गया , वो बोले यार तुम आते नहीं  . मैने विनम्रता से कहा , यहां आने का मतलब आना नहीं , नोकरी मांगना होता है .ये दौर राजीव ग़ांधी के प्रधानमंत्री काल में टिकैत के किसान आंदोलन , विश्वनाथ प्रताप सिंह के कांग्रेस से टूटने व उनके और चंदशेखर के प्रधानमंत्री बनाने का दौर था .विश्वनाथ सिंह के प्रधानमंत्री बनने  
के बाद सुरेन्द्र प्रताप जी का रुझान थोड़ा सत्ता की ओर पाया गया .नवभारत टाइम्स के बाद वे थोड़े थोड़े समय कपिलदेव के देव फीचर्स और टेलीग्राफ में रहे .टेलीग्राफ के ऑफिस में उनको इंटरव्यू किया तो बोले , मैं हिंदी का आदमी हूँ , अंग्रेजी में अपने को असहज पाता हूँ , मुझे एक अदद हिंदी की नॉकरी चाहिये . तबतक ' आजतक ' की कहीं कोई चर्चा नहीं थी .सुरेन्द्र प्रताप जी के राष्ट्रीय सहारा आने की भी बात चली थी , अपना एक सहयोगी भी भेजा था माहौल परखने के लिए , वो महीने डेढ़ महीने रहा भी पर सुरेन्द्र प्रताप नहीं आये .तो ये थे ' आजतक ' से पहले वाले सुरेन्द्र प्रताप सिंह . आजतक के सुरेंद्र प्रताप सिंह को मैं नहीं जानता .साभार फ़ेसबुक वाल से 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :