भाजपा और सरकार के गले की हड्डी बने सत्यपाल मलिक

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भाजपा और सरकार के गले की हड्डी बने सत्यपाल मलिक

पूजा सिंह  
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक इन दिनों अपने तेवरों के चलते लगातार सुर्खियों में हैं. उनका आरोप है कि जिस समय वह जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल थे उस समय उन्हें 300 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की पेशकश की गयी थी. ये दो मामले थे जिनमें से एक मुकेश अंबानी तो दूसरा ‘आरएसएस से संबद्ध एक पदाधिकारी’ से जुड़ा था. मलिक ने कहा कि उन्होंने दोनों फाइलें निरस्त कर दी थीं. उन्हें वहां से गोवा स्थानांतरित कर दिया गया लेकिन उन्होंने गोवा का राज्यपाल रहते हुए भी वहां भ्रष्टाचार रोकने की कोशिश की. इसके बाद उन्हें मेघालय भेज दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि भाजपा या केंद्र सरकार के किसी नेता या मंत्री ने उनकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया. ऐसे में दो सवाल उठते हैं कि मलिक ऐसा क्यों कर रहे हैं और भाजपा और केंद्र सरकार उन्हें क्यों बरदाश्त कर रहे हैं. 

राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े का मानना है कि उन्हें भ्रष्टाचार के प्रकरणों में अड़ंगा लगाने के कारण ही बार-बार स्थानांतरित किया जा रहा है. वानखेड़े एक दिलचस्प बात यह कहते हैं कि भले ही मलिक ने जम्मू-कश्मीर मामले में किसी का नाम लिए बिना आरएसएस के एक नेता का जिक्र किया था लेकिन राम माधव ने अपनी ओर से प्रतिक्रिया देते हुए उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने और मलिक के कार्यकाल में कश्मीर में फलीभूत या निरस्त हुए सभी सौदों की जांच कराने की मांग की है. इससे एक बात जाहिर हो गयी है कि मलिक आरएसएस के जिस नेता का जिक्र कर रहे हैं वह राम माधव ही हैं. 

मलिक के मुताबिक वह कश्मीर में भ्रष्टाचार की शिकायत प्रधानमंत्री से भी कर चुके हैं और इसके बाद उनका तबादला कर दिया गया. इससे तो यही संकेत निकलता है कि भ्रष्टाचार को ऊपर से संरक्षण मिला हुआ है और ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ का दावा झूठा है. 

वानखेड़े कहते हैं कि मलिक के खिलाफ इसलिए कदम नहीं उठाया जा रहा क्योंकि अगर उन्हें पदमुक्त किया गया तो वह खुलकर सामने आ सकते हैं और इसका असर पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है. 

वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष आश्चर्य जताते हैं कि संवैधानिक पद पर बैठा हुआ व्यक्ति जो कोई आम नेता नहीं है, अगर वह अपने कार्यकाल में राज्यों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाता है तो सरकार उसकी जांच क्यों नहीं करा रही है? न ही किसी बड़े नेता या मंत्री ने इसे लेकर कोई टिप्पणी की है. वह आशंका जताते हैं कि सरकार शायद डर रही है कि अगर जांच हुई तो कोई बड़ा खुलासा होगा जो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. यहां तक कि मलिक ने गोवा के मुख्यमंत्री पर भी अत्यंत गंभीर आरोप लगाये लेकिन वह भी बेअसर रहा. 

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि सत्यपाल मलिक अपने बयानों से सरकार के गले की हड्डी बन गये हैं लेकिन सरकार उन्हें हटाकर शहीद होने का अवसर नहीं देना चाहती. इसके साथ ही मलिक भी एक चतुर राजनेता की तरह यह कहते रहते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है. ऐसा कहकर वह गेंद को मोदी के पाले में डाल देते हैं और शायद इस तरह अपने लिए भविष्य की एक राह खोले रखना चाहते हैं. क्योंकि यह तो बुनियादी समझ की बात है कि भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले बिना उच्च स्तर से मंजूरी के नहीं पनपते हैं. 

वानखेड़े कहते हैं कि सत्यपाल मलिक बार-बार कहते हैं कि वह भ्रष्टाचार के मामलों से प्रधानमंत्री को अवगत कराते रहे हैं. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि हमेशा अपने शासन की ईमानदारी का दम भरने वाले प्रधानमंत्री को उनका तबादला क्यों करना पड़ रहा है. दरअसल सरकार चाहे तो उन्हें हटा भी सकती है लेकिन किसान आंदोलन के मौजूदा माहौल में उन्हें पद से हटाने का असर पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है. यही वजह है कि सरकार उन्हें हटाकर अपनी किरकिरी नहीं कराना चाहती. 

वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार इसे मौजूदा मोदी सरकार के संकट से निपटने के एक तरीके के रूप में देखते हैं. उनके मुताबिक सरकार सत्यपाल मलिक को धीरे-धीरे और चुपचाप हाशिए पर डाल देगी. इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सत्यपाल मलिक के इतने बड़े और गंभीर आरोपों के बावजूद इक्कादुक्का को छोड़कर किसी बड़े समाचार चैनल ने उनकी बातों को बहुत तवज्जो नहीं दी. जबकि यही बात अगर किसी विपक्ष शासित राज्य के बारे में कही जाती तो तमाम सरकारी एजेंसियों को काम पर लगा दिया जाता. 

कुल मिलाकर अगर संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति जो सत्ताधारी दल से ताल्लुक रखता है वह इतने गंभीर आरोप लगा रहा है तो उनकी जांच करवायी जानी चाहिये. लेकिन यह मामला सरकार के गले की हड्डी बन गया है जिसे न तो उगलते बन रहा है न ही निगलते. 
 

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