किसका खेल, खेल रहैं हैं पीके?

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किसका खेल, खेल रहैं हैं पीके?

पूजा सिंह  
सन 2014 के आम चुनाव के बाद भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद यदि कोई नाम सबसे अधिक चर्चा में रहा है तो वह हैं राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके). हाल के दिनों में अपने कुछ बयानों के कारण पीके नये सिरे से चर्चा में हैं और चूंकि वह सक्रिय राजनीति में आते दिख रहे हैं इसलिए उनके बयानों के निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं. 

सत्य हिंदी जनादेश चर्चा में इस पर चर्चा हुई .  इन दिनों पीके की राजनीति क्या है यानी वह किस दल ओर से चुनावी गुणा-गणित संभाल रहे हैं और उनकी खुद की राजनीति क्या है. चर्चा का संचालन किया वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने जबकि इसमें हिस्सा लिया चार अन्य वरिष्ठ पत्रकारों राजेश बादल, हरजिंदर, राघवेंद्र दुबे और श्रवण गर्ग ने. 

संचालक अंबरीश कुमार ने राजीव गांधी का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे भारतीय राजनीति में विज्ञापन एजेंसियों का इस्तेमाल बहुत पुरानी घटना है लेकिन प्रशांत किशोर ने उसे एकदम नये आयाम पर पहुंचा दिया है. उन्होंने कहा कि 2014 में भाजपा की जीत में प्रशांत किशोर के योगदान के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा गया है और एक अनुमान के मुताबिक अब वह एक सीट पर अपने आकलन और रणनीति तैयार करने के लिए दो से तीन करोड़ रुपये लेते हैं. ऐसे में उनकी ताजा सक्रियता के बाद अटकलों और अनुमानों का बाजार गर्म है. 

वरिष्ठ पत्रकार हरजिंदर ने कहा कि पीके अपने लिए नयी भूमिका की तलाश में हैं. पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान ही वह कह चुके हैं कि वह अब चुनाव रणनीतिकार के रूप में काम नहीं करेंगे. इससे प्रतीत होता है कि वह अब सक्रिय राजनीति में अपने लिए जगह देख रहे हैं. वह पहले जनता दल यूनाइटेड में रह चुके हैं और अब शायद किसी अन्य दल में अपने लिए जगह तलाश कर रहे हैं. बीच में कांग्रेस में उनके जाने की चर्चा थी लेकिन राहुल और प्रियंका को लेकर उनके हालिया बयानों से लगता है कि वहां बात नहीं जम सकी. 

हरजिंदर ने कहा कि प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के लिए काम किया, गोवा में जिस तरह कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो को वह तृणमूल कांग्रेस में ले आये और अब उनके कोलकाता से मतदाता बनने की खबर है. ऐसे में बहुत संभव है कि वह तृणमूल कांग्रेस से राज्य सभा में जायें. 

वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि प्रशांत किशोर विशुद्ध पेशेवर व्यक्ति हैं जो अनुबंध के आधार पर काम करता है. बहुत संभव है कि वह इस समय ममता बनर्जी, शरद पवार और अखिलेश यादव के लिए अनुबंध पर काम कर रहे हों और ऐसे में उनके हालिया बयानों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिये. 

उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर का कोई वैचारिक आधार नहीं है और वह एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं. प्रियंका और राहुल गांधी को लेकर उनके बयान यह बताते हैं कि कांग्रेस में उनके लिए कोई संभावना शेष नहीं है. ऐसे में यह देखना होगा ये बयान वास्तव में किसके पक्ष में जाते हैं. जाहिर है कि हालिया कुछ घटनाक्रम के बाद उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी का आकर्षण बढ़ा है. वह वोटों में तब्दील होगा या नहीं यह बात अलग है लेकिन प्रशांत किशोर का बयान बताता है कि वह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के हित में काम कर रहे हैं. 
वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने अनुमान जताया कि प्रशांत किशोर हिंदी भाषी प्रदेशों में तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव बढ़ाने की योजना का हिस्सा हो सकते हैं. उन्हें राजनैतिक रूप से महत्वाकांक्षी बताते हुए गर्ग ने कहा कि आने वाले दिनों में प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि यह स्थिति दोनों के लिए फायदेमंद होगी. प्रशांत किशोर को राजनीतिक जमीन मिलेगी और तृणमूल कांग्रेस को उत्तर भारत में एक बड़ा चेहरा मिलेगा और वह भी नये क्षेत्र में विस्तार कर सकेगी. 
गर्ग ने कहा कि विपक्ष के पास भी ममता बनर्जी के अलावा कोई चेहरा नहीं है. कांग्रेस के अलावा सभी दलों में उनकी स्वीकार्यता है. देश में इस समय मोदी के खिलाफ वैसी ही सत्ता विरोधी लहर है जैसी कांग्रेस के कार्यकाल में मनमोहन सिंह के खिलाफ थी. राज्यों में भी भाजपा सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. गर्ग ने कहा कि ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद कांग्रेस को विवश कर देंगी कि उन्हें विपक्षी पाले में प्रमुखता से शामिल किया जाये. 

उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर भाजपा के लिए काम नहीं कर रहे हैं बल्कि वह ममता बनर्जी को स्वीकार करने के लिए कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहे हैं और ममता को देशव्यापी पहचान दिलाने में वह अहम भूमिका निभा सकते हैं. गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र दुबे ने प्रशांत किशोर को पूरी तरह संदिग्ध करार देते हुए आशंका जताई कि वह आज भी भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 2014 के बाद प्रशांत किशोर जहां-जहां गये, वहां-वहां उन्होंने नुकसान पहुंचाने का काम किया. इसके उदाहरण के रूप में उन्होंने बिहार में जदयू से उनके जुड़ाव, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह से जुड़े हालिया घटनाक्रम का उदाहरण दिया. 

दुबे ने कहा कि यदि प्रशांत किशोर रणनीतिकार से राजनेता बनते हैं तो हमें उनके अतीत को ध्यान में रखना होगा क्योंकि कोई भी पार्टी उनको उसी कद के आधार पर कोई भूमिका सौंपेगी. चर्चा को समेटते हुए संचालक अंबरीश कुमार ने कहा कि बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने ही वास्तविक अंतर पैदा किया. उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर तृणमूल कांग्रेस की ओर से राजनीति करते प्रतीत हो रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी पर हमलों के लिए अखिलेश को उनकी जरूरत नहीं है. प्रियंका के तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस लड़ाई में नहीं नजर आ रही है. 

तमाम पैनलिस्टों की अलहदा राय के बावजूद एक बात जिस पर लगभग सभी सहमत थे वह यह कि प्रशांत किशोर अब चुनावी रणनीति बनाने के बजाय सीधे तौर पर राजनीति में अहम भूमिका निभाने के आकांक्षी हैं. ऐसे में रणनीतिकार के रूप में उनकी बहुप्रचारित सफलताओं को देखते हुए आने वाले समय में उनके कदमों पर नजर रखना होगी. 

 

 
 

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