दरभंगा न बसावट है , न ही शहर

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दरभंगा न बसावट है , न ही शहर

चंचल 
दरभंगा न बसावट है , न ही शहर .अरसे से यह मुहावरा बना हुआ है . वाडिंग्टन , दिल्ली , इस्लामाबाद की तरह . कारण है केवल एक राजपरिवार . उनके कारनामे , देश प्रेम , भविष्य के प्रति दूरदृष्टि और सघन कार्य क्षमता . दुनिया का यह पहला परिवार है जो खुद की अस्मिता के लिए एक भाषा देता है और उस भाषा की समृद्धि के लिए सब कुछ  करता है उन्मुक्त हाथ से . वह भाषा है  मैथिलि .  बिहार इस बड़े खेत्ते में जहां आज मैथिली सजी संवरी बैठी है यहां पहले तिरहुतिया का कब्जा था . रामायण की एक रचना तिरहुतिया में ही हुआ बाद वह मैथिलि में आई .  
    1 अक्टूबर को हमे इस राजघराने पर लिखना था लेकिन फेसबुक का हमारा पन्ना ,  और हम 30 सितंबर से  ही नजरबंद हो गए . आज तो हम माफी मांगने आये हैं ,  इस राजघराने की  माटी से . बेहिचक .  क्यों ?  
    कुल तीन वजह है -  
      हम  कि चंचल मूलतः कांग्रेस मन है .  
      दो - हम कि चंचल काशी विश्वविद्यालय से तालिबे इल्म  रहा है .  
       तीसरा और सबसे बड़ा कारण - गांधी हमारे पुरखों में सबसे  बड़ा चमकता  सितारा और इस गांधी का इस राजघराने से रिश्ता .  
    हमारे इन तीनो तारों का शिरा इस राजघराने से जुड़ा है . मुख्तसर में इशारा कर दूं बाकी आप खोजें -  
    1885 में कांग्रेस की नींव पड़ी . ये ओ ह्यूम , दादा भाई नौरोजी , सुरेंद्र नाथ बनर्जी इन लोंगो ने कांग्रेस की नींव रखी . अंग्रेजी साम्राज्य के कान खड़े हो गए . 1888 में इलाहाबाद में कांग्रेस का जलसा होना तय हुआ . अंग्रेज बहादुर ने फरमान जारी कर दिया इलाहाबाद के किसी भी सार्वजनिक स्थल पर कांग्रेस जलसा नही कर सकती .  कांग्रेस को  पहला सबक मिल रहा है - 
   ' उस साम्राज्य से टक्कर मत लो , जिसके राज में सूरज नही डूबता . '  
    इस चुनौती को स्वीकार किया  महाराज दरभांगा मरहूम लक्ष्मीश्वर सिंह ने और रातों रात इलाहाबाद में सबसे बड़ी हवेली खरीद कर कांग्रेस जलसे को सौंप दिया . कांग्रेस का जलसा हुआ , बाद में वह हवेली ही कांग्रेस के नाम कर दिया .  
    अंदाज लगाइए  दरभांगा के उस जज़्बे को जो अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती दे रहे थे . आज  के हालात से नाप लीजिये . एक तड़ीपार की हनक से बड़े बड़े की हेकड़ी सिकुड़ जा रही है तो उस जमाने मे हुकूमत का क्या जलवा रहा होगा , ? हम कि चंचल ,कांग्रेस मन एक अक्टूबर को दरभांगा को सलाम करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं .  
  दो - काशी विश्व विद्यालय की स्थापना , उसके तामीर होने की सम्पूर्ण जिम्मेवारी इसी दरभांगा के राजकोष पर खडी है . पिछले कुछ सालों से हमने संस्थापक महाराज रामेश्वर सिंह और उनके बाद उनके  सुपुत्र महाराज कामेश्वर सिंह के योगदान को भूल चुके हैं , जिनके अथक प्रयास का नतीजा है  , काशी विश्व विद्यालय .  
तीन - सारे दस्तावेज मौजूद हैं जो बताते हैं कि गांधी जी के क्या रिश्ते रहे है  इस राज घराने से और दरभांगा राजघराने ने कांग्रेस के साथ कितनी ईमानदारी से साथ निभाया आर्थिक मदद की . गांधी जी के साथ दरभांगा 1915 के पहले से ही जुड़ा है जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे . भारत वापसी के बाद यह रिश्ता इतना प्रगाढ़ हुआ कि गांधी जी सार्वजनिक रूप से महाराज कामेश्वर सिंग्घ को अपना पुत्र मानने लगे थे .  
     किस डगर से  गुजरी है कांग्रेस , इतिहास खुलेगा . 
 

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