कांग्रेस में खलफिशार फिर भी बीजेपी में बेचैनी

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कांग्रेस में खलफिशार फिर भी बीजेपी में बेचैनी

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! राजस्थान और छत्तीसगढ की वजह से कांग्रे्रस में पहले से ही बड़े पैमाने पर उठापटक मची थी अट्ठाइस सितम्बर को कन्हैया कुमार और गुजरात के आजाद मेम्बर असम्बली और मशहूर दलित लीडर जिग्नेश मेवानी कांगे्रस में शामिल हो रहे थे इससे पार्टी में जोश था लेकिन उसी दिन पंजाब कांग्रेस का झगड़ा इतना बढा कि महज सवा महीने पहले ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस के सदर बने नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने ओहदे से इस्तीफा देकर पार्टी के सारे जोश पर पानी फेर दिया. इससे महज एक हफ्ता कब्ल ही कांगेे्रस ने पंजाब की तारीख में पहली बार एक दलित लीडर चरणजीत सिंह चन्नी को वजीर-ए-आला बनाकर भारतीय जनता पार्टी पर जबरदस्त सियासी दबाव बनाया था क्योकि बीजेपी ने किसी भी दलित को किसी भी प्रदेश में चीफ मिनिस्टर नहीं बना रखा है. कांगे्रस का यह मास्टर स्ट्रोक है क्योकि पंजाब की एक-तिहाई आबादी दलित तबके की है. कांग्रेस के इस मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी ही नहीं चुनावी गठजोड़ कर चुके अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के अलावा पंजाब मंे अपनी ताकत में इजाफा करने के लिए उतावली आम आदमी पार्टी भी सकते में आ गई. सिद्धू के इस्तीफे ने इन तमाम कामयाबियों पर पानी फेरने का काम किया क्योकि सिद्धू की लाबिंग की वजह से सबसे सीनियर लीडर और पंजाब के चीफ मिनिस्टर कैप्टन अमरिन्दर सिंह को अपने ओहदे से इस्तीफा देना पड़ा था. कैप्टन के जाने के बाद सिद्धू ने सियासी खुदकुशी कर ली और पंजाब में कांग्रेस की सियासत को मझधार में डाल दिया. मजमूई तौर पर देखा जाए तो कांगे्रस इस वक्त जबरदस्त खलफिशार का शिकार है. लेकिन बेचैनी भारतीय जनता पार्टी में ज्यादा दिखाई पड़ रही है. इसी लिए शायद मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह ने उनतीस सितम्बर को अमरिन्दर सिंह से एक घंटे की तवील मुलाकात करके इन अफवाहों को जनम दे दिया कि कैप्टन अमरिन्दर सिंह बीजेपी में जा भी सकते हैं और बीजेपी की मदद से अपनी अलग पार्टी भी बना सकते हैं. पंजाब में बीजेपी इस वक्त इंतेहाई कमजोर हालत में है लेकिन अमरिन्दर सिंह ने उसमें कुछ जान जरूर डाल दी है. 
कांग्रेस में मचे खलफिशार में उनतीस सितम्बर को और भी ज्यादा इजाफा तब हो गया जब सीनियर लीडर और नाराज तेइस लीडरान के कायद गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस सदर सोनिया गांधी को खत लिखकर पार्टी वर्किंग कमेटी की मीटिंग बुलाने का मतालबा कर डाला उन्होने कहा कि पार्टी में जो कुछ हो रहा है वर्किंग कमेटी में इसपर गौर करने की सख्त जरूरत है. तेइस नाराज लीडरान में शामिल सीनियर लीडर कपिल सिब्बल ने उसी दिन प्रेस कांफ्रेंस करके सवाल खड़ा कर दिया कि जब पार्टी में इस वक्त कोई मुस्तकिल सदर ही नहीं है तो फिर यह तमाम अहम फैसले कौन कर रहा है. एक सवाल के जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि वह जी-तेइस लीडरान में शामिल हैं लेकिन जी-हुजूरी मंे शामिल नहीं हैं. कपिल सिब्बल ने कहा कि कई अहम और गांधी परिवार के नजदीकी लोग पार्टी छोड़ कर चले गए या जाने वाले हैं आखिर इसकी वजह क्या है? हमें इस पर गौर करना चाहिए कि जाने वालों ने गलती की है या फिर पार्टी से कोई कोताही हो रही है. 
कांग्र्रेस के नजदीकी जराए का कहना है कि पंजाब की तरह अब किसी भी दिन राजस्थान के चीफ मिनिस्टर अशोक गहलौत को भी हटाया जाने वाला है. पंजाब में तब्दीली के बाद राहुल गांधी ने राजस्थान के नाराज लीडर सचिन पायलेट से मुलाकात की तो इन अफवाहों को और भी पर लग गए कि जल्द ही अशोक गहलौत भी कैप्टन अमरिन्दर सिंह की जमात में शामिल हो जाएंगे. इन दोनों में बड़ा फर्क है गहलौत बहुत ही शातिर सियासतदां हैं पार्टी के मेम्बरान असम्बली पर उनकी मजबूत पकड़ तो है ही वह अपने ही आधा दर्जन से ज्यादा लोगों को आजाद उम्मीदवार की हैसियत से लड़वाकर जितवा चुके हैं. वह सब भी उनके साथ हैं. उनकी और कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सियासी सूरतेहाल में जमीन आसमान का फर्क है. कैप्टन महाराजा की तरह पार्टी और सरकार चला रहे थे मेम्बरान असम्बली और वजीरों तक से मुलाकात नहीं करते थे इसीलिए उनके साथ सिर्फ पन्द्रह मेम्बरान असम्बली ही मजबूती से खड़े रहे. गहलौत के साथ ऐसा नहीं है और सचिन पायलेट के साथ डेढ दर्जन मेम्बरान ही हैं. 
खबरें यह भी आईं कि पार्टी सिद्धू को मनाने की भरपूर कोशिश कर रही है. अगर ऐसा हुआ और पार्टी ने सिद्धू को दोबारा पार्टी का सदर बनाए रखने का फैसला किया तो यह पार्टी के लिए जहर ही साबित होगा. सिद्धू न तो कोई संजीदा शख्स हैं और न बकौल अमरिन्दर सिंह वह कोई मुस्तकिल मिजाज शख्स हैं वह बना बनाया खेल खराब तो कर सकते हैं बिगड़ा खेल बनाने की उनके अंदर न तो सलाहियत है और न ही मिजाज. उन्हें सदर बनाने की जो गलती पार्टी ने की थी अच्छा हुआ उन्होने ही उस गलती की इस्लाह कर दी. 
कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी के कांगे्रस में शामिल होने से पार्टी को यकीनन फायदा पहुंचेगा. इस वक्त पार्टी में कन्हैया की तरह बोलने वाला दूसरा कोई लीडर नहीं दिखता है. यही हालत जिग्नेश मेवानी की है वह दलित हैं पढे लिखे हैं अच्छा बोलते हैं जिग्नेश और हार्दिक पटेल मिलकर गुजरात में पार्टी को काफी फायदा पहुचा सकते हैं अगले साल के आखिर में गुजरात असम्बली का एलक्शन होना है. दलित, बैकवर्ड, पाटीदार और मुसलमान मिलकर बीजेपी के लिए बड़ा चैलेेज साबित हो सकते हैं. 
कांग्रेस सदर सोनिया गांधी को लिखे खत में सिद्धू ने कहा है कि वह पार्टी की खिदमत करना जारी रखेंगे. सिद्धू ने इसी साल जुलाई में पार्टी की प्रदेश इकाई के सदर का ओहदा संभाला था. उन्होंने खत में लिखा, ‘किसी भी शख्स के किरदार की गिरावट समझौतों से शुरू होती है, मैं पंजाब के मुस्तकबिल और पंजाब की बहबूद के एजेंडा को लेकर कोई समझौता नहीं कर सकता हूं. इसलिए, मैं पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदर के ओहदे से इस्तीफा देता हूं. कांग्रेस की खिदमत करना जारी रखूंगा.’ अभी यह वाजेह नहीं हो पाया है कि सिद्धू को किस वजह से पंजाब कांग्रेस सदर का ओहदा छोड़ना पड़ा है. सिद्धू के करीबी लोगों ने द वायर  को बताया कि उनके इस्तीफे की एक बड़ी वजह यह है कि वह नई वजारत में शामिल किए गए नामों से खुश नहीं थे. रियासत के पहले दलित वजीर-ए-आला की शक्ल में चरणजीत सिंह चन्नी ने हलफ लेने के बाद कई नए कैबिनेट वजीर बनाए हैं. जैसा कि द वायर ने पहले भी रिपोर्ट किया था कि नई वजारत के हलफ लेने के बाद सिद्धू को पार्टी के अंदर और बाहर दागी कांग्रेस लीडर राणा गुरजीत सिंह की तकर्रूरी को लेकर बड़ी तनकीद का सामना करना पड़ रहा था, जिन पर उनकी अपनी पार्टी के लीडरान ने इल्जाम लगाया था कि वह रेत माफिया के सरगना हैं. उनके करीबियों का दावा है कि सिद्धू ने राणा की तकर्रूरी के खिलाफ नए चीफ मिनिस्टर और मरकजी कयादत दोनों को आगाह किया था. हालांकि जब उनकी अनदेखी की गई तो उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया. उन्होंने कहा, ‘सिद्धू बदउनवानी को लेकर समझौता नहीं कर सकते हैं. वह कभी भी दागी रिकार्ड वाले लोगों को बर्दाश्त या बढ़ावा नहीं देंगे, बल्कि पंजाब की बहबूद के लिए अपने ओहदे को कुर्बान करेंगे.’ सिद्धू के करीबी लोगों ने यह भी इल्जाम लगाया कि नए चीफ मिनिस्टर ने राणा की तकर्रूरी को सही ठहराया. कांग्रेस के जराए ने कहा कि उनके नाम को पार्टी आलाकमान ने आगे बढ़ाया और चन्नी बाद में इसमें शामिल हो गए. कांग्रेस के सात मेम्बरान असम्बली के जरिए सिद्धू को लिखे खत से पता चलता है कि राणा क्यों मुतनाजा हैं. सुखपाल खैरा समेत पार्टी के सात मेम्बरान असम्बली ने कहा कि अवाम और कांग्रेस कैडर राणा के शामिल होने से नाखुश हैं. राणा को जनवरी 2018 में अमरिंदर सिहं की वजारत से हटा दिया गया था. उनके परिवार और उनकी कंपनियों पर माइनिंग घोटाले का इल्जाम लगा था. अमरिंदर सिंह ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सदारत से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के बाद पार्टी कयादत पर तंज करते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही बता दिया था कि सिद्धू मुस्तकिल मिजाज शख्स नहीं हैं. उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैंने आपसे कहा था. वह मुस्तकिल मिजाज शख्स नहीं है और सरहदी रियासत पंजाब के लिए वह मुनासिब भी नहीं है.’ वहीं आम आदमी पार्टी (आप) ने दावा किया कि पंजाब कांग्रेस की सदारत से नवजोत सिंह सिद्धू ने इसलिए इस्तीफा दिया कि वह इस बात को ‘कुबूल नहीं कर पाए’ कि एक दलित को रियासत का वजीर-ए-आला बनाया गया है. रियासत में अगले साल की शुरुआत में असम्बली चुनाव होने वाले हैं. आम आदमी पार्टी के तर्जुमान सौरभ भारद्वाज ने मीडिया से कहा, ‘यह दिखाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू दलितों के खिलाफ हैं. एक गरीब का बेटा वजीर-ए-आला बना. यह सिद्धू बर्दाश्त नहीं कर सके. यह बहुत तकलीफदेह है.’जदीद मरकज़ 

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