कांग्रेस के दलित कार्ड से परेशान हुए मुखालिफीन

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कांग्रेस के दलित कार्ड से परेशान हुए मुखालिफीन

हिसाम सिद्दीकी 
चण्डीगढ. कांग्रेस ने दलित लीडर चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया वजीर-ए-आला बनाकर ऐसा दांव चला कि अकाली दल, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी सभी चारों खाने चित हो गए. बीएसपी सुप्रीमो मायावती और भारतीय जनता पार्टी तो जैसे बिलबिला उठे. चन्नी के साथ सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओ पी सोनी को नायब वजीर-ए-आला बनाया गया है. तीनों को गवर्नर बनवारी लाल पुरोहित ने बीस सितम्बर को राजभवन में हलफ दिलाया. इस मौके पर कांग्रेस लीडर राहुल गांधी और पंजाब मामलात के इंचार्ज हरीश रावत भी चंण्डीगढ में मौजूद थे. कांग्रेस ने एक दलित लीडर को वजीर-ए-आला बनाकर रियासत के तकरीबन तैंतीस फीसद दलितों को तो खुश कर लिया लेकिन साबिक वजीर-ए-आला और सीनियर कांग्र्रेस लीडर कैप्टन अमरिन्दर सिंह की नाराजगी दूर नहीं कर पाई. चन्नी की हलफ बरदारी के प्रोग्राम में अमरिन्दर सिंह शामिल नहीं हुए, हालांकि देश में यह रिवाज है कि नए वजीर-ए-आला की हलफ बरदारी के प्रोग्राम में हटने वाला वजीर-ए-आला जरूर मौजूद रहता है. बीजेपी ने अपनी परेशानी को छुपाने के लिए कहा कि दलित वोटों को हासिल करने के लिए कांग्रेस ने कुछ ही महीनो के लिए चन्नी के सर पर कांटों का ताज रखा है. मायावती इतना बिलबिला गईं कि फौरन मीडिया के सामने आकर उन्होने कहा कि चन्नी को वजीर-ए-आला बनाना कांग्रेस का चुनावी पैंतरा है दलितो को कांग्रेस की नीयत से होशियार रहना चाहिए. 
19 सितम्बर को कैप्टन अमरिन्दर सिंह के इस्तीफे के बाद से ही नए वजीर-ए-आला के नाम के अंदाजे लगने लगे थे. कांग्रेस आला कमान ने सीनियर लीडर अंबिका सोनी को वजीर-ए-आला बनाने के लिए कहा था, लेकिन अंबिका सोनी इसके लिए तैयार नहीं हुई. सुनील जाखड़ और सुखजिन्दर सिंह रंधावा के नाम की भी कयास आराइयां होती रहीं, लेकिन आखिर में चन्नी के नाम पर मोहर लगाकर सबकों हैरत में डाल दिया. वजीर-ए-आला बनने के बाद अपनी पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि पंजाब के गरीबों और किसानों के बकाया बिजली और पानी के बिल माफ करने का फैसला किया गया है. बिजली बिल की अदाएगी न होने से जिन किसानों और गरीबों के मीटर बिजली मोहकमे ने निकाल लिए थे, उन्हें फिर से लगाया जाएगा. उन्होने कहा कि किसानों के ट्यूबवेल की बिजली मुफ्त की जाएगी बेरोजगारों के रोजगार का बंदोबस्त किया जाएगा. दिहाड़ी मजदूरों की हर मुमकिन मदद होगी. 
अपोजीशन पार्टियां जितना चन्नी के वजीर-ए-आला बनाए जाने पर बौखलाई थी उससे ज्यादा बौखलाहट उनमें चन्नी के एलानात सुनकर हो गई. अपोजीशन पार्टियां जितनी बेचैन दिख रही थीं उससे ज्यादा बौखलाहट गुलाम टीवी चैनलों के रिपोर्टर्स, एंकर व एंकरनियांं में दिखी, सभी अपने-अपने हिसाब से कांग्रेस के इस फैसले को कांग्रेस की मफादपरस्ती करार देने में जुटे हुए थे. पंजाब में तैंतीस से चालीस फीसद तक दलित आबादी बताई जाती है. 2017 के एलक्शन में पंजाब की 34 रिजर्व असम्बली सीटों में से बाइस (22) सीटें कांग्रेस ने जीती थी. इस बार फिर कुछ इसी तरह या इससे बेहतर नतीजे आने की उम्मीद कांग्रेस पार्टी कर रही है. यही बात अपोजीशन पार्टियों खुसूसन बीएसपी को नागवार गुजर रही है. 
पंजाब में अब तक जो पन्द्रह वजीर-ए-आला हुए हैं, उनमें एक भी दलित नहीं हुआ. ज्ञानी जैल सिंह भी रमगढिया सिख थे, दलित नहीं थे. पंजाब के दलित लीडर सरदार बूटा सिंह, मरकजी  सरकार में होम मिनिस्टर जैसे अहम ओहदे पर तो रहे लेकिन वह भी कभी वजीर-ए-आला नहीं बन पाए. चरणजीत सिंह चन्नी सिर्फ कहने के दलित लीडर नहीं हैं उन्होने हर मौके पर दलितों के हक की आवाज उठाई, 2017 में कैप्टन अमरिन्दर सिंह की कयादत में पंजाब में कांग्रेस सरकार बनने के बाद चन्नी बार-बार यह कहते रहे कि पंजाब आबादी के एतबार से न तो नौकरशाही में दलितों की नुमाइंदगी है न ही वजारत में. इसे ठीक किया जाना चाहिए. वह कहते थे कि जिला सतह के सरकारी दफ्तरों में भी दलितों को उनकी आबादी के हिसाब से नुमाइंदगी मिलनी चाहिए. उनकी सुनवाई नहीं हुई तो वह अमरिन्दर सिंह के सख्त मुखालिफ हो गए और उन्हें हटाने की मुहिम चलाने लगे. 2017 में कांग्रेस सरकार बनने तक चन्नी पंजाब असम्बली में लीडर आफ अपोजीशन भी रहे. 
पंजाब में बीएसपी ने अकाली दल के साथ इंतखाबी गठजोड़ कर रखा है. दोनों में समझौता होने के दिन ही अकाली दल ने एलान किया था कि अगर सरकार बनी तो किसी दलित को डिप्टी चीफ मिनिस्टर बनाया जाएगा. आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने भी ऐसे ही एलानात किए थे. कांग्रेस ने इनसब पर जबरदस्त चोट करते हुए एक दलित को सीधे वजीर-ए-आला ही बना दिया. बीजेपी इसलिए बौखला गई कि इस वक्त पूरे देश की जितनी भी रियासतों में बीजेपी की सरकार है उनमें एक भी चीफ मिनिस्टर या डिप्टी चीफ मिनिस्टर दलित नहीं है. बीजेपी को अब यह खौफ हो गया है कि कांग्रेस पंजाब के दलितों में तो इस कदम से फायदा उठा ही लेगी पूरे देश में भी उसे फायदा होगा. इससे पहले कांग्रेस कर्नाटक में वीरप्पा मोइली और महाराष्ट्र में सुशील कुमार शिंदे को वजीर-ए-आला बना चुकी है. लेकिन बीजेपी ने कहीं भी किसी दलित को वजीर-ए-आला नहीं बनाया. 
मायावती को यह खौफ है कि उन्होने दलित वोटों के भरोसे पंजाब मे शिरोमणि अकाली दल के साथ चुनावी गठजोड़ किया था अब उसका मकसद पूरा होता नहीं दिखता. इसीलिए बीस सितम्बर को चन्नी के नाम का एलान होते ही वह मीडिया के सामने आई और कहा कि यह कांग्रेस का चुनावी पैंतरा है. चन्नी को चीफ मिनिस्टर बनाना महज एक चाल है. दलितों को कांग्रेस की चाल समझकर उसके चक्कर मे नहीं पड़ना चाहिए. उन्होने हवाई दावा करते हुए कहा कि 2022 के असम्बली एलक्शन में अकाली दल और बीएसपी मिलकर कांग्रेस का सफाया कर देंगे और उनकी चाल को कामयाब नहीं होने देंगे.जदीद मरकज

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