शिकस्त के खौफ से हटे रूपाणी

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शिकस्त के खौफ से हटे रूपाणी

हिसाम सिद्दीकी 
गांधीनगर! महज पन्द्रह महीने बाद होने जा रहे गुजरात असम्बली के एलक्शन में बीजेपी की बुरी तरह शिकस्त के खौफ में वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने अपने नजदीकी वजीर-ए-आला विजय रूपाणी को अचानक हटाकर महज चार साल कब्ल पहली बार मेम्बर असम्बली बने भूपेन्द्र पटेल को नया वजीर-ए-आला बनवा दिया. खौफ का आलम यह कि नई वजारत में रूपाणी की वजारत के एक भी वजीर को नई वजारत में जगह नहीं दी गई. सोलह सितम्बर को जिन बाइस लोगों को वजीर बनाया गया वह सभी पहली बार वजीर बने हैं. विजय रूपाणी ने दो किस्तों में वजीर-ए-आला की कुर्सी पर पांच साल मुकम्मल कर लिए थे. जिस दिन रूपाणी को हटाया गया सुबह से ही वह मीटिंगों में मसरूफ थे. उन्हें इस बात का गुमान भी नहीं था कि उसी दिन उन्हें कुर्सी छोड़ने का हुक्म मिलने वाला है. दोपहर में उन्हें दिल्ली से कहा गया कि वह फौरन राजभवन पहुंचकर गवर्नर को अपना इस्तीफा सौंप दें. रूपाणी तीन बजे गवर्नर हाउस पहुंचे तो वहां मीडिया के नाम पर वजीर-ए-आजम मोदी की नजदीकी समझी जाने वाली एक ए एनआई की टीम ही मौजूद थी बाकी मीडिया को उनके इस्तीफे के कानोकान खबर नहीं थी. कांग्रेस लीडर हार्दिक पटेल ने कहा है कि आरएसएस और बीजेपी ने एक खुफिया सर्वे करवाया है जिसका नतीजा यह आया है कि अगले साल दिसम्बर में होने वाले असम्बली एलक्शन में असम्बली की एक सौ बयासी (182) सीटों में से बीजेपी को सिर्फ अस्सी से चौरासी (80-84) सीटें और अड़तीस (38) फीसद वोट मिलने की उम्मीद है. दूसरी तरफ कांग्रेस को तैतालीस (43) फीसद वोट और छियान्नवे से सौ (96-100) तक सीटें आने की उम्मीद है. उन्होने कहा कि इसी सर्वे से खौफजदा होकर मोदी ने रूपाणी को हटाया है. 
सभी जानते हैं कि गुजरात में चीफ मिनिस्टर कोई भी हो उसकी हैसियत कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होती. वहां सबकुछ तेरह साल तक वजीर-ए-आला रहे आज के वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह के इशारों पर होता है. इसीलिए शिकस्त के खतरे की वजह से कठपुतली वजीर-ए-आला विजय रूपाणी को हटाने से पार्टी का भला नहीं होने वाला. अगर बीजेपी-आरएसएस के खुफिया सर्वे में बीजेपी की शिकस्त दिख रही है तो यह शिकस्त वजीर-ए-आजम मोदी और अमित शाह की शिकस्त की ही शक्ल में देखी जानी चाहिए. यह भी सही है कि 2014 और 2019 में नरेन्द्र मोदी की जो मकबूलियत (लोकप्रियता) थी अब वह एक-चौथाई भी नहीं रह गई है. 
गुजरात माडल एक बार फिर आैंधे मुंह गिरा है. गुजरात की तरक्की का जो प्रोपगण्डा किया गया था उसकी सारी पोल पट्टी तो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ही उस वक्त खुल गई थी जब सरकार की नाकामियां और लापरवाई की वजह से गुजरात में तकरीबन साढे चार लाख लोगों की मौत हो गई. सरकार ने मौतों का असल आंकड़ा छुपाया और मरने वालों की तादाद सोलह हजार ही बताई. इस झूट की वजह से देश ही नहीं पूरी दुनिया में गुजरात की बदनामी हुई. दैनिक भास्कर ने मुख्तलिफ जिलों में जारी डेथ सर्टिफिकेट की बुनियाद पर खबर दी थी कि प्रदेश में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद साढे चार लाख से ज्यादा है. एक सहाफी ने खबर शाया कर दी कि कोविड से निपटने में नाकाम वजीर-ए-आला रूपाणी को हटाकर उनकी जगह किसी और को वजीर-ए-आला बनाया जाएगा तो रूपाणी ने उसके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा लिखवा दिया था. 
कोविड-19 के अलावा गुजरात मे कारोबार तकरीबन तबाह हो चुका है. महंगाई और बेरोजगारी ने पूरे प्रदेश के नौजवानों की कमर तोड़ रखी है. बड़ी तादाद में एमएसएमई यानी छोटी सनअती इकाइयां बंद हो चुकी हैं. जिसकी वजह से बहुत बडी तादाद में नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं. यह वह अस्ल वजूहात हैं जिनकी वजह से गुजरात में बीजेपी मुसलसल कमजोर होती जा रही है. विजय रूपाणी को दिल्ली की हिदायत पर हटना पड़ा है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगता है कि इस्तीफा देने के बाद विजय रूपाणी ने मीडिया को जो बयान दिया उसकी शुरूआती पांच सतरों (लाइनों) में वह मोदी मोदी ही गाते रहे. मसलन उन्होने कहा कि वजीर-ए-आजम मोदी की कयादत और रहनुमाई में काम करूंगा. वजीर-ए-आजम मोदी की कयादत में गुजरात को आगे लेकर जाएंगे. सवाल यह है कि वह जब कुछ रहे ही नहीं तो गुजरात को आगे कैसे ले जाएंगे. उन्होने कहा कि वजीर-ए-आजम की खुसूसी रहनुमाई में उन्हें काम करने का मौका मिला इसके लिए वह वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के शुक्रगुजार हैं. अब भी वह पीएम की कयादत और रहनुमाई में ही काम करेंगे. खबर है कि यह बयान उन्हें दिल्ली से लिखकर भेजा गया था. 
वजीर-ए-आजम मोदी और अमित शाह ने कई सीनियर पटेल लीडरान को नजर अंदाज करके भूपेन्द्र पटेल को वजीर-ए-आला बनाया है. वह पहली बार जीत कर असम्बली पहुचे हैं. वह गढवा पाटीदार समाज से आते हैं. जिस समाज का गुजरात के आम लोगों पर गहरा असर बताया जाता है. उन्हें शायद इस ख्याल से वजीर-ए-आला बनाया गया है कि अवाम उनके बारे में कुछ जानते नहीं हैं इसलिए पन्द्रह महीने इसी में गुजर जाएंगे कि शायद वह गुजरात के लिए कुछ कर सके. केशुभाई पटेल को 1997 में वजीर-ए-आला बनाया गया था. महज चार सालों में ही 2001 में उन्हें हटाकर नरेन्द्र मोदी को सत्ता सैंप दी गई थी. मोदी तकरीबन तेरह साल तक चीफ मिनिस्टर रहे लेकिन 2014 में उनके वजीर-ए-आजम बन जाने के बाद आनंदी बेन पटेल को वजीर-ए-आला बनाया गया. वह तकरीबन ढाई साल वजीर-ए-आला रहीं फिर उन्हें हटाकर विजय रूपाणी को सत्ता सौंप दी गई. इस तरह पाटीदार समाज के हाथों में गुजरात की सत्ता उतने दिनों तक नहीं रही जितना यह समाज चाहता था.जदीद मरकज़  


 

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