पंकज चतुर्वेदी
मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत के बाद कई लोग बड़े व्याकुल हैं . कई टीवी चेहरे और साम्प्रदायिक विचारधारा के लम्पट लोग सारी भीड़, भाषण और निर्विघ्न आयोजन के आधे मिनिट के भाषण से नफरत के चूल्हे को फूंक जा रहा है. व्हाट्सएप के ज्ञानी और टीवी से प्रभावित लम्पट सम्प्रदाय को चौधरी महेंद्रसिंह टिकैत की सभाएं तो देखी नहीं , जिसमें अल्लाह हो अकबर और हर हर महादेव के नारे साथ लगते थे. पश्चिमी यूपी में कोई 28 फीसदी मुस्लिम हैं और वहां के कृषक समाज के अंग थे. 2013 के दंगों ने न केवल सामाजिक ताना बाना बल्कि आर्थिक बिखराव भी पैदा किया.
टिकैत की सभाओं भवन यही होता था कि हिन्दू अल्लाह हो-- का नारा देता तो मुस्लिम जवाब में महादेव की गूंज करते. यही हुआ 5 सितंबर को. कहने की जरूरत नहीं कि इस आयोजन में समाज के हर वर्ग, मुस्लिम ने भी पंचायत में आये लोगों की जमकर मेहमान नवाजी की.
दंगाई और देश द्रोही कभी इस तरह का परिवेश पसंद नहीं करते. हो सकता है एक आध बिका हुआ मौलाना भी खड़े हो कर महादेव के नारे पर कोई धार्मिक बयान दे दे.
याद करें सिंघु या टिकरी बॉर्डर पर जो बोले सो निहाल-- के नारे सारे दिन गूंजते हैं, उसे किसी को दिकक़त होती नहीं, फिर अल्लाह हो अकबर से आपत्ति उठाने वाले ऐसा क्यों करते हैं?
याद करें, शाहीन बाग में भी अल्लाह वाले नारे पर कुछ को ऐतराज था. जान लें भारत में राष्ट्रवाद और जन जागरण के लिए धार्मिक नारों और प्रतीकों का इस्तेमाल होता रहा है और उसके बगैर आम लोगों को विचार से जोड़ना सम्भव नहीं होता. राम राम, सतश्री अकाल या अल्लाह हो अकबर असल में धर्म ही नहीं, हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. भावना पवित्र होना चाहिए. पंथ निरपेक्षता का अर्थ नास्तिकता नहीं होता. दूसरे की धार्मिक भावना का सम्मान करना और बराबरी का दर्जा देना ही देश की ताकत है.
साथ में बोलें
अल्ला हो अकबर
हर हर महादेव
सतश्री अकाल
जय भीम
जय जगत
जय प्रेम.
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