चंचल
नीचे आपका एक ट्वीट है . भारत विभाजन की त्रासदी पर . आजादी के बाद इस काम को तत्काल सरकार को कर देना चाहिए था , लेकिन उसने नही किया . दो कारण हो सकते है , एक - अंग्रेज गुलामी से मुक्त हुए भारत के पास समस्याओं का अंबार था , उसे सुलझाना था , शरणार्थियों की अनेक समस्याएं थी आर्थिक रूप से बिपन्न भारत मिला था , इन्ही के साथ नए भारत के निर्माण का सपना पूरा करना था . दूसरा कारण रहा होगा जिसे कांग्रेस ने लम्बी लड़ाई से सीखा है पाप से घृणा करो पापी से नही . जो भी लोग या सोच भारत विभाजन के जिम्मेवार रहे उन्हें अपने इस 'पाप ' का एहसास हो चुका था , प्रत्यक्ष या परोक्ष वे इसे स्वीकार करने लगे थे , प्रकान्तर से ही सही .
सबसे पहले हम कांग्रेस की ही बात लें . कांग्रेस ने गृह युद्ध की आशंका और रक्तपात की भीषण कल्पना से भयभीत हो गए थे , मुस्लिम लीग के नए नए बनाये गए ' मुसलमान ' जनाब मोहम्मद अली जिन्ना की ' सीधी कार्यवाही ' ( डायरेक्ट ऐक्शन ) से जो रक्तपात चल रहा था , उसे रोकने का उपाय कांग्रेस को बटवारा स्वीकार करने में दिखा . कांग्रेस के अंदर का ही समाजवादी कांग्रेस ने कांग्रेस के इस बटवारे के खिलाफ खड़े गांधी जी के साथ रहा . डॉ लोहिया ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस का नेतृत्व बूढ़ा हो चुका था , वह जल्दबाजी में आजादी देखना चाहता था . कांग्रेस और बंटवारे का दस्तावेज सामने है . बाद में कांग्रेस के उन्ही नेताओं ने पश्चाताप किया और स्वीकार किया कि हम इतना भी अनुमान नही लगा सके कि , बंटवारे के फैसले के बाद इतने जन , धन की हानि होगी . अगर यह हम सोच पाए होते तो लीग की गृहयुद्ध की नियति का जवाब किसी और तरीके से दे देते और गांधी के उस प्रस्ताव को मान लेते जिसमे वे बटवारे का सख्त विरोध कर रहे थे . कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक का हवाला राज मोहन गांधी , और डॉ लोहिया ने अपनी अपनी किताब में दे दिया है . हम उस पर विस्तार से नही जांयँगे संक्षेप में -
देश मे जातीय दंगे हो रहे हैं , चारो तरफ धार्मिक उन्माद का धुँआ भरा पड़ा है . देश गृह युद्ध मे खड़ा था . अंग्रेज आजादी का पैगाम लेकर खड़ा है . भारत की खूबी ( उसकी विविधता ) खराबी में तब्दील हो चुकी थी - ' भारत दो धर्मों का देश है हिन्दू और मुसलमान ' 1930 के पहले ही 'दो राष्ट्र ' के सिद्धांत की परिकल्पना हिन्दू महासभा के नेता सावरकर कर चुके थे . इसी को बेस बनाकर चर्चिल की सरकार ने गोलमेज सम्मेलन में ही मुसलमानो को हवा देना शुरू कर दिया था . चर्चिल का खेल चल निकला - जिन्ना का पाकिस्तान , अम्बेडकर का अछूतिस्तान वगैरह ये सब चर्चिल की चाल रही .
47 तक आते आते हिन्दू मुसलमान के बीच तनाव की लकीर खींचने में चर्चिल सफल रहा . कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक है . गांधी जी 1934मके ही कांग्रेस से अलग हो चुके हैं इस करार के साथ कि कांग्रेस को जब कभी हमारी जरूरत महसूस हो वह हमें बुला सकती है . गांधी जी आमंत्रित सदस्य के रूप में कार्य कारिणी में बिलाये गए है , कांग्रेस की सदारत कर रहे हैं जे बी कृपलानी . यहां कार्यकारिणी में एक झड़प होती है , राममनोहर लोहिया और जे पी एक तरफ है , पंडित नेहरू और सरदार पटेल दूसरी तरफ . गांधीजी ने हाल में पहुचते ही सवाल पूछा - आप लोंगो ने इतना बड़ा फैसला ( बटवारे ) ले लिया , हमे बताया तक नही ? इस पर पंडित नेहरू ने कहा आपको हमने इशारतन बता दिया था . गांधी जी बोले हमें बिल्कुल नही बताया गया . यहां जे पी ने बापू का समर्थन किया तो पंडित नेहरू ने घुडुक दिया जे पी चुप हो गए . तब डॉ लोहिया गुस्से में पंडित नेहरू और पटेल दोनो से उलझ गए . बीच बचाव किया गांधी जी ने . गांधी जी ने यहां दो प्रस्ताव रखे - एक - अंग्रेज यहां से चले जांय , हम आपस मे बटवारा कर लेंगे . दो - कांग्रेस दो राष्ट्र के सिद्धांत को नही मानती . गांधी जी का यह दोनो प्रस्ताव गजब की राजनीतिक सोच की दूरदर्शिता बताती है जिसका आंकलन आज तक हो रहा है .
संघ क्या कर रहा था ? हिन्दू महासभा , संघ , और लीग मिल कर अंग्रेजी हुकूमत का साथ दे रहे थे . बंगाल में लीग की सरकार है और श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस सरकार में मंत्री है . कांग्रेस के 42 भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के.लिए मुखर्जी का खत सार्वजनिक हो चुका है . 9 अगस्त की पोस्ट हमने उस खत को जस का तस छापा है . सावरकर वजीफ़ा ले कर काम कर रहे हैं . बटवारे का खुला समर्थन हो रहा है हिन्दू संगठनों की तरफ से . लीग का नारा है - मुसलमानों पाकिस्तान चलो , संघ का नारा है - मुसलमानों भारत छोड़ो .
और साम्यवादी ? ये शुरू से ही राष्ट्रीय नही रहे , साम्यवादी अपने को अंतरराष्ट्रीय कहते हैं . द्वितीय विश्व युद्ध मे साम्यवादी रूस हिटलर के खिलाफ जाकर
' मित्र राष्ट्रों 'के साथ खड़ा हो गया जिसके चलते साम्यवादियों ने भारत मे कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ , अंग्रेज सरकार का साथ देने लगे . इतना ही नही साम्यवादियों ने बटवारे का खुला समर्थन भी किया .
मोदी जी ! इतिहास कुरेद कर आपने अच्छा किया कि लोग विशेष कर वह पीढ़ी जिसे यह बताया गया है बटवारा गांधी जी ने कराया या कांग्रेस जिम्मेदार है . यह सवाल उठाने के.लिए आपको धन्यवाद . यह खत नई पीढ़ी को .
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