संजय कुमार सिंह
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महाराज बलात्कार के अभियुक्त और भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर को धन्यवाद देने सीतापुर जिला जेल पहुंचे और उनसे मुलाकात की. कुलदीप सेंगर उन्नाव ज़िले की बांगरमऊ सीट से विधायक हैं और उन्नाव के बहुचर्चित बलात्कार मामले में मुख्य अभियुक्त हैं. मुलाकात के बाद साक्षी महराज ने मीडिया से कहा, हमारे यहां के बहुत ही यशस्वी और लोकप्रिय विधायक कुलदीप सेंगर जी काफ़ी दिन से यहां हैं. चुनाव के बाद उन्हें धन्यवाद देना उचित समझा तो मिलने आ गया.' कुलदीप सेंगर के ख़िलाफ़ उन्नाव के माखी थाने में बलात्कार और पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस दर्ज है.
वैसे तो यह सांसद का निजी मामला है और जेल में किसी से मिलने जाना गलत भी नहीं है. पर बेटी-बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा और विधायक बलात्कार के आरोप में बंद हो सांसद उससे मिलने सांसद जाए तो यह खबर जरूर है. खासकर तब जब जेल अधिकारियों को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाए कि छुट्टी के दिन यह मुलाक़ात करा दी गई. बलात्कार पीड़ित नाबालिग है और उसने भाजपा विधायक पर आरोप तो लगाया ही है. आरोप यह भी है कि लड़की के पिता को शिकायत करने पर इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई. उसका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें आरोप लगाया गया था विधायक के भाई और कुछ अन्य लोगों ने पुलिस की मौजूदगी में उन्हें मारा-पीटा था.
यह खबर नवोदय टाइम्स, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका में नहीं है. पहले पन्ने पर तो किसी भी अखबार में नहीं है. मैंने राष्ट्रीय और उत्तर प्रदेश की खबरों का पन्ना ठीक से देखा. मुमकिन है बिना फोटो के छोटी सी खबर हो या शीर्षक में साक्षी महाराज का नाम न हो तो छूट गया हो पर प्रमुखता से तो नहीं है. नवभारत टाइम्स में यह खबर पेज 13 पर छपी है जिसे अखबार ने फ्रंट पेज टू लिखा है. दो कॉलम में दो लाइन के शीर्षक और फोटो के साथ यह खबर है. अमर उजाला में यह खबर नहीं बदल रहा माननीयों का रवैया शीर्षक से प्रकाशित तीन खबरों में एक है. राजस्थान पत्रिका में उत्तर प्रदेश की खबरों के दो पन्ने हैं पर खबर नहीं दिखी. दैनिक भास्कर में यह खबर अंतिम पन्ने पर है लेकिन साक्षी महाराज या आरोपी विधायक की फोटो नहीं है.
दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर तो नहीं है लेकिन पांच कॉलम में खबर है, नीरव मोदी की रॉल्स रॉल्स कार 1.70 करोड़ रुपए में नीलाम हुई. खबर में बताया गया है कि छह कारों की यह नीलामी दोबारा आयोजित की गई थी . इससे पहले हुई नीलामी में 25 कारें रखी गई थीं. इनमें छह गाड़ियों की बोली कम थी और चार गाड़ियों की कीमत खरीदारों ने जमा नहीं की. इसलिए नीलामी का आयोजन दोबारा किया गया. इसके साथ यह भी बताया गया है कि कारों से पहले पेंटिंग नीलाम की गई थी और उससे 53.37 करोड़ रुपए मिले थे. मार्च में उसका करोड़ों का बंगला ध्वस्त किया गया था. यही नहीं, खबर में बताया गया है कि एक कार का कोई खरीदार नहीं मिला और तीन कारें पिछली बोली से कम में बेची गईं.
इस खबर के साथ ‘सख्ती’ लिखकर यह बताने की कोशिश की गई है कि सरकार नीरव मोदी के कर्ज लेकर भाग जाने के मामले में सख्त है और कार्रवाई हो रही है जबकि कर्ज लेकर देश छोड़ जाना एक अलग अपराध और उपलब्धि है. वसूली की प्रक्रिया बिल्कुल अलग. वसूली में चाहे जितनी सख्ती हो वह भाग सकने की नीरव मोदी की उपलब्धि या योग्यता को कम नहीं करेगी. और वसूली एक जायज प्रक्रिया भी नहीं होने का कोई मतलब नहीं है. हालांकि, ऐसे ही दूसरों मामलों में कोई खबर नहीं है और अखबार इसपर चुप हैं. ऐसे में इस खबर को जितनी प्रमुखता मिली है उस लायक यह है नहीं. पूरी खबर में यह नहीं बताया गया है कि नीरव मोदी पर कुल कितना बकाया है और इस नीलामी से कुल कितना वसूल हो गया और बकाया राशि पर अनुमानित सामान्य ब्याज प्रतिमाह क्या है.
नीरव मोदी का बंगला ध्वस्त करने से किसे क्या लाभ हुआ यह नहीं बताया गया है. और कारें नहीं बेची जातीं तो वो मामला निपटने और नीरव के वापस आने के बाद शायद किसी लायक नहीं रहतीं. लेकिन उन्हें बेचकर उसका कर्ज और उसकी देनदारी जरूर कम की गई है. अगर ये कारें बेची नहीं जाती तो सड़ जातीं और बकाया वही रहता. उसपर ब्याज भी लगता. देश भर के हर छोटे-बड़े थाने में सैकड़ों कारें और वाहन सड़ रहे हैं. अगर इनकी बिक्री या नीलामी से सरकारी राजस्व की वसूली हो सकती है तो इनकी भी नीलामी होनी चाहिए सिर्फ नीरव मोदी की कारों की क्यों? अगर बंगला नष्ट किया गया तो कारों को क्यों नहीं नष्ट किया गया और अगर कारें बेची गईं तो बंगला क्यों नहीं बेचा गया. मुझे समझ में नहीं आया और खबर में बताया नहीं गया है.
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