कूच बिहार में कत्लेआम ?

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कूच बिहार में कत्लेआम ?

हिसाम सिद्दीक़ी  
मगरिबी बंगाल असम्बली एलक्शन के चौथे दौर में कूच बिहार के सीतलकुची पोलिंग पर तैनात सेण्ट्रल इण्डस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स ने अट्ठारह साल के समी उल हक समेत चार मुस्लिम नौजवानों को सीधे सीने पर गोली मार कर कत्ल कर दिया. टीएमसी लीडर और वजीर-ए-आला ममता बनर्जी ने इस वाक्ए को कत्लेआम करार देते हुए इसके लिए एलक्शन कमीशन को भी जिम्मेदार करार दिया है. अव्वल तो एलक्शन कमीशन ने सीआरपीएफ के बजाए सीआईएसएफ को तैनात करने की गलती की जिसे भीड़ से निपटने और रायफल के इस्तेमाल की मुनासिब ट्रेनिंग नहीं होती है. दूसरी गलती बल्कि ज्यादती यह की कि इतने बड़े वाक्ए के बाद बहत्तर (72) घंटों तक किसी भी सियासतदां के मौके पर जाने पर पाबंदी लगा दी. जो मारे गए उनमें अट्ठारह साल के पहली बार वोट डालने गए समी उल हक के अलावा मारे गए बाकी तीन लोगों में इकत्तीस (31) साल के हमीद उल मियां, अट्ठाइस (28) साल के मुनीर उज्जमां मियां और बीस (20) साल के नूर आलम मियां शामिल हैं. यह लोग अपने काम से कुछ पहले छुट्टी लेकर वोट डालने आए थे. कत्ल किए जाने की वही घिसी-पिटी वजह बताई गई यह लोग भीड़ के साथ सीआईएसएफ जवानों पर हमलावर होकर उनका असलहा छीनने की कोशिश कर रहे थे मजबूरन सीआईएसएफ को अपने बचाव में गोली चलानी पड़ी. पुलिस और दूसरी फोर्सेज को भीड़ से निपटने की जो ट्रेनिंग दी जाती है उसमें उन्हें बताया जाता है कि अगर फायरिंग की नौबत आ जाए तो पहले हवाई फायरिंग करें लोग न हटें तो उनके पैरों को निशाना बनाकर फायरिंग करें. सीआईएसएफ को शायद ऐसी ट्रेनिंग नहीं दी जाती है. 
टीएमसी लीडरान का यह इल्जाम गलत नहीं लगता कि एलक्शन कमीशन और सीआईएसएफ दोनांं बीजेपी वर्कर्स की तरह काम कर रहे हैं. चूंकि भीड़ में मुसलमानों की अक्सरियत थी इसलिए पहले भीड़ हटाने के लिए लाठी चार्ज नहीं किया गया. हवाई फायरिंग भी नहीं की गई वोट डालने के लिए इकट्ठा भीड़ को हटाने के लिए हवा में फायरिंग करना जरूरी था. सीधे सीने पर गोली मारी गई मारी भी क्यों न जाती, वह मुसलमान थे और सदफीसद ममता बनर्जी के हामी व वोटर थे. शायद इसीलिए टीएमसी ने इल्जाम लगाया कि सीआईएसएफ और एलक्शन कमीशन दोनां ही बीजेपी के एजेण्ट की तरह काम कर रहे हैं. सीआईएसएफ ने दावा किया कि भीड़ में शामिल लोग असलहों से भी लैस थे. उन्होने सीआईएसएफ जवानों के असलहे छीनने की भी कोशिश की, एलक्शन कमीशन ने उनके बयान पर ही पूरी तरह यकीन कर लिया. यह भी नहीं पूछा गया कि अगर भीड़ में शामिल लोगों के पास असलहा था तो कत्ल किए गए चारों लोगों या फायरिंग से खौफजदा होकर मौके से भागने वाले किसी भी शख्स से असलहा बरामद क्यों नही हुआ? 
चार मुसलमानों को इस तरह बेरहमी से कत्ल करने वाली सीआईएसएफ और उसके जिम्मेदार अफसरान व एलक्शन कमीशन की पूरी तरह मशीनरी के पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि आखिर पोलिंग बूथ पर लगे सीसीटीवी फायरिंग के वक्त काम क्यों नहीं कर रहे थे क्या किसी साजिश के तहत सीसीटीवी कैमरों को पहले ही बंद कर दिया गया था ताकि कोई भी सरकारी हरकत न तो रिकार्ड हो सके और न कोई सबूत रहे. हमें भूलना नहीं चाहिए कि दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया युनिवर्सिटी के तलबा पर लाइब्रेरी तक में घुसकर दिल्ली पुलिस ने हमला किया था तो सबूत मिटाने की गरज से पुलिस वाले ही सीसीटीवी कैमरे तोड़ते नजर आए थे उनकी इस हरकत के दर्जनों वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे लेकिन अमित शाह की होम मिनिस्ट्री ने तलबा व तालिबात पर हमला करने वाले एक भी पुलिस वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी. वही जामिया माडल को अब दस अप्रैल को कूच बिहार में नाफिज किया गया है. 
इस पूरे मामले में एलक्शन कमीशन ने अगर टीएमसी के इल्जाम के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी के वर्करों की तरह काम नहीं किया यह इल्जाम भले ही गलत हो लेकिन इस हकीकत को कोई झुठला नहीं सकता कि एलक्शन कमीशन ने गैर जानिबदारी (निष्पक्षता) और पूरी तरह ईमानदारी के साथ काम नहीं किया अगर ईमानदारी से काम करता तो कम से कम फायरिंग करके चार बेगुनाहों को मौत के घाट उतारने वाली सीआईएसएफ टीम को एलक्शन ड्यूटी से जरूर हटा दिया जाता वहां तो ऐसा लगता है कि उस टीम की पीठ थपथपाई गई है. शायद बाकी के चार मराहिल की पोलिंग के लिए मुसलमानों के दिल व दिमाग में यह खौफ बिठाने के लिए यह सब किया गया ताकि बाकी चार राउण्ड की पोलिंग में वह खुल कर ममता बनर्जी की हिमायत न करें. अगर ऐसा है तो यह एलक्शन कमीशन की खाम ख्याली है. बंगाल के आम लोग खुसूसन मुसलमान पूरी मजबूती के साथ ममता बनर्जी की ही हिमायत कर रहे हैं. फिरकापरस्त ताकतें उन्हें ममता से अलग नहीं कर सकतीं. बीजेपी और सीआईएसएफ की मिलीभगत की बात तब साबित हो गई जब बंगाल प्रदेश बीजेपी सदर दिलीप घोष और सीनियर लीडर राहुल सिन्हा ने फायरिंग की हिमायत करते हुए कह दिया कि मारे गए लड़के खराब थे. चार नहीं कम से कम आठ को गोली मार देनी चाहिए थी. 
मगरिबी बंगाल के एलक्शन को चूंकि वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से ही अपनी साख और नाक का सवाल बना लिया था इसलिए एलक्शन कमीशन ने भी हर तरह से बीजेपी की मदद करने का काम किया है. पहली बेईमानी तो यह की गई कि दो सौ चौंतीस (234) सीटों वाली तमिलनाडु असम्बली और एक सौ चालीस सीटों वाली केरल असम्बली का एलक्शन तो एक ही दिन छः अप्रैल को कराने का एलान किया लेकिन दो सौ चौरान्नवे (294) सीटों वाली बंगाल असम्बली का एलक्शन एक दो नहीं आठ राउण्ड में कराना तय किया. 
आठ राउण्ड में दो सौ चौरान्नवे सीटों की पोलिंग कराकर एलक्शन कमीशन ने वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनकी भारी भरकम टीम को यह मौका दे दिया कि वह लोग पोलिंग वाले दिन भी बराबर के जिले या इलाके में पब्लिक रैलियां करके वोट डालने जाने वाले लोगों पर अपनी तकरीर के जरिए असर डाल सकें मोदी की बीजेपी ने बोरों रूपए पब्लिसिटी पर भी खर्च किया है. उनका आईटी सेल और मीडिया डिपार्टमेंट उनकी हर रैली की तकरीर फौरन के फौरन सोशल मीडिया के जरिए पोलिंग वाले इलाकों के लोगों तक पहुचाने का काम कर रहे थे. यह सब एक तय शुदा हिकमते अमली (रणनीति) के तहत किया जाता रहा एलक्शन कमीशन इस काम में पूरी तरह मददगार बना रहा. वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और उनकी पूरी फौज एलक्शन मुहिम के दौरान हिन्दू-मुस्लिम करती रही लेकिन एलक्शन कमीशन ने किसी को एक वार्निंग या नोटिस तक नहीं दिया. दूसरी तरफ ममता बनर्जी पर चौबीस घंटों तक एलक्शन मुहिम में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. इस आर्डर को गैर संवैधानिक बता कर ममता घंटों तक धरने पर बैठ गईं.  मतलब यह कि एक तरफ ममता बनर्जी अकेली दूसरी तरफ बेशुमार दौलत, बल्कि काला धन, एलक्शन कमीशन, वजीर-ए-आजम, होम मिनिस्टर, बीजेपी की भारी भरकम टीम और सीबीआई, इनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट (ईडी) और एनआईए इसके बावजूद यह सब मिलाकर ममता बनर्जी को हराने की हैसियत में नहीं आ सके.जदीद मरकज़ 
 

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