फादर स्टेन स्वामी की जमानत पर दो मार्च को सुनवाई

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फादर स्टेन स्वामी की जमानत पर दो मार्च को सुनवाई

आलोक कुमार 

रांची. विद्या बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीमार तेलुगू कवि वरवर राव को मेडिकल ग्राउंड पर छह महीने की अंतरिम जमानत दे दी है. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी 82 साल के वरवर राव का मुंबई के नानावटी अस्पताल में इलाज चल रहा है.पीठ ने कहा कि अस्पताल से छुट्टी के तुरंत बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए.कवि वरवर राव की जमानत के बाद 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की बारी है.जमानत याचिका की सुनवाई की घोषणा 2 मार्च का दिन निश्चित किया गया है. 

फादर स्टेन स्वामी मूलतः तमिलियंस हैं.वे युवावस्था में ही विख्यात येसु समाज में प्रवेश कर गये.इसके बाद  फिलीपींस, बेल्जियम आदि में शिक्षा हासिल करके वे 15 वर्ष तक बंगलोर के इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट के निदेशक रहे.फिर वे 1991में झारखंड आए. तब से झारखंड के जेसुइट बनकर रह गये. उन्होंने चाईबासा में लगभग एक दशक तक आदिवासी अधिकारों पर काम किया और फिर रांची में बगईचा की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

जेसुइट मिशनरी की तरह फादर स्टेन सामाजिक कार्यों का निर्वहन करने लगे.बगईचा सामाजिक कार्यकर्ताओं, युवाओं और आंदोलनों के सहयोग और विभिन्न जन मुद्दों पर शोध का एक केंद्र बन गया. रांची जाने वालों के लिए वह तीर्थस्थल था.स्टेन स्वामी लेकिन वह कर रहे थे जिससे इस राज्य की वैधता पर सवाल उठते थे. खुद उन्होंने अपने कामों के बारे में साफ लिखा है और वह हमें पढ़ना चाहिए, 

फादर स्टेन लुर्द स्वामी कहते हैं कि मैंने ‘पिछले तीन दशकों में आदिवासियों और उनके आत्म-सम्मान और सम्मानपूर्वक जीवन के अधिकार के संघर्ष के साथ अपने आपको जोड़ने और उनका साथ देने का कोशिश की है. एक लेखक के रूप में मैंने उनके विभिन्न मुद्दों का आकलन करने करने का प्रयत्न किया है. 

इस दौरान मैंने केंद्र व राज्य सरकारों की कई आदिवासी- विरोधी और जन-विरोधी नीतियों के विरुद्ध अपनी असहमति लोकतांत्रिक रूप से जाहिर की है.  मैंने सरकार और सत्तारूढ़ व्यवस्था की ऐसे अनेक नीतियों की नैतिकता, औचित्य व क़ानूनी वैधता पर सवाल किया है. 

1. मैंने संविधान की पांचवी अनुसूची के गैर-कार्यान्वयन पर सवाल किया है. यह अनुसूची [अनुच्छेद 244 (क), भारतीय संविधान] स्पष्ट कहता है कि राज्य में एक ‘आदिवासी सलाहकार परिषद’ का गठन होना है जिसमें केवल आदिवासी रहेंगे एवं समिति राज्यपाल को आदिवासियों के विकास एवं संरक्षण संबंधित सलाह देगी. 

2. मैंने पूछा है कि क्यों पेसा कानून को पूर्ण रूप से दरकिनार कर दिया गया है.1996 में बने पेसा कानून ने पहली बार इस बात को माना कि देश के आदिवासी समुदायों की ग्रामसभाओं के माध्यम से स्वशासन का अपना संपन्न सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास है. 

3. सर्वोच्च न्यायालय के 1997 के समता निर्णय पर सरकार की चुप्पी पर मैंने अपनी निराशा लगातार जताई है. इस निर्णय [Civil Appeal Nos:4601-2 of 1997] का उद्देश्य था आदिवासियों को उनकी ज़मीन पर हो रहे खनन पर नियंत्रण का अधिकार देना एवं उनके आर्थिक विकास में सहयोग करना. 

4. 2006 में बने वन अधिकार कानून को लागू करने में सरकार के उदासीन रवैये पर मैंने लगातार अपना दुख व्यक्त किया है. इस कानून का उदेश्य है आदिवासियों और वन-आधारित समुदायों के साथ सदियों से हो रहे अन्याय को सुधारना. 

5. मैंने पूछा है कि क्यों सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को- जिसकी ज़मीन, उसका खनिज- को लागू करने को इच्छुक नहीं है [SC: Civil Appeal No 4549 of 2000] और क्यों वह लगातार बिना ज़मीन मालिकों के हिस्से के विषय में सोचे, कोयला ब्लॉक की नीलामी करके कंपनियों को दे रही है. 

6. भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 में झारखंड सरकार के 2017 के संशोधन के औचित्य पर मैंने सवाल किया है. यह संशोधन आदिवासी समुदायों के लिए विनाश का हथियार है. 

इस संशोधन के माध्यम से सरकार ने ‘सामाजिक प्रभाव आकलन’ की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया एवं कृषि व बहुफसली भूमि के गैर-कृषि इस्तेमाल के लिए दरवाज़ा खोल दिया. 

7. सरकार द्वारा लैंड बैंक स्थापित करने के निर्णय का मैंने कड़े शब्दों में विरोध किया है. लैंड बैंक आदिवासियों को समाप्त करने की एक और कोशिश है क्योंकि इसके अनुसार गांव की गैर-मजरुआ (सामुदायिक भूमि) ज़मीन सरकार की है, न कि ग्राम सभा की. सरकार अपनी इच्छानुसार यह ज़मीन किसी को भी (मूलतः कंपनियों को) को दे सकती है. 

8. हज़ारों आदिवासी-मूलवासियों, जो भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के अन्याय के विरुद्ध सवाल करते हैं, को ‘नक्सल’ होने के आरोप में गिरफ्तार करने का मैंने विरोध किया है. 

मैंने उच्च न्यायालय में झारखंड सरकार के विरुद्ध जनहित याचिका दर्ज कर मांग की है कि 
1) सभी विचाराधीन कैदियों को निजी बॉन्ड पर जमानत पर रिहा किया जाए, 
2) अदालती कार्रवाई में तीव्रता लाई जाए क्योंकि अधिकांश विचाराधीन कैदी इस फ़र्ज़ी आरोप से बरी हो जाएंगे, 
3) इस मामले में लंबे समय से मुक़दमे की प्रक्रिया को लंबित रखने के कारणों के जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन हो, 
4)पुलिस विचाराधीन कैदियों के विषय में मांगी गई पूरी जानकारी जनहित याचिका के याचिकाकर्ता को दें. 

इस मामले को दायर किए हुए दो साल से भी ज्यादा हो गया है लेकिन अभी तक पुलिस ने विचाराधीन कैदियों के विषय में पूरी जानकारी नहीं दी है. 

मैं मानता हूं कि यही कारण है कि शासन व्यवस्था मुझे रास्ते से हटाना चाहती है. और हटाने का सबसे आसान तरीका है कि मुझे फ़र्ज़ी मामलों में गंभीर आरोपों में फंसा दिया जाए और साथ ही बेकसूर आदिवासियों को न्याय मिलने की न्यायिक प्रक्रिया को रोक दिया जाए.’क्या स्टेन स्वामी को जो अपनी गिरफ्तारी का कारण मालूम पड़ता है, आपको भी वही नहीं लगता? 

बताते चले कि एक जनवरी, 2018 को पुणे के निकट कोरेगांव भीमा में भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने में कथित संलिप्पता और माओवादियों से कथित संपर्क के लिए राव, गोंजाल्विस, भारद्वाज, तेलतुम्बडे और कुछ अन्य कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है. 

इस घटना से एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा पर एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. प्रकाश आंबेडकर, जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, सोनी सोरी और बी.जी. कोलसे पाटिल जैसी हस्तियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया था. 


पुणे पुलिस ने इस हिंसा से जुड़े दो अलग-अलग मामले दर्ज किए थे. दो जनवरी 2018 को पिंपरी पुलिस स्टेशन में हिंदुत्व नेताओं, संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की गई थी. 

आठ जनवरी 2018 को तुषार दामगुडे नाम के शख़्स ने एल्गार परिषद में हिस्सा लेने वाले लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवाई थी. एफ़आईआर में दावा किया गया कि एल्गार परिषण में भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसकी वजह से अगले दिन हिंसा हुई. इस एफ़आईआर के आधार पर पुलिस ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और कवियों को गिरफ़्तार किया. 

इस मामले में पहली चार्जशीट दायर करने के बाद पुलिस ने 21 फ़रवरी 2019 को एक पूरक चार्जशीट पेश की.इसमें अब तक 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और वकीलों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जिन लोगों को गिरफ़्तार किया है, उनमें आनंद तेलतुंबडे, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, कवि वरवर राव, स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस समेत कई अन्य शामिल हैं. 

स्टेन स्वामी को आठ अक्टूबर को झारखंड से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें अगले दिन मुंबई की विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया था, जहां उन्हें 23 अक्टूबर तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. 


पूर्वी भारत के झारखंड राज्य की राजधानी रांची में उनके निवास से 8 अक्टूबर को गिरफ्तार होने के बाद से उन्हें कई बार ज़मानत से वंचित कर दिया गया, और महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई की एक जेल में बंद कर दिया गया. 


एल्गार परिषद मामले में इस महीने की शुरुआत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी ने अंतरिम जमानत के लिए विशेष अदालत का रुख किया है. 


राष्ट्रद्रोह के मामले में फादर स्वामी और अन्य आरोपियों का समर्थन करने वाले अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि गिरफ्तार किए गए लोगों को हिंदुत्ववादी जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा संचालित संघीय सरकार की उनकी ज्ञात आलोचना के लिए कड़े आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। अधिकार कार्यकर्ता चिंतित हैं कि राजनीतिक कारणों से बीमार पुजारी की जमानत में देरी हो रही है। 
पूर्वी भारत के झारखंड राज्य की राजधानी रांची में उनके निवास से 8 अक्टूबर को गिरफ्तार होने के बाद से उन्हें कई बार ज़मानत से वंचित कर दिया गया, और महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई की एक जेल में बंद कर दिया गया। फादर स्वामी ने 26 नवंबर को नियमित जमानत के लिए आवेदन किया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद एक पखवाड़े के करीब 23 अक्टूबर को इसी अदालत में स्वास्थ्य आधार पर उनकी पहली जमानत अर्जी ठुकरा दी गई थी. 


भीमा कोरोगाँव विद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी और हिरासत में लेने के पांच महीने बाद बुजुर्ग भारतीय जेसुइट कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर फैसला सुनाने के लिए एक विशेष अदालत का गठन किया गया है. संघीय जांच एजेंसी एनआईए (एनआईए) की विशेष अदालत ने 84 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका के परिणाम की घोषणा करने के लिए 2 मार्च का दिन  निश्चित किया है.8 अक्टूबर को झारखंड की राजधानी राँची स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किये जाने के बाद फादर स्टेन की जमानत याचिका को कई बार इनकार किया गया है और उन्हें मुम्बई के जेल में रखा गया है। 

पिछले हफ्ते फादर स्वामी ने अपने लैपटॉप और हार्ड ड्राइव की क्लोन कॉपी पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जब अमेरिका के एक डिजिटल लैब ने पाया था कि उसी मामले के एक अन्य आरोपी रोना विल्सन के कंप्यूटर में गलत सबूत लगाए गए थे।फादर स्वामी को अपने लैपटॉप में लगाए जा रहे दस्तावेज़ों की संभावना पर संदेह है। 
 

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