चंचल
आप लोग जूनियर हैं ललिता पांडे जी हमारी सीनियर हैं , जैसे कि दिव्या शुक्ल या विजय पुष्पम हैं . 11 में जब हमने फेसबुक में प्रवेश लिया तो , ये लोग फेसबुक पर ठसक के साथ घेरा बंदी किये हुए आसन लगाए बैठी थीं , और हर सामाजिक सरोकार से जुड़े सवालों पर तुर्रा ब तुर्रा जवाब दे रहीं थी . इसका मतलब ये नही कि उस समय पुरुष नही थे , सब थे लेकिन हम केवल महिलाओं तक ही महदूद रहना चाहता हूं क्यों कि हम जिस विषय पर उतरने जा रहा हूँ , उनके नाम पर लखनऊ में एक मकबूल पार्क है और ललिता पांडे उस पार्क में नियमित टहलने जाती हैं . यह जनेश्वर पार्क बोला जाता है . जनेश्वर जी आजीवन समाजवादी रहे और समाजवादी आंदोलन की एक खूबी रही महिलाओं का आदर . बगैर एहसान जताए , उन्हें यह एहसास हो कि यह आपका हक है . सदियों से आपके इस बराबरी के हक पर पुरुषों ने अतिक्रमण किया है उसे अब नही चलने देना है .
हम जनेश्वर जी के साथ 18 महीने जेल में रहे . जेल से छूटने के बाद हम लोग अचानक ' क्रांतिकारी ' हो गए थे . कांग्रेस को हिकारत की नजर से देखते थे . एक दिन हमारा यह 'क्रांतिकारी ' बहुत खुद ब खुद नही उतरा , उसे मधुलिमये जी ने उतार दिया . उन दिनों हिंदुस्तान भवन से साप्ताहिक हिंदुस्तान छपता था इसके संपादक थे जनाब मनोहर श्याम जोशी . ( इसपर लिख चुका हूं , यहां संक्षेप में . हमारे जेल जाने के पहले से ही जोशी जी से सम्बंध रहे . हम उन्हें यतीम बैंकर कहते थे . हमारे जैसे टुटपुँजिये लेखक , चित्रकार , अक्सर उनसे उधार लेने पहुंच जाते थे , वह उधार वापस नही होता था बदले में यतीमों को लिखकर या चित्र वगैरह बना कर चुकता करना पड़ता था . यह रिवाज शीला झुंझनवाल तक चला . बहरहाल . हमने जोशी जी से सौ रुपये मांगे .
- हमारे पास नही है .
- लेकिन हमें चाहिए .
- किसी से उधार लेकर दूंगा . चपरासी से बोले केजरीवाल को बुलाओ . ये बताओ जेल कैसी कटी ?
- टॉप क्लास . फाइव स्टार सुविधा .
- क्या बोलते हो , सच मे ?
- जिस पत्तल में खाया है उसमें छेद करूँ , सच बोल रहा हूँ .
- लिखोगे ?
- छापेंगे ?
- देख कर बताउंगा , लिखो . इतनी अच्छी जेल , कैसे कहते हो , सब तो उल्टा बोल रहे हैं ?
- वो सही कह रहे होंगे , एक तो वे संघी होंगे , कभी जेल गए नही थे पहली बार जेल देखा दूसरी बात उनके पास जनेश्वर नही रहे होंगे ?
- जनेश्वर ? इलाहाबादवाला ?
- हां , वही , जनेश्वर केवल इंसान नही हैं , वह एक सलीका भी हैं , तथागत की ओर चलनेवाला .
- लो सौ , इसे लिख दो .
- कल .
मनोहर श्याम जोशी के कमरे में हमारे अभिन्न मित्र रमेश दीक्षित ( जो बाद में लखनऊ विश्व विद्यालय में प्रोफेसर हुए ) बैठे हुए थे , दोनो जन को गपियाने के लिए छोड़ कर बाहर निकल गया . और कल ?
कल ?
क्रांति कारिता की हवा निकल गयी .जब मधु जी को यह पता चला कि हम आपातकाल जेल की तारीफ यानी वास्तविकता लिख रहा हूँ तो जबरदस्त डांट पड़ी -
- अठारह महीने जेल क्या रहे , क्रांतिकारी बन गए ? जिस कांग्रेस के सामने क्रांतिकारी बन रहे हो , उनका इतिहास देखो पूरी जिंदगी जेल की यातना में गुजरी है . अभी कुछ मत लिखना . बेवजह विवाद उठेगा . एक चीज बन रही है बन जाने दो . बाद में देखा जाएगा ..
मुह लटक गया . वेस्टर्न कोर्ट के लान में बैठा ही था कि इतने में जनेश्वर जी नमूदार हुए . किसी ने बताया दिया कि चंचल को डांट पड़ी है . मजा लेने की गरज से जनेश्वर जी आ खड़े हुए - कुछ हुआ है क्या ? और जैसा करते थे , फिस्स से हंस दिए . हमने कहा जनेश्वर जी ! कहीं कड़क काफी पिया जाय . '- नंदलाल को कहो ,
कड़क काफी बना दे . ' नंदलाल जेल में कैदी था हम लोंगो को मिले कई ख़िदमदगारों में एक टहलुआ यह भी था . और हम दोनों हंस पड़े . वक्त काटना , मन बदलना , शांत चित्त से आगे की स्थिति सुलझाना , जनेश्वर जी की सामान्य आदत थी . आज 22 जनवरी है आज ही के दिन 2010 में जनेश्वर जी अलविदा कह गए . वे नही हैं लेकिन वे वाकयात तो हैं जो जनेश्वर को छूकर खड़े हैं वे कहां जांयगे . कोई न कोई तो उन्हें उठाता ही रहेगा .
नमन जनेश्वर जी .
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