अब गोभी बनी राजनीति का मुद्दा

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अब गोभी बनी राजनीति का मुद्दा

पटना.किसानों के खेत से पांच रूपये की खरीद और बाज़ार में 200 में बिक्री यदि सही है तो देशभर में आंदोलनरत किसानों को रालोसपा का भरपूर समर्थन .रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने टि्वटर हैंडल से आदरणीय प्रधानमंत्री  को ट्वीट कर कहा है कि यदि बाज़ार भाव का 80 फीसद यानी 160 किसानों को देने की गारंटी लें तो आपको पूर्ण समर्थन.

रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा को दोहरी राजनीति करने को मजबूर कर दिया है.लगातार तीन-तीन चुनाव में सारे सियासी तिकड़मों के बावजूद बेहद खराब प्रदर्शनों की वजह से रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा के पास अब ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं बचे दिख रहे हैं. उन्हें 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में रहकर कोई फायदा नहीं हुआ, 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए का हिस्सा बनकर भी फिसड्डी रहे और 2020 के असेंबली इलेक्शन में असदुद्दीन ओवैसी और मायावती के साथ तीसरे मोर्चे 'ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' की कवायद के बावजूद भी टायं-टायं फिस्स हो गए. 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर सत्ता का स्वाद चख चुके कुशवाहा के पास लगता है कि वापस अपने पूर्व राजनैतिक गुरु नीतीश कुमार के पास जाने के अलावा विकल्प कम ही रह गए हैं.


रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा ने हरा ताजा कैबेज( हरी ताजी गोभी) को राजनीतिक मुद्दा बनाकर ट्वीट किये हैं. आज किसान आंदोलन का 44वां दिन है.कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन चला रहे हैं.आज किसान संगठनों और सरकार के बीच 9वें दौर की मीटिंग होनी है.इसी अवधि में कुशवाहा ने कहा है कि किसानों के खेत से ₹ 5/- की खरीद और बाज़ार में ₹ 200/- में बिक्री यदि सही है तो देशभर में आंदोलनरत किसानों को रालोसपा का भरपूर समर्थन.वहीं 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर सत्ता का स्वाद चख चुके कुशवाहा ने यदि बाज़ार भाव का 80% यानी ₹ 160/- किसानों को देने की गारंटी लें तो आपको पूर्ण समर्थन.


बहरहाल इस राजनीति स्टैंड के भंवर से बाहर निकलकर ग्राउण्ड के धरातल पर चले.सब्जी के साथ कभी फ्री दिया जाने वाला हरा धनिया के भाव आसमान पर हैं. इन दिनों बड़े मॉल्स व ऑनलाइन माध्यम से शॉपिंग करने पर सौ ग्राम हरा धनिया - 22/- का भाव है. हरा धनिया जहां 220 रुपए में किलोभर मिलेगा.दूसरी सब्जियों व फल के भाव भी बढ़े हुए मिलेंगे.4 केले - 56/-,3 अमरूद - 54/- ,पाव भर मिर्च - 26/-,सौ ग्राम हरा धनिया - 22/-,सौ ग्राम हरा मेथी पत्ता -22/-,पाव भर पालक - 43/-,पाव भर बीन्स -- 26/- ,एक पत्ता गोभी ..35/-.

जब पूरी तरह से कार्पोरेट सब्जी व फल बेचेंगे तो इनकी रेट कुछ इसी तरह से होंगी, बस इनकी मनोपोली चलने वक्त मंहगी से मंहगी ऑनलाइन से मंगवाने पड़ेंगे.देश में पहले से ही पेट्रोल और डीजल की मार झेल रहे आम नागरिक की जेब को और ढीला करने का सरकार ने फैसला कर लिया है.तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का जो सिलसिला शुरु हुआ था वह अभी रुका भी नहीं था कि सरकार ने पीएनजी, सीएनजी और एलपीजी के दामों को बढ़ा दिया है. इस तरह से आम नागरिक को अब चौतरफा महंगाई का सामना करना पड़ रहा है.वह उम्मीद भरी नजरों से जहां सरकार की तरफ देख रहा है वहीं सरकार उसे कोई राहत देने के मूड में नजर नहीं आ रही है.

सखी सईंया तो खूब ही कमात है महंगाई डायन खाये जात है...फिल्म ‘पीपली लाइव’ का यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ था. इस गीत के माध्यम से एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या 'महंगाई' की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया.अगर हम यह कहें कि देश में महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर जनता में लामबंदी बहुत कम देखी जाती है,  लोग सड़कों पर नहीं उतरते तो मान लीजिए कि यह सरकारों का सौभाग्य है.असल में यही देश का दुर्भाग्य भी है.सरकारें एक-दूसरे को कोसती रह जाती हैं.कोई कहता है पुराने दिन ही भले थे, कोई अच्छे दिन की ढांढस बंधाता रह जाता है. लेकिन समस्या जत की तस मुंह बाय़े खड़ी है.


यह तो सिर्फ ट्रेलर मात्र है


क्योंकि जिस स्मार्ट सिटी की बात की जा रही है वहां किसी ठेले, पटरी,गाड़ी का कॉन्सेप्ट है ही नही, शॉपिंग सिर्फ बड़े मॉल्स व ऑनलाइन माध्यम से होनी है, गली मोहल्ले की दुकान तक अवैध घोषित होंगी आगामी भविष्य में, जिसे आज यह सब मजाक लगता हो वो चाहे तो स्मार्ट सिटी के नियम कायदे पढ़ सकता है.

जरूरत आज किसान बिल के साथ साथ स्मार्ट सिटी योजना भी बंद करने की है.और क्रोनी कैपटलिज्म को भारत से खत्म करने के लिए चुनाव सुधार लागू करने आवश्यक है, इलेक्टोरल बांड खत्म होने चाहिए, पार्टी का सिंबल सिस्टम खत्म होना चाहिए, पार्टी आधारित प्रचार खर्च सीमा तय होनी चाहिए, चुनाव टाइम के अलावा अन्य समय प्रचार ब्रांडिंग पर रोक लगे...इसके बिना राजनीति को स्वच्छ नही किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति सत्ता में धन पशुओं की मदद से आएगा तो उसे कर्ज उतारना ही पड़ेगा और आम जनता जुल्म का शिकार होती रहेगी.सब्जियों के दाम तेज हैं तो वहीं दूसरी ओर ठेलों पर सब्जियां नदारत है. मजबूरीवश लोगों को महंगी सब्जियां खरीदनी पड़ेगी.

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