आलोक कुमार
पटना.आशा संयुक्त संघर्ष मंच के आह्वान पर बिहार में आशा और आशा फैसिलिटेटर का ऐतिहासिक हड़ताल 30 दिनों के बाद खत्म हुआ.हड़ताल की सबसे प्रमुख मांग थी,पारितोषिक शब्द को बदलकर मासिक मानदेय करना क्योंकि 2019 में भाजपा के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने गद्दारी की थी.उन्होंने समझौता वार्ता की भाषा बदलकर मानदेय को पारितोषिक कर दिया.उन्होंने कहा कि आशा वॉलंटियर है,इसलिए उसे पारितोषिक ही मिलेगा.
राज्य सरकार ने ठेका,नियोजन और मानदेय कर्मियों को लेकर अशोक चौधरी कमिटी का गठन किया था.हमलोगों ने आशा कार्यकर्ता संघ की ओर से अपनी बात कमिटी के सामने रखा था,तो उन्होंने साफ कहा था कि आशा चूंकि मानदेय कर्मी नहीं है,इसलिए आपके सवालों पर यह कमिटी विचार नहीं कर सकती है.हमें किसी रूप में राज्य कर्मी का दर्जा प्राप्त नहीं था और हमें वॉलंटियर समझा जाता था.वॉलंटियर को तो मानदेय मिलता नहीं,उसे तो रिवार्ड अथवा पारितोषिक ही मिलता है.
मानदेय कर्मी का दर्जा मिलने के बाद हम मानदेय बढ़ाने, रिटायरमेंट लाभ,पेंशन,सेवा अवधि को लेकर अपनी मांग रख सकते हैं और आगे लड़ाई लड़ सकते हैं.इसलिए इस हड़ताल की बड़ी उपलब्धि पारितोषिक को मानदेय करना है.2019 से पहले राज्य सरकार अपने मद से एक पैसा नहीं देती थी,वह केवल केंद्र सरकार की योजनाओं में अंशदान करती थी. अभीतक के संघर्षों के बाद हमलोगों ने राज्य सरकार को मजबूर किया है और 2500 रुपए मासिक मानदेय हासिल किया है.यह अधिकार आने वाले दिनों में हमें कई तरह की जीत का मार्ग प्रशस्त करेगा.
आशा और आशा फैसिलिटेटर को केंद्र सरकार की ओर से विभिन्न मद में भुगतान होता है.फैसिलिटेटर को यात्रा भत्ता और प्रसव,टीकाकरण,सर्वे,आशा दिवस आदि मद में आशाओं को मिलने वाली राशि का भुगतान केंद्र सरकार करती है. जिसमें राज्य सरकार राज्यांश देती है.केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले 9वर्षों से इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की है.
वार्ता में फैसिलिटेटर को 21दिनों का 500रुपए प्रतिदिन की दर से भुगतान करने पर सहमति बनी जो केंद्र सरकार से वार्ता कर तय किया जायेगा लेकिन यह राशि अगले वित्तीय वर्ष में अप्रैल महीना से मिलेगा.अन्य मद में भी बढ़ोत्तरी तय है और इसको लेकर केंद्र सरकार पर चढ़ाई शुरू कर देनी है.
जहां तक वार्ता की प्रक्रिया बात है वो पूरी तरह लोकतांत्रिक और पारदर्शी है.सर्वविदित है कि इस हड़ताल का आह्वान ऐक्टू से सम्बद्ध बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ और सीटू से सम्बद्ध बिहार राज्य आशा व आशा फैसिलिटेटर संघ ने किया था.
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ 4राउंड की वार्ता हुई और बिहार के उपमुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री के समक्ष स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के साथ 5वें व अंतिम राउंड की वार्ता हुई. वार्ता में आशा संयुक्त संघर्ष मंच की ओर से सभी राउंड की वार्ता में शशि यादव,महासंघ गोप गुट के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद,ऐक्टू नेता रणविजय कुमार,सीटू के नेता विश्वनाथ सिंह और आशा_फैसिलिटेटर संघ की नेत्री मीरा सिन्हा , लुकमान, बाद में सुधा सुमन थीं.तीन राउंड की वार्ता के बाद सरकार ने दरवाजा बन्द कर दिया था, कि अब कोई वार्ता नहीं होगी.
3अगस्त के महाजुटान का व्यापक असर हुआ.सरकार पर भी असर हुआ,और फिर वार्ता शुरू हुई जिसमें भाकपा माले के विधायकों खासकर सत्यदेव राम की भूमिका अहम थी. उन्होंने मुख्यमंत्री,वितमंत्री और तेजस्वी जी से बात की.प्रशासन की ओर से अफवाह फैलाया गया कि हड़ताली संगठन राज्य कर्मी का दर्जा को लेकर अडिग हैं.वॉलंटियर कैटेगरी के संगठन के इस मांग के साथ कोई बात नहीं होगी.
इस तरह की खबर के बाद हड़ताली संगठनों की मांगों को लेकर भाकपा माले और सीपीएम की ओर से राज्य सरकार को चिट्ठी भेजी गई.उनकी मांगों के हवाले इस बात पर जोर दिया गया कि हड़ताल की मुख्य मांग मानदेय का अधिकार हासिल करना है.तब जाकर फिर वार्ता का बुलावा आया.चार घंटे की मैराथन वार्ता के बाद सरकार पारितोषिक शब्द को बदलकर मानदेय करने को तैयार हुई.बीसीएम,हेल्थ मैनेजर को भी मासिक मानदेय मिलता है,और अब हमें भी मिलेगा.हमारा मासिक मानदेय निश्चित रूप से संतोषजनक नहीं है,इसको लेकर तेजस्वी यादव जी से भी दो घंटे तक बात होती रही.
उन्होंने कहा कि एकबार रास्ता बन गया है,आगे चुनाव पूर्व कुछ और सोचेंगे.ऐसी स्थिति में हड़ताल को समाप्त करने की घोषणा की गई और यह सामूहिक फैसला था.
आशा के बीच बदनाम एक व्यक्ति और संगठन अफवाह फैलाने की कोशिश कर रहा है.उनकी बातों पर ध्यान नहीं दें क्योंकि 3-4 दिनों के भीतर उनकी असलियत सामने आ जाएगी. वॉलंटियर से मानदेय कर्मी की यात्रा हमने पूरी की है.केंद्र सरकार और एनएचएम के स्तर पर संघर्ष जारी है,और तेज होगा.हम सब मिलकर एकताबद्ध संघर्ष के जरिए आशा व आशा फैसिलिटेटर के सम्मानजनक मानदेय और जीवन स्थिति को लेकर संघर्ष को आगे बढ़ाएंगे.
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