डा रवि यादव
किसी चुनाव में कोई एक मुद्द'आ अधिक प्रभावशील हो सकता है मगर भारत जैसे विशाल देश में जहा अनेक धर्म, जातिया, भाषाएं, संस्कृतियाँ और अर्थिक असमानताओं से उत्पन्न अलग अलग वर्गो की अलग समस्याएं है तो अलग समूहों के चुनावी मुद्द भी अलग अलग होते है जिनके आधार पर वे अपनी चुनाव प्राथमिकता का निर्णय करते है .
2014 में भाजपा की जीत में भी अनेक मुद्दे प्रभावी थे जिन्हने भाजपा को जीत दिलाने मे अहम भूमिका अदा की . खुली अर्थ व्यवस्था की सीमाएं 2008 -10 के दौरान प्रकट होने लगी थी जिससे रोजगार के नए अवसर सीमित होने लगे थे. लम्बे समय से शासन कर रही काग्रेस पार्टी देश के समक्ष उत्पन्न समस्याओं के प्रति नकार भाव अपना चुकी थी जनसरोकारों से जुडी लीडरशिप साइड लाइन थी और हर समस्या का जबाव वक़ीलों की टोली द्वारा दिया जा रहा था . नेतृत्व परिवर्तन की इच्छुक काग्रेस राहुल गांधी को नेतृत्व देना चाह रही थी लेकिन कारण जो भी हों नेतृत्व लेने के लिए राहुल गांधी मानसिक रूप से तैयार नही थे . उनकी इस अनिर्णय की स्थिति का भाजपा ने लाभ लिया और राहुल गांधी को एक अपरिपक्व गैरजिम्मेदार और लापरवाह व्यक्तित्व सिद्ध करने में कामयाबी प्राप्त कर ली . वही प्रचुर धनराशि के प्रयोग व तकनीक और मिडिया के सहयोग से नरेन्द्र मोदी को एक महानायक विकास पुरुष और स्वप्नदृष्टा राजनेता स्थापित करने में कामयाब रही.
हर समाज में , हर काल में एक तपका होता है जो कुंठा , अवसाद , भय , असफलता , ग़रीबी, निराशा, घृणा , ईर्ष्या , श्रेष्ठता के भाव से भरा हुआ.....जिसे तलाश रहती है एक अदद ग़द्दार दुश्मन की जिस पर अपने हतभागी होने का दोष थोप सके और स्वयं को हर नाकामी से दोषमुक्त घोषित कर सके. भाजपा ने इस तबके का उपयोग किया. जो गिरते -पडते थर्ड डिवीजन ग्रेजुएट हुआ वह कहते मिल जायेगा कि अगर आरक्षण न होता तो वह प्रशासनिक सेवा में होता उसकी नोट्स से पढ़कर अमुक आरक्षण की बदौलत आज प्रशासनिक अधिकारी बना हुआ है. सवर्ण आरक्षण की बजह से अच्छी नियुक्ति से बंचित है और आरक्षित वर्ग वाले अन्य आरक्षित वर्ग यथा यादव-जाटव की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों के कारण अच्छी नियुक्ति से बंचित है . देश अमुक अमुक गद्दारों जो एक खास वर्ग से सम्बंधित है के कारण गुलाम बना और आज उनकी बेतहाश बढ़ती जनसंख्या के कारण गरीब है . कोई डाटा नही , विश्लेषण नही , अध्ययन नही ....काल्पनिक कहानियां, काल्पनिक दुश्मन, काल्पनिक समाधान.
लेकिन यह सिर्फ एक पक्ष है जिसने भाजपा के लिए 20-25 प्रतिशत का आधार समर्थक दे दिया . सत्ता तक पहुंच बनाई उन दावों और ऊंची आवाज में बोले गये वायदों ने जो चुनावी अभियान और घोषणापत्र में किये गए जैसे रोजगार, महगाई, महिला सुरक्षा और शासन प्रशासन में भागीदारी से बंचित वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने से सम्बंधित थे . एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर. अपराध मुक्त समाज व अपराधियों सें मुक्त सदन का आश्वासन आखिर किसे प्रभावित नही करता .
आज जब दो टर्म पूरे हो रहे है तब न केवल आर्थिक सामाजिक मोर्च पर मोदी सरकार की असफ़लताएं लोगो के सामने है . मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफ़ल साबित हुई है . 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने सत्ता प्राप्त की तब से देश पर कर्ज तीन गुना, महगाई तीन गुना, बेरोजगारी दो गुना बड़ चुकी है जबकि आय,
निवेश, जीडीपी , बचत का हाल खराब है . आर्थिक असमानता का आलम यह है कि 2014 में 1 फीसद के पास देश की 54 फीसद सम्पति थी जिसे कम किया जाना था मगर 2022 में 1 फीसद के पास 77 फीसद सम्पति हो चुकी है . हर साल एक लाख से अधिक सुपर रिच देश छोड़कर अन्य देशो मे जा रहे है . बेरोजगारी एतिहासिक रूप से आठ प्रतिशत के पास है . हर गैर जरूरी बात पर मनकी बात करने वाले प्रधान मंत्री तीन महीने तक जलते मणिपुर पर बोलने से बचते है , साल भर तक 700 किसानों की मौत पर मौन रहते है और जिस महिला पहलवान को अपने घर की बेटी बोलते है उसे न्याय के लिए धरना देना पडता है और मोदी जी की पुलिस दुर्व्यवहार कर घसीटते हुए धरना स्थल से भगा देती है. मोदी जी की छवि आज एक गैर संवेदनशील असफ़ल और सत्तालोलुप में हर अनैतिकता को स्वीकार करने वाले नेता की हो गई है . बाते आज भी वे बड़ी -बड़ी और नैतिक करते है मगर आचरण एकदम विपरीत करते है
धार्मिक उन्माद और जातीय वैमनस्य अभी भी भाजपा को ताकत देता दिखाई देता है मगर धार्मिक उन्माद अपने शीर्षतम स्तर को छू कर वापस ढलान पकडने की ओर है भले अभी यह ढलान का प्रथम चरण ही सही . नूह हिंसा के बाद जाट समाज की प्रतिक्रिया , गुजरों के एक वर्ग और यादव समाज से राव इंद्रजीत सिंह का अपनी ही सरकार पर सवाल उठाना व तत्परता से अपने समर्थकों ही नही समाज को हिंसा से दूर रहने और सामाजिक सद्भाव की अपील करना पिछले एक दशक में पहलीबार दिखाई/ सुनाई दिया है . यह सकारात्मक बदलाव है जो उम्मीद दे रहा है कि समाज की सामान्य सोच उन्माद के खेल को समझने लगी है और उन्माद से बचने के लिए कमर कस रहा है .
अब स्थित एकदम पलट चुकी है राहुल गांधी काग्रेस के शीर्ष नेता के रूप मे पार्टी व जनमानस में स्थापित हो चुके है .भाजपा ने राहुल गाधी की छवि खराब करने के लिए बहुत बडा इन्वेस्टमेंट किया मीडिया प्रबन्धन के साथ एक बडी मेनपावर और बडी धनराशि राहुल गाधी की छवि खराब करने में लगाई गई मगर साढे तीन हजार किलोमीटर की पैदल भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद समाज के अलग अलग वर्ग के लोगो से मिलकर उनको सुनने व समझने की लगातार कोशिश ने न केवल राहुल गाधी से भाजपा द्वारा की गई पेंटिंग उतर चुकी है बल्कि राहुल गाधी एक राजनीतिज्ञ से बढ़कर एक लीडर के रूप में उभरकर सामने आए है आज 2014 या 2019 के विपरीत राहुल गाधी पर संघ परिवार का पप्पू पेंट उतर चुका है और एक नायक के रूप में उभर रहे है तो नरेन्द्र मोदी जी का महानायक पेंट भी फीका हो चुका है .
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