मोदी को चमत्कार ही बचा सकता है !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मोदी को चमत्कार ही बचा सकता है !

डा रवि यादव 

जाति, धर्म और  राजनीति भारतीयों के जीवन में अभिन्नता से जुडे हुए है.  भारतीयों की बातचीत के अहम बिन्दुओं में यही तीन विषय होते है चाहे बतकही टी-स्टाल पर हो , बैठकी में या सह यात्रियों के बीच . अच्छी राजनीतिक जागरूकता के बावजूद यह भी सच है कि हम कई बार भावनाओं में  वह कर प्रतिनिधि चुनते रहे है मगर  किसी भी धारणा या बनाई गई उम्मीद को अंतत: एक दिन व्यावहारिकता की कसौटी पर परखा ही जाता है.

2014 के चुनाव घोषणापत्र में भाजपा व मोदी जी ने हर साल दो करोड युवाओं को रोजगार देने , किसानों को फसल की लागत का ढेड गुना मूल्य देने, वन रैंक वन पेंशन जैसे अनेक आकर्षक वायदे किए थे जिससे किसान, जवान और नौजवान सभी आकर्षित हुए , सबका साथ और सबका विकास का तडका महगाई  महिलाओं पर अत्याचार के खात्में के लुभावनें नारों ने भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में  भारतीय जनता पार्टी को पहली बार

पूर्ण बहुमत दिला दिया. फिर इन वायदों को कसौटी पर परखें जाने का समय आया तो हकीकत  एकदम बिपरीत थी .रोजगार के बजाय देश मे एतिहासिक बेरोजगारी का सामना किया और कर रहा है सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि कोई नया पद श्रजित नही किया जायेगा और पूर्व से श्रजित पदों पर संविदा नियुक्तियां की जाएंगी. सेना में अग्निवीर योजना से ग्रामीण निम्न मध्यम वर्ग के युवाओं के सपने तोड दिए गए. नोटबंदी कर एमएसएमई की कमर तोड दी गई  जो अब तक टूटी हुई हैं . सरकार के कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के साथ खडे हो जाने से प्रतियोगितात्मक माहोल  खतम हो गया  नये निवेशक निराश हुए जिससे हर वर्ष लाखों सुपर रिच देश छोड विदेश जाने लगे परिणामस्वरूप प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के अवसर कम होते गये . मोदी को सत्ता प्राप्त हुई तब देश की बचत दर 38 % थी जो 10% से अधिक घट चुकी है ऐसे में उपभोग का कम होना स्वाभाविक ही है.  उस पर पक्षपातपूर्ण नीतियों नें असमानता की दरार को खाई में बदल दिया है. देश के  1% धनाढ्य वर्ग की आय देश की कुल आय की 40 %से अधिक हो रही है तो नीचे की 50  प्रतिशत जनसंख्या का हिस्सा सिर्फ 3% है.  मोदी काल में 7.5 करोड नये लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए. 

शासन का नारा 80 करोड को राशन में बदल गया है . वित्त मंत्र निर्मला सीतारमन के अर्थशास्त्री पति प्रभाकरण जी का हदय  भी इतना निर्मल नही रह सका कि वे अपनी पत्नी की आर्थिक नीतियों की आलोचना से खुद को रोक पाते उन्होंन अपनी किताब “द क्रुकड टिम्बर आफ न्यू इंडिय “ में प्रभाकरण जी मोदी सरकार को  वायदों को पूरा करने में विफल बताते है और पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की नीतियों को अपनाने की सलाह देते है. इसके पूर्व केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी कह चुके है कि देश धनवान है मगर देशवास गरीब है . गरीबी बेरोजगारी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव ने गरीब का जीवन दूभर कर दिया है.भाजपा के पितृ संगठन, संरक्षक और मार्गदर्शक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसवोले ने सरकार की आलोचना से परहेज करते हुए बेरोजगारी

गरीबी और आर्थिक असमानता के बढने पर चिंता व्यक्त की है .


लागत का ढेड गुना कीमत की आस मोदी को चुनने वाले किसानों को लोकतांत्रिक भारत में सबसे लम्बा आंदोलन कर भी खाली हाथ और ठगा महसूस कर रहा है तो अग्निवीर अपनी अग्निपरीक्षा से चिंतित. महिला सशक्तीकरण  की  माडल बन चुकी महिलाएं अपनी अस्मिता से खिलवाड की प्राथमिकि दर्ज कराने के लिए महीनों संघर्षरत रहे फिर भी न्याय  से बंचित रहे यह किसी भी  लोकतांत्रिक समाज के लिए शर्म, चिंता और सोचने का विषय है . 2014 चुनाव के समय कोई ऐसा समूह नही था जो उत्साहित और उम्मीदों से भरा न हो तो आज चंद पूँजीपतियों के अलावा कोई वर्ग/ समूह ऐसा नही जिसकी सोच यह न हो कि 

आया था मेरी कब्र पर पढने वो फातिहा 

ईंटें चुरा के ले गया मेरे मजार की 


आर्थिक समाजिक मोर्च पर असफ़ल सरकार और अक्षम प्रधान मंत्री मोदी की मुश्किल बढ़ाने के लिए  विपक्ष की

लामबंदी भी हकीकत का रूप ले चुकी है .2019 के चुनाव में  भाजपा के शानदार प्रदर्शन वाली बिहार 

महाराष्ट्र झारखंड की 102 सीट पर काग्रेस और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन हो चुका है जिनमें 2019 के चुनाव में

भाजपा गठबंधन ने 91 पर जीत दर्ज की थी अब यह आंकडा ठीक उलट होने की सम्भावना है .  पंजाब और

तेलंगाना में भाजपा है नही अत: विपक्ष को गठबंधन में जाने की आवश्यकता नही . बंगाल और उत्तर प्रदेश की

स्थित स्ट्रेटिजिक गठबंधन की है पूर्ण गठबंधन यहां भाजपा को लाभ देगा लेकिन इतना स्पष्ट है कि भाजपा इन

दो राज्यों में भी पिछले प्रदर्शन को दुहराने नही जा रही.  

मुख्य दारोमदार काग्रेस पर है कि क्या वह राजस्थान, कर्नाटक, मध्यप्रदेश , गुजरात और छत्तीसगढ की 129

सीट पर फोकस कर भाजपा के हाथ से सत्ता छीन सकती है या उत्तर प्रदेश व  बंगाल की आधा दर्जन सीट

जीतने में अपनी उर्जा खर्च करती है. हालात जो भी हों भाजपा स्पस्ट बहुमत से दूर तो जा चुकी है और स्पष्ट

बहुमत के बगैर मोदी जी का पुन: प्रधान मंत्र बनना कोई चमत्कार ही हो सकता है. राजस्थान, कर्नाटक,

मध्यप्रदेश , गुजरात और छत्तीसगढ की 139 सीट पर भाजपा हारती है तो वह सबसे बडे दल के रूप में उभरने से भी बंचित हो जाएगी. मोदी शाह की  भाजपा ने क्षेत्रीय लीडरशिप ,सेकंड - थर्ड लाइन लीडरशिप खत्म कर चमचे , गालीबाजों को

बढाकर भविष्य  कमज़ोर कर लिया है .यशवंत सिन्ह - राम जेठमलानी - मुरली मनोहर जोशी  अरूण शौरी को किनारे कर,  अजय मिश्र टेनी , योगी आदित्यनाथ, प्रज्ञा ठाकुर और ब्रिज भूषण शरण सिंह को चेहरा बना लिया है इन्ही स्थितियों का आंकलन संघ के मुखपत्र आर्गनाइजर के 23 जून के सम्पादकीय में है जिसमें वह भी यह मानने के लिए बाध्य है कि भविष्य में मोदी के चेहरे और हिन्दुत्व के वर्तमान नैरेटिव के सहारे चुनाव में जीत सम्भव नही है .

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