शांति के लिए नए नजरिए की जरूरत - राजगोपाल

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शांति के लिए नए नजरिए की जरूरत - राजगोपाल

आलोक कुमार

नई दिल्ली. प्रख्यात गांधीवादी पीवी राजगोपाल को इंटरनेशनल हाउस, टोक्यो, जापान में आयोजित समारोह में 40वां निवानो शांति पुरस्कार मिला.इस अवसर पर निवानो शांति पुरस्कार समारोह में सम्मानित पी.व्ही.राजगोपाल ने अपने सम्मान भाषण में कहा कि सर्वप्रथम माननीय अतिथियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ अन्य देशों के मित्रों और इस 40वें वार्षिक निवानो शांति पुरस्कार समारोह में भाग लेने वाले सभी लोगों को आत्मीय रूप से आभार व्यक्त करता हूं. 

        उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मेरे काम को सराहने और उसे मान्यता देकर मुझे इस पुरस्कार के लिए चयन किया है.इसके लिए निवानो फाउंडेशन को धन्यवाद देता हूं. मैं इसके अध्यक्ष, बोर्ड के सभी सदस्यों और ज्यूरी को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे यह सम्मान दिया है. मैं इस बात से अवगत हूं कि समारोह में आए अतिथियों में कुछ वे साथी भी हैं, जिन्हें यह पुरस्कार पहले ही मिल चुका है.पुरस्कार प्राप्त उन साथियों की बिरादरी में शामिल होने पर मुझे गर्व महसूस हो रहा है और मैं शांति के पथ पर ऐसे दिग्गजों के साथ चलने के लिए तैयार हूं.   

           आगे कहा कि अब आपके सामने उन अनुभवों को रखना चाहता हूं, जिन्होंने अहिंसा और शांति के प्रति मेरे विचारों को ज्यादा ठोस बनाया.मैंने अपनी शांति यात्रा की शुरुआत एक भयानक संघर्ष वाले क्षेत्र से की.भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 300 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में चंबल घाटी है. वहां सर्वोदय के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ काम करने के दरम्यान मेरा सामना डकैतों की हिंसा से हुआ. उन्हें वहां विद्रोही कहा जाता है.आज उनके समूह को एक आतंकवादी समूह करार दिया जाता.मैं कुछ समय तक उनके बीच रहा और काम किया. काम के दरम्यान उन्हें हथियार छोड़ने के लिए राजी किया.            

          उन्होंने अहिंसा के विचारों से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण किया और जेल की सजा काटकर समाज की मुख्यधारा में वापस आ गए. हमने पिछले साल उनके आत्मसमर्पण की 50वीं वर्षगांठ मनाई थी और हमने देखा कि कैसे सबसे कठोर हिंसक व्यक्ति भी शांति के उपासक बन सकते हैं.578 डकैतों में से अधिकांश के लिए हिंसा के मार्ग को छोड़कर शांति के मार्ग को अपनाने का यह परिवर्तन अहिंसा के प्रति लगाव से ही संभव था.       

     इस अनुभव के बाद मैं भारत में अन्य स्थानों पर चला गया, जहां कुछ मूल सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए काम कर सकता था.उन सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए बहुत कम लोगों ने ही हिंसा का मार्ग अपनाया था.फिर भी मैं इस बात को समझने लगा कि प्रत्यक्ष हिंसा या हथियारों का उपयोग ढांचागत हिंसा या अन्याय का परिणाम था और अन्याय को दूर करने से शारीरिक संघर्ष या प्रत्यक्ष हिंसा कम हो सकती है.दूसरे शब्दों में कहूं तो मैं ’प्रत्यक्ष’ या शारीरिक हिंसा को खत्म करने से आगे बढ़कर ’अप्रत्यक्ष’ या ढांचागत या व्यवस्थागत हिंसा को खत्म करने के लिए काम करना शुरू किया.मेरा मानना था कि घृणा, अन्याय और पाशविक बल के कारणों को सामाजिक ढांचों के भीतर ही उसे गहराई से हल करने की जरूरत है.गरीबी, भेदभाव और बहिष्कार के कारणों का समाधान करने से ही शांति आ सकती है.           

           इस दरम्यान मुझे इस बात की समझ भी हुई कि अहिंसा का उपयोग करते हुए न्याय पर आधारित एक शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना एक चरणबद्ध प्रक्रिया है.अहिंसा मेरे लिए प्रेरक शक्ति रही है जिसने मुझे लगातार इस पर काम करने के लिए प्रेरित किया.इस प्रक्रिया में मैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनके दिए ’ताबीज’ से प्रभावित हुआ. ताबीज का अर्थ उनके एक प्रेरक विचार से है, जिसे वे ताबीज कहते थे.उन्होंने कहा है -“सबसे गरीब और सबसे कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें जिसे आपने अपने जीवन में देखा हो, और अपने आप से पूछें कि क्या आप जो कदम उठाने का विचार कर रहे हैं, वह उसके लिए उपयोगी होगा.’’       

     निश्चय ही यह कथन गांधी मार्ग पर चलने वाले हम जैसे पथिकों के लिए प्रेरक है.सामाजिक-आर्थिक पदानुक्रम के निचले स्तर पर रह रहे लोगों पर इस तरह के विचार से अन्य लोगों ने भी ध्यान दिया था.ये सभी गांधीवादी मंडली के लोग ही थे, जैसे कि विनोबा भावे, जे.सी. कुमारप्पा, राधा कृष्ण मेनन, सुब्बा राव और अन्य साथी.मैं एक ऐसे देश का निवासी हूं, जिसकी संस्कृति को बुद्ध, महावीर, कबीर और विवेकानंद ने आकार दिया था, लेकिन इसके बावजूद आज भारत में हाशिए पर रह रही आबादी को गरीबी और अभाव से मुक्त करने और समाज के संपन्न वर्गों को शांति निर्माण के लिए राजी करने की आवश्यकता है.   

      मैं अपने बयानों में ईमानदार नहीं होता अगर मैं पूरे भारत के और कुछ चुनिंदा अन्य देशों के उन हजारों लोगों के योगदान को स्वीकार नहीं करता जो इतने वर्षों से मेरे साथ खड़े हैं. इनमें कई लोग शामिल हैं, जैसे कि हाशिए पर रहने वाले समुदाय के वे लोग, जिन्होंने कई कठिन कार्रवाइयों में भाग लिया; बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण आयोजनों को डिजाइन करने और आकार देने के लिए कष्ट उठाने वाले श्रमिकों की टीम; मध्यवर्गीय मित्रों की टोली; और राजनीतिक कार्यकर्ता और अधिकारी जिन्होंने नीतिगत स्तर पर बदलाव करने में योगदान देकर हमारे सपने को आगे बढ़ाने में हमारी मदद की.वास्तव में यह पुरस्कार इन सभी मित्रों की साझा प्रयासों का परिणाम है.समाचारों में पुरस्कार की घोषणा देखकर लोगों की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट हो गया कि व्यक्तियों और संगठनों ने कितनी खुशी व्यक्त की है.     

          हमने जो किया, उससे सीखते हुए, मैं इस बात का विस्तार करना चाहता हूं कि हम वर्तमान में क्या कर रहे हैं? हमने शांति निर्माण के लिए फोरफोल्ड दृष्टिकोण को अपनाया है, जिसमें शामिल हैं- (1) अहिंसक शासन; (2) अहिंसक सामाजिक कार्रवाई; (3) अहिंसक अर्थव्यवस्था; और (4) अहिंसक शिक्षा.

अहिंसक शासन-  विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में प्रगति करने के साथ हमें यह मानना चाहिए कि सत्ता और पदों पर बैठे लोगों द्वारा अधिक सभ्य व्यवहार किया जाएगा. दुर्भाग्य से जब हम बहुत सारे देशों में नेतृत्व को देखते हैं तो हम पाते हैं कि ऐसा नहीं है. अहिंसक शासन के संदर्भ में, हम निर्णय लेने वालों यानी नीति निर्माताओं को सबसे अधिक वंचित समुदायों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने के लिए काम कर रहे हैं.कई जगहों पर हमने एक तरह की जन-आधारित नीति की हिमायत की है.हमने विरोध करने वाली आवाज़ों को शांत करने के लिए पुलिस बल को नियुक्त करने के बजाय समस्याओं को हल करने के तरीके के रूप में बातचीत को प्रोत्साहित किया है.हमने विशेष रूप से भारत में जल, जंगल और जमीन के मुद्दों के संबंध में सामाजिक रूप से समावेशी नीतियां बनाने के लिए कई नीति निर्माताओं के साथ काम किया है.           हम नीति परिवर्तन पर नहीं रुके हैं. हमने भारत के एक राज्य में शांति विभाग भी स्थापित किया है और भारत और बाहर शांति मंत्रालयों की स्थापना का वकालत करना जारी रखा है.कोई भी शांतिपूर्ण और अहिंसक शासन एक बेहतर व्यवस्था से आता है जो लोगों और राज्य के बीच सहयोग को बढ़ाता है. इस तरह की व्यवस्था में लोग बेहतर स्थिति में होते हैं क्योंकि उन्हें अपनी समस्याओं को हल करने के लिए अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है.अगर शांतिपूर्ण समाज और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाने के लिए फोरफोल्ड दृष्टिकोण पर आगे बढ़ते हैं, तो संघर्षों को हल करने के लिए संस्थानों और लोगों के बीच सहयोग आवश्यक है.

       अहिंसक सामाजिक कार्रवाई -  वर्तमान समय में लाखों लोगों के जीवन और आजीविका पर प्रभाव डालने वाले कई संकट हैं, जिन्हें हम ढांचागत या व्यवस्थागत हिंसा कहते हैं. लोग संगठित होकर न्याय की मांग कर रहे हैं.हम इस बात से चिंतित हैं कि आज वैसे विरोध प्रदर्शन अधिक हो रहे हैं जो हिंसक हो रहे हैं और लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त तक नहीं कर पा रहे हैं.इससे लोगों में असंतोष बढ़ रहा है.जो लोग सामाजिक कार्रवाइयों का नेतृत्व कर रहे हैं उन्हें अहिंसक तरीकों की गहरी समझ होनी चाहिए. इस समझ के अभाव में लोगों को हिंसा के लिए उकसाया जा सकता है.भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक सामाजिक कार्रवाई महात्मा गांधी की मुख्य ताकत थी. विनोबा भावे और उनके सहयोगियों ने भूमि सुधारों के लिए बड़े अहिंसक आंदोलनों का आयोजन किया.अहिंसक सामाजिक कार्रवाई के इन तरीकों को हमारे संगठन ने कई साल पहले अपनाया था. हम जमीनी स्तर पर वंचित समुदायों को संगठित करने के लिए बड़ी संख्या में युवाओं को प्रशिक्षित करने में सक्षम थे.हमारे काम की अधिकांश सफलता इस पद्धति का प्रत्यक्ष परिणाम है.     

      उदाहरण के लिए, 2007 में हमने एक बड़ी अहिंसक कार्रवाई की, जब 25,000 लोगों ने चंबल से नई दिल्ली तक एक महीने में 350 किलोमीटर की पैदल यात्रा की.यह लोगों के लिए भूमि पर अधिकार और आजीविका संसाधनों को हासिल करने के लिए था, विशेष रूप से आदिवासी आबादी के लिए वन भूमि पर अधिकार. अहिंसक अर्थव्यवस्था- महात्मा गांधी, जे.सी. कुमारप्पा और शूमाकर ने सुझाव दिया था कि अर्थव्यवस्था अधिक सहभागी और ’नीचे से ऊपर’ यानी बॉटम-अप हो सकती है, इस अर्थ में कि स्व-संगठित समुदाय एक अर्थव्यवस्था बनाने के लिए एक साथ आते हैं.इसके विपरीत, एक अर्थव्यवस्था जो कुछ लोगों को अवसर देती है और लाखों लोगों के लिए गरीबी और दुख को बढ़ावा देती है, वह ’अच्छी’ या समावेशी नहीं हो सकती है.

     आज आदिवासी लोगों, मछुआरों, शरणार्थियों, झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले, किसानों और खेतिहर मजदूरों को जिन आजीविका के अवसरों का लाभ मिल रहा है, वे अक्सर दैनिक मजदूरी कमाने वाले हैं, जो सुरक्षित नहीं है. अर्थव्यवस्था उनके पक्ष में काम नहीं करती है.फोरफोल्ड दृष्टिकोण में, सहयोग की भावना का निर्माण करते हुए अपने उत्पादों के विपणन के लिए कई छोटे और स्थानीय उत्पादक समूहों के एक साथ आने का अनुभव दर्शाता है कि वे एक अधिक अहिंसक अर्थव्यवस्था का निर्माण कर रहे हैं.हम इसका संक्रमण काल देख सकते हैं, जहां जैविक और प्राकृतिक खेती, हथकरघा और हाथ-आधारित उत्पादन जैसी कई सूक्ष्म गतिविधियां वैश्विक अर्थव्यवस्था से अलग एक ’मैक्रो-नैरेटिव’ बना रही हैं जो बड़े पैमाने पर बड़े निगमों द्वारा नियंत्रित है. जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था रू “प्रकृति में हर किसी की जरूरत के लिए पर्याप्त संसाधन है लेकिन किसी के लालच के लिए नहीं.

     अहिंसक अर्थव्यवस्था - इसके कारण जलवायु संकट की स्थिति भी बनी है जो बड़ी आबादी को प्रभावित कर रही है.देर हो जाए, इससे पहले ही हम वर्तमान समय में पृथ्वी पर अधिक टिकाऊ और अहिंसक उत्पादन, विनिमय और उपभोग के तरीकों पर फिर से विचार करें.गांधी के सहयोगियों में से एक जे.सी. कुमारप्पा ने कहा था कि एक आर्थिक दृष्टि से एक स्थायी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना आवश्यक है, जो जन-समर्थक, गरीब-समर्थक और पर्यावरण के अनुकूल हो.

  अहिंसक शिक्षा- आजकल के युवा शांति बल के बजाय क्रूर बल में विश्वास करते हैं, क्योंकि आजकल के गेम्स, सोशल मीडिया और फिल्में एक व्यवहार पैटर्न को मजबूत करती हैं.दुर्भाग्य से बच्चे ऐसे नकारात्मक प्रभावों के शिकार हो जाते हैं या मानते हैं कि हिंसा के माध्यम से वे अपने लक्ष्यों को बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकते हैं.माता-पिता अपने बच्चों को स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि वे ऊपर की ओर बढ़ सकें और अधिक समृद्ध हो सकें, बिना यह विचार किए कि उनके बच्चे समाज में शांति कैसे ला सकते हैं.हमारे काम का एक उदाहरण यह है कि युवाओं को शांति क्लब स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. हम संगठनों का एक नेटवर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो इस एजेंडे को बड़े पैमाने पर ले जाएगा जो शांति और अहिंसा को व्यापक आधार देगा.कक्षा और पाठ्येतर गतिविधियों के अलावा, हम विभिन्न राज्य सरकारों के साथ यह वकालत कर रहे हैं कि क्या वे शांति मंत्रालयों या विभागों की स्थापना कर सकते हैं जो कई स्वावलंबी तरीकों से अहिंसक शिक्षा को प्रोत्साहित करेंगे. पुलिस या सशस्त्र बलों द्वारा शांति लाए जाने की अपेक्षा करने के बजाय बच्चे और युवा शांति-निर्माण को महत्व देना सीखेंगे. शांति शिक्षा ही शांति निर्माण की केंद्रीय धुरी है और अगर हम इस बारे में विश्व स्तर पर जागरूकता पैदा करते हैं तो इस फोरफोल्ड दृष्टिकोण को व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है.         

     मैंने आपके सामने इस फोरफोल्ड दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है, लेकिन मुझे पता है कि कई संशयवादी हैं जो शांति निर्माण के तरीके के रूप में अहिंसा के प्रभाव के बारे में संदेह करते हैं.उनके लिए मैं कहता हूं, इतिहास के उन महत्वपूर्ण पलों पर विचार करना महत्वपूर्ण है जब ज्ञान को हमारी मानव उन्नति के साथ जोड़ा गया था.           

       1931 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था.उस पत्र में लिखे उनकी बात से मैं शुरू करता हूं.उस पत्र में उन्होंने लिखा था रू “आपने अपने कार्यों के माध्यम से दिखाया है कि हिंसा के बिना सफल होना संभव है, यहां तक कि उन लोगों के साथ भी जिन्होंने हिंसा के तरीके को नहीं छोड़ा है.मेरा मानना है कि गांधी के विचार हमारे समय के सभी राजनीतिक व्यक्तियों में सबसे प्रबुद्ध है.हमें उनकी भावना एवं सोच के साथ काम करने का प्रयास करना चाहिए. हमारे अपने लक्ष्य के लिए लड़ने में हिंसा का उपयोग नहीं करना चाहिए. साथ ही किसी भी मामले में भागीदारी नहीं करना, जिसे आप बुरा मानते हैं.”         

       अप्रैल 1953 में अमेरिकी सेना के कमांडर के रूप में ड्वाइट आइजनहावर ने कहा था- “हर बंदूक जो बनाई जाती है, हर युद्धपोत जो लॉन्च किया जाता है और हर रॉकेट जो दागा जाता है, यह अपने अंतिम अर्थों में, उन लोगों से चोरी है जो भूखे हैं और जिन्हें खिलाया नहीं जाता है, जो ठंड से कांप रहे हैं और कपड़े नहीं पहने हैं. इस दुनिया मे हथियारों पर सिर्फ पैसा ही नहीं खर्च किया जा रहा है, बल्कि यह अपने मजदूरों का पसीना, अपने वैज्ञानिकों की प्रतिभा और अपने बच्चों की आशाओं को खर्च कर रहा है.’’       

     भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न को 1993 में प्राप्त करने पर नेल्सन मंडेला ने कहा था रू “महात्मा गांधी हमारे (दक्षिण अफ्रीकी) इतिहास के अभिन्न अंग हैं क्योंकि यहीं पर उन्होंने पहली बार सत्य का प्रयोग किया था; यहां उन्होंने न्याय की खोज में अपनी विशिष्ट धैर्य का प्रदर्शन किया था; यहां उन्होंने सत्याग्रह को एक दर्शन और संघर्ष की एक विधि के रूप में विकसित किया था.‘‘      

      मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करता हूं कि गांधी जी ने अहिंसा को शक्तिशाली साधन के रूप में देखा.यह अनुभव मुझे भारत में सबसे अधिक वंचित समुदायों के साथ कई वर्षों तक काम करने के बाद हुआ है.यही कारण है कि हमने शांति निर्माण के लिए फोरफोल्ड दृष्टिकोण विकसित किया है.         

    हालांकि यह पुरस्कार मुझे एक व्यक्ति के रूप में दिया जा रहा है, लेकिन हमने इससे एक “शांति कोष“ बनाने का फैसला किया है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में शांति निर्माण के लिए फोरफोल्ड दृष्टिकोण को सहयोग करने में मदद करेगा.       

    मेरे इन अनुभवों एवं विचारों पर आप सभी ने ध्यान दिया.इसके लिए फिर से आप सभी को धन्यवाद.

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