मणिपुर हिंसा और मोदी की चुप्पी

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मणिपुर हिंसा और मोदी की चुप्पी

 आलोक कुमार

 मणिपुर. पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर शुरू हुई हिंसा की चपेट में अब पूरा राज्य आ गया है. 3 मई के बाद राज्य में शुरू हुई हिंसा को एक महीना होने वाला है.इस हिंसा में 75 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. हजारों लोग पलायन करने के लिए मजबूर हैं.

 मणिपुर राज्य में बहुसंख्यक समुदाय मैतई है.राज्य में उनकी आबादी 53 फीसदी है.एसटी तबके का दर्जा मांग कर रहा है.वहां के परंपरागत नियम के मुताबिक, मैतई समुदाय के लोग घाटी में रह सकते हैं, जो वहां के कुल क्षेत्रफल का 10 फीसदी इलाका है, जबकि राज्य का 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है, जिन पर नगा और कुकी आदिवासी समुदाय का अधिकार है. वहां के नियम के मुताबिक, कोई भी गैर आदिवासी पहाड़ी इलाके में जमीन नहीं ले सकता.

   इस बीच भारत सरकार की तरह ही पूर्वोत्तर भारत के कैथोलिक धर्माध्यक्षों ने भी शांति के लिए एक नई अपील की है. संकट पर क्षेत्रीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के एक आपातकालीन सत्र के समापन पर 28 मई को जारी एक बयान में धर्माध्यक्षों ने स्थानीय समुदायों से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सुलह के तरीकों को खोजने के लिए एक साथ काम करने का आग्रह किया ताकि सांप्रदायिक हिंसा को रोका जा सके.75 लोगों की जान गई, 45,000 से अधिक लोगों को विस्थापित किया और 1,700 से अधिक घरों, गिरजाघरों और अन्य ख्रीस्तीय संस्थानों को नष्ट कर दिया.

      मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘ आदिवासी एकजुटता मार्च‘ के आयोजन के बाद मणिपुर में जातीय झड़पों में 75 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.मणिपुर में 3 मई को हिंसा तब भड़क उठी जब जातीय कुकी और अन्य आदिवासी समूह, जो मुख्य रूप से ख्रीस्तीय हैं, भारत के सकारात्मक कानून के तहत पिछड़े वर्गों के लिए राज्य के लाभ और आरक्षण कोटा का लाभ उठाने वाले हिंदू मैतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने वाले अदालत के फैसले के विरोध में सड़कों पर उतर आए.राज्य में हजारों सेना, असम राइफल्स और केंद्रीय अर्धसैनिक बल दिन रात ऑपरेशन कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के जानकारों का मानना है कि, राज्य में हिंसा न शांत होने की सबसे बड़ी वजह पीएम मोदी द्वारा इस मामले पर चुप्पी साधना है.

      ट्राइबल हमारे समाज का न सिर्फ अभिन्न हिस्सा रहे हैं, बल्कि वे हमारी सभ्यता व प्राकृतिक संस्कृति की सशक्त तस्वीर भी हैं. हमारे संविधान में इस समुदाय को विशेष दर्जा दिया गया है, जिसके चलते इन्हें कुछ खास अधिकार हासिल हैं. जिनमें आरक्षण प्रमुख है, जिसके चलते देश में तमाम जातियां खुद को ट्राइबल समुदाय में शामिल होने का अपना दावा और मांग रखती रही हैं. ऐसे ही मांग देश के नॉर्थ ईस्ट इलाके के एक राज्य मणिपुर से पिछले दिनों देखने में आई, जिसे लेकर वहां के मौजूदा एसटी समुदाय की तरफ खासा विरोध किया गया, जो यहां हुई खासी हिंसा के रूप में सामने आया. एसटी का दर्जा काफी हद तक देश की जनगणना से भी जुड़ा हुआ है. 1951 में जहां देश में एसटी समुदाय की तादाद 225 थी, वो आज बढ़कर 700 तक पहुंच गई है.

क्या है मणिपुर विवाद?

      मणिपुर में राज्य का बहुसंख्यक समुदाय मैतई एसटी तबके का दर्जा मांग कर रहा है. राज्य में इनकी आबादी 53 फीसदी है, लेकिन वहां के परंपरागत नियम के मुताबिक, मैतई समुदाय के लोग घाटी में रह सकते हैं, जो वहां के कुल क्षेत्रफल का 10 फीसदी इलाका है, जबकि राज्य का 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है, जिन पर नगा और कुकी आदिवासी समुदाय का अधिकार है. वहां के नियम के मुताबिक, कोई भी गैर आदिवासी पहाड़ी इलाके में जमीन नहीं ले सकता.मणिपुर की 32 लाख आबादी में 53 फीसदी मैतेई हैं, जिनका स्थानीय राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण है, जबकि आदिवासी ख्रीस्तीय, जिनका राज्य में अधिकांश जमीन पर नियंत्रण है, करीब 41 फीसदी हैं.सामाजिक सद्भाव और सतर्कता के लिए बने केरल काथलिक धर्माध्यक्षीय आयोग के अनुसार, जिसने मणिपुर दंगों की जांच की थी, सांप्रदायिक हिंसा "सुनियोजित" थी और "कूकी जनजाति को लक्षित" थी, जिनमें से 90 प्रतिशत ख्रीस्तीय हैं। उकान्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने कहा कि "राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की नीतियों और कार्यक्रमों में बदलाव ने लोगों को सांप्रदायिक रेखाओं में विभाजित कर दिया है."



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