क्या आज़म खान के ख़िलाफ़ साज़िशें रुकेंगी ?

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क्या आज़म खान के ख़िलाफ़ साज़िशें रुकेंगी ?

डा रवि यादव

जिस हेट स्पीच केस में पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मुहम्मद आज़मखान को 22 अक्टूबर 2022 को निचली अदालत ने दोषी मानते हुए तीन साल की सज़ा दी थी उसे  ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश अमित वीर सिंह की अदालत ने 24 मई 2023 पलट दिया और आज़म खान को निर्दोष क़रार दिया है. निचली अदालत के आदेश के बाद आज़म खान की विधान सभा की सदस्यता चली गई थी. सत्र न्यायाधीश ने फ़ैसले में लिखा गया है कि आज़म खान द्वारा टिप्पणियाँ तत्कालीन ज़िलाधिकारी के ऊपर की गई थी वे आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकते थे या फिर दीवानी का मुक़द्दमा करा सकते थे लेकिन उन्होंने शिकायतकर्ता अनिल कुमार चौहान पर दबाव डालकर हेट स्पीच की शिकायत दर्ज कराई . अदालत ने कहा कि अपराध के मूल तत्व जो कि आईपीसी की धारा 153-1( दुश्मनी को बढ़ावा देना ) 505-1( सार्वजनिक शरारत ) और जन प्रतिनिधित्व क़ानून 1951 की धारा 125 शिकायत में कहीं नहीं पाई गई.  कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फ़ैसलों का भी संदर्भ लिया . ग़ौरतलब  है कि 9 अप्रेल 2019 को कृषि विभाग में तैनात अधिकारी अनिल कुमार सिंह चौहान ने आज़म खान के ख़िलाफ़ मिलक कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई थी कि आज़म खान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीएम आँजनेय कुमार सिंह के ख़िलाफ़ अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया और दो समुदायों के बीच हिंसा भड़काने का काम किया .केस का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि शिकायतकर्ता अनिल कुमार चौहान ने सत्र न्यायालय को बताया कि उन्होंने यह शिकायत तत्कालीन डीएम अब मुरादाबाद के कमिश्नर आँजनेय कुमार सिंह के दबाव में कराई थी . आज़म खान पर आँजनेय कुमार सिंह के समय में लगभग नब्बे केस दर्ज दर्ज हुए जिनमे किताब चोरी , मुर्ग़ी चोरी , बकरी चोरी , भेस चोरी जैसे आरोप है . आज़म खान के परिवार के अलावा उनके सैंकड़ों समर्थकों पर भी केस किए गए है .  सिक्किम कैडर के आईएएस अधिकारी आँजनेय कुमार सिंह प्रतिनियुक्ति पर है जिनकी प्रतिनियुक्ति बढ़ाई गई है और रामपुर डीएम के बाद अब मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त है . तमाम शिकायतों / विवादों के बाद भी योगी सरकार ने उनका स्थानांतरण तक नहीं किया है इससे समझा जा सकता है कि उनको  न केबल सत्ता का संरक्षण प्राप्त है बल्कि आज़म खान के ख़िलाफ़ उनकी भेदभावपूर्ण कार्यवाहियाँ सत्ता के इशारे पर ही हो रही है.

उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी का जिस तरह दुरुपयोग हो रहा है अँजनेय कुमार सिंह  एक उदाहरण मात्र है . प्रशासक संविधान की रीढ़ होते है जिनसे सत्ता की कठपुतली बन कर कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जाती  . अँजनेय कुमार जैसे अधिकारी कुछ स्वार्थ सिद्ध ज़रूर कर सकते है मगर याद किए जाते है टीएन शेषन या भूरे लाल जैसे अधिकारी ही . सत्ता का दबाव हमेशा रहता है मगर जिनके पास रीढ़ होती है वे एक सीमा रेखा ज़रूर रखते है . उत्तर प्रदेश में भी अनेक ऐसे अधिकारी रहे है जिन्हें सम्मान सहित याद किया जाता है . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे,  हासिमपुर , मलियाना में पीएसी के एक सनकी कमांडेंट ने दर्जनों युवा मुसलमानों को गोलियों से भून दिया और उनकी लाशों को नदी में फेंकवा दिया. उस समय गाजियावाद के पुलिस कप्तान विभूति नारायण राय थे.  उनको जब इस घटना की जानकारी मिली  तो रात में ही खुद फोर्स लेकर नदी तक गए लाशों को निकलवा कर बाहर किया, एक जिंदा बच गया था . वीरबहादुर सिंह के किसी भी दबाव को न मानते हुए राय साहब अपनी जगह अड़े रहे और लाशों के बीच एक मात्र ज़िंदा मिले शख़्स से पी एसी के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दर्ज कराया. कार्य पालिका का एक चेहरा यह भी है जिस पर गर्व होता है. 

भाजपा से यह उम्मीद तो नहीं कि वे थोड़ी सी लोकलाज या लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन कर रामपुर के तत्कालीन ज़िलाधिकारी श्रीमान अँजनेय कुमार सिंह के ख़िलाफ़ क़ानून सम्मत कार्यवाही कर उन्हें दंडित करें क्योंकि ये तो मनुष्य जाति कि उस ख़ास नस्ल से ताल्लुक़ रखते है जिनसे  ग़लती से भी कभी कोई ग़लती नहीं हो सकती . इनकी ग़लतियाँ भी हुनर है उद्दंड आलोकतंत्रिक अनैतिक आचरण इनकी रणनीति और योग्यता का प्रमाण होता है . इनका फ़लसफ़ा है ग़लतियाँ दूसरों की और अच्छाइयाँ इनकी . ये अपनी नफ़रत तिकडम हिंसा और अनैतिकता को सही सिद्ध करने के लिए  महाभारत और कृष्ण को याद करते है . गीता के उपदेशों की मनगढ़ंत व्याख्या करते है और धर्म का सहारा लेते है. जबकि कृष्ण ने एकता के , न्याय के सभी रास्ते खोजने की स्वयं कोशिश की तब न्याय के लिए  मजबूरी में युद्ध के लिए सहमत हुए. आज दुशासन अपने को धर्म रक्षक, न्याय रक्षक कह रहा है .

 आज़म खान समाजवाद की एक प्रामाणिक आवाज़ है शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को लम्बे समय तक याद रखा जाएगा , आज़म एक बड़े नेता है मगर इतने बड़े नहीं जितने इस सरकार के दमन ने उन्हें बना दिया है . इतिहास सत्ता के दमन और उस दमन के शिकार लोगों से भरा पड़ा है और उसका एक सबक़ ये भी है कि जब इन हुकुमतों ने किसी विरोधी को द्वेषपूर्ण यातनाएँ दी है विरोधी की शख़्सियत उभरकर बड़ी हुई है और विरोध की आवाज़ की धार पुख़्ता हुई है. यातनाएँ  शख़्स को शख़्सियत बनाती है. आज़म वो शख़्सियत बन चुके है –

न मैं गिरा न मेरे हौसलों के मीनार गिरे. 

मगर मुझे गिराने में कई लोग बार बार गिरे.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे वीर बहादुर सिंह . हासिमपुर , मलियाना में PAC के एक सनकी गिरोही कमांडेंट ने दर्जनों युवा मुसलमानों को गोलियों से भून दिया और उनकी लाशों को हिंडन नदी में फेंकवा दिया । उस समय गाजियावाद के पुलिस कप्तान थे विभूति नारायण राय . रात में ही जब उनको इसकी खबर मिली खुद फोर्स लेकर हिंडन नदी तक गए लाशों को निकलवा कर बाहर किया एक जिंदा बच गया था उसे केंद्र में रख कर PAC के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ . मुख्यमंत्री खोजते रह गए अपने एक जिले के कप्तान को राय साहब अपनी जगह अड़े रहे गए . कार्य पालिका का एक चेहरा यह भी है.

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