मोदी की पब्लिसिटी पर हर मिनट तीन लाख से ज्यादा का खर्च

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मोदी की पब्लिसिटी पर हर मिनट तीन लाख से ज्यादा का खर्च

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! खुद को फकीर और चाय वाला बताने वाले वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ अपनी तस्वीर चमकाने की मुहिम पर तीन लाख रूपए से ज्यादा हर मिनट खर्च किए हैं. सरकार के जरिए ही दी गई इत्तेला के मुताबिक आठ सालों में गुलाम मीडिया को छः हजार चार सौ इक्यान्नवे (6491) करोड़ रूपए दिए गए इनमें तीन हजार दो सौ साठ (3260) करोड़ रूपए इलेक्ट्रानिक मीडिया यानी टीवी चैनलों को और तीन हजार दो सौ तीस (3230) करोड़ प्रिंट मीडिया यानी अखबारात को दिए गए. यू-ट्यूब चैनल चलाने वाले पुण्य प्रसून वाजपेयी ने तकरीबन एक महीना पहले इस अनाप-शनाप खर्चों पर एक प्रोग्राम बनाया. सरकार की जानिब से खबर लिखे जाने तक इस प्रोग्राम पर कोई रद्देअमल (प्रतिक्रिया) नहीं आया. 2022 में उत्तर प्रदेश के असम्बली एलक्शन के दौरान एक यू-ट्यूबर के प्रोग्राम में उत्तर प्रदेश की एक बुजुर्ग खातून ने कहा था कि पीएम मोदी हमें मुफ्त में गल्ला देेते हैं, पैसा देते हैं, हम उनके एहसानात के नीचे दबे हुए हैं. इसलिए उन्हीं को वोट देंगे. उस वक्त खुद नरेन्द्र मोदी ने हरदोई की पब्लिक मीटिंग में बडे़ फख्र से उस खातून के बयान का जिक्र करते हुए कहा था कि कितने बड़े पैमाने पर एक ‘लाभार्थी’ तबका तैयार हो गया है जो बीजेपी को ही वोट देता है लेकिन खर्चे वाले वाजपेयी के प्रोग्राम पर खुद मोदी उनके वजीरों और पार्टी ने खामोशी अख्तियार कर ली. पुण्य प्रसून वाजपेयी का दावा है कि छः हजार चार सौ इक्यान्नवे (6491) करोड़ के खर्चों में वह रकम शामिल नहीं है जो वैक्सीन लगवाने के लिए ‘धन्यवाद मोदी’ के होर्डिंग पूरे देश में लगवाने मुफ्त दिए जाने वाले गल्ले के थैलों पर उनकी तस्वीर छपवाने, बेटी बचाओ और ‘स्वच्छता मुहिम’ जैसे प्रोग्रामों की पब्लिसिटी पर खर्च किया गया है.

वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी की पब्लिसिटी पर इससे ज्यादा खर्च करने का प्रोग्राम अगले दस महीनों में है. क्योंकि अप्रैल-मई 2024 में लोक सभा का एलक्शन होना है जिसे मोदी हर हाल में जीतना चाहते हैं. वंदे भारत ट्रेनों को शुरू करना हो, केाई प्रोजेक्ट हो, एक्सप्रेस वेज, हाईवेज और दीगर छोटे-छोटे प्रोजेक्ट हों या पुलों के इफ्तेताह, मोदी हर जगह खुद जाते है जिस वजारत का प्रोजेक्ट होता है उसके वजीर पीछे रह जाते हैं. सिर्फ मोदी की तस्वीर नजर आती है. यह प्रोग्राम कराने पर हजारों करोड़ रूपए खर्च हो रहा है. दिल्ली से अफसरान और सिक्योरिटी अमले की भारी-भरकम फौज हर जगह जाती है. उनके आने-जाने और होटलों में रूकने पर जो बेतहाशा खर्च होता है उसका हिसाब इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया को दिए जाने वाले हजारों करोड़ रूपयों में शामिल नहीं है. वाजपेयी के मुताबिक मोदी ने अपनी तस्वीर दिखाने पर जनवरी 2020 से दिसम्बर 2022 तक एक हजार पनचान्नवे (1095) करोड़ रूपए अलग से खर्च किए.

एलक्शन मुहिम के दौरान बरेली की एक पब्लिक मीटिंग में नरेन्द्र मोदी ने तकरीर करते हुए कहा था कि वह (अपोजीशन पार्टियां) हमारा क्या बिगाड़ लेंगी. हम फकीर हैं झोला उठाकर चल देंगे. अगर यह फकीर देश के खजाने पर इतना बड़ा बोझ बना हुआ है तो ऐसा फकीर देश के मफाद में बिल्कुल नहीं है, खुसूसन तब जबकि देश के इक्यासी (81) करोड़ पैतीस लाख लोग इंतेहाई गुरबत में पांच किलो मुफ्त सरकारी अनाज पर जिंदगी गुजार रहे हैं. मोदी और उनकी पार्टी बड़े फख्र से कहती है कि वह इक्यासी करोड़ 35 लाख लोगों को मुफ्त में गल्ला देती है यह कहते वक्त उन्हें यह भी एहसास नहीं रहता कि उनके सत्ता में आने के बाद से देश में कम से कम इक्यासी करोड़ पैंतीस लाख लोग इतने गरीब हो गए हैं कि वह अपने खाने के लिए गल्ले का भी इंतजाम नहीं कर सकते. देश में कितने लोग बेरोजगार घूम रहे हैं उसका केाई रिकार्ड सरकार पेश करने को तैयार नहीं है. भारत शायद दुनिया का अकेला ऐसा मुल्क है जहां की आबादी में साठ फीसद से ज्यादा बीस से पैंतीस साल की उम्र वाले नौजवान है.. नौजवानों का इतना बड़ा सरमाया दुनिया के किसी मुल्क के पास नहीं है. लेकिन सिर्फ और सिर्फ अपनी तस्वीर (छवि) चमकाने के आदी हो चुके पीएम मोदी की नाकिस पालीसियों की वजह से नौजवानों की अक्सरियत बेरोजगार है. मोदी खुद तो गरीब से राजा बन गए लेकिन अपनी पालीसियों के जरिए वह नौजवानों को झोला छाप गरीब और चाय वाला ही बनाए रखना चाहते हैं.

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