राष्ट्रपति पद का अपमान है

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राष्ट्रपति पद का अपमान है

आलोक कुमार

रांची.भारत देश की यानी हमारी नई संसद बनकर तैयार है. लेकिन फीता काटने पर रार है. 28 मई की तारीख मुकर्रर है.इस बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का उद्घाटन किया.

 राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तीन दिवसीय दौरे पर झारखंड में हैं. इसी दौरान बुधवार को उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का उद्घाटन किया. कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत रुप से हुई. उद्घाटन समारोह में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेधवाल, झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, डीजीपी अजय कुमार सिंह, डीसी राहुल कुमार सिन्हा समेत कई अधिकारी मौजूद है.

          कार्यक्रम में अपने संबोधन से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का स्वागत किया. साथ ही उन्होंने कहा कि वीरों की धरती में मेहमानों का स्वागत है. उन्होंने कहा कि झारखंड हाईकोर्ट के नए भवन का राष्ट्रपति के हाथों उद्घाटन होना राज्य के लिए गौरव का क्षण है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कानून को लेकर हमेशा चिंतित रहती है. सीएम ने कहा कि देश के हर न्यायालय से झारखंड हाईकोर्ट का यह भवन बड़ा है. 

           सीएम ने कहा कि राज्य में अभियान चलाकर हमने 5 सालों से लंबित 4 हजार मामलों का निष्पादन किया है. और अब 4 साल से लंबित मामलों का निष्पादन किया जा रहा है. आगे सीएम ने कहा कि आज मुझे मुख्य न्यायाधीश को सुनने का मौका मिला है. आज 506 न्यायिक पदाधिकारी राज्य में कार्यरत है. हम उन्हें हर सुविधा दे रहे हैं. इस दौरान मुख्यमंत्री ने सुपीरियर न्याय सेवा में आदिवासी के लिए आरक्षण देने का आग्रह भी किया. उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य में यह शायद पहली बार है जब भारत सरकार द्वारा केंद्र की स्कीम चलाई जा रही है सीएम ने कहा कि इस भवन के निर्माण में हर कुछ जोड़ी जाए तो इसके निर्माण में लाख करोड़ रुपए खर्च हुए है. 

         झारखंड हाई कोर्ट कई मायनों में काफी खास है. इसका परिसर सुप्रीम कोर्ट से लगभग साढ़े तीन गुना बड़ा है. यह 65 एकड़ जमीन में फैला है. झारखंड हाई कोर्ट में 25 भव्य वातानुकूलित कोर्ट रूम तैयार किए गए हैं. जहां मुकदमों का निपटारा किया जाएगा.

     खैर, नई संसद करीब ढाई साल में बनकर तैयार हो गई है. पीएम नरेंद्र मोदी ने इसका शिलान्यास किया था, अब 28 मई को वह उद्घाटन भी करेंगे. इसी बात को लेकर अब सियासत शुरू हो गई है. विपक्षी दलों का कहना है कि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से न कराना राष्ट्रपति पद का अपमान है. अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि देश के लिए एक संसद होगी जिसका हिस्सा राष्ट्रपति और दोनों सदन होंगे यानी लोकसभा और राज्यसभा. ध्यान रहे कि इस अनुच्छेद में प्रधानमंत्री का उल्लेख नहीं है.

   विपक्ष का पहला तर्क है कि संसद की परिभाषा में कहीं भी प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है.इसलिए पीएम को उदघाटन नहीं करना चाहिए.दूसरा, प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के नेता हैं और संसद दोनों सदनों को मिलाकर बनती है. इसलिए, राष्ट्रपति को ही इसका उदघाटन करना चाहिए.तीसरा, राज्यसभा कभी भंग नहीं होती.इसे काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है.और इसके अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं.इसलिए राष्ट्रपति के बाद उदघाटन का नैतिक दायित्व उपराष्ट्रपति का है.

     28 मई को यानी उद्घाटन दिन वीर सावरकर का जन्मदिन है जिसे मौजूदा राजनीति ने सबसे विवादास्पद ऐतिहासिक शख्सियत का दर्जा दे दिया है. इसलिए नई संसद की उदघाटन की तारीख भी विवादों में है. पर विवाद की तह में नरेंद्र मोदी आ गए हैं.वहीं बीजेपी का कहना है कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी संसद भवन की इमारतों का उद्घाटन कर सकते हैं तो पीएम क्यों नहीं कर सकते.

    कोई कह रहा सेंट्रल विस्टा की जरूरत क्या थी तो कोई पूछ रहा प्रधानमंत्री लोकतंत्र के मंदिर का उदघाटन कैसे कर सकते हैं? सवाल की अगुआई राहुल गांधी ने की और आज 19 पार्टियां उनके साथ हैं.कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, DMK, आम आदमी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट), समाजवादी पार्टी, RJD, CPI, JMM, केरल कांग्रेस (मणि), VCK, RLD, NCP, JDU, CPI(M), IUML, नेशनल कॉन्फ्रेंस , आरएसपी, एआईएमआईएम और एमडीएमके

       एक ही आवाज बुलंद हुई है - बॉयकॉट, बॉयकॉट, बायकॉट.विपक्ष की मांग है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नई संसद का फीता कटवाया जाए क्योंकि वो संविधान की संरक्षक हैं.उधर मंत्री हरदीप पुरी का कहना है कि इंदिरा गांधी ने संसद की एनेक्सी और राजीव गांधी ने लाइब्रेरी का उदघाटन किया था तो बवाल नहीं मचा.इस पर कांग्रेस का कहना है कि पुरी साहब ब्यूरोक्रैट हैं, जानकारी नहीं है. ऑफिस के उदघाटन और संसद के उदघाटन में फर्क उन्हें पता नहीं है.माहौल संभालने के लिए अमित शाह ने खुद मोर्चा संभाला और प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए बैठ गए. उन्होंने सैंगोल का दहला फेंक दिया.कैसे 14 अगस्त 1947 की आधी रात ये सैंगोल अंग्रेजों की सत्ता जाने का प्रतीक बना जिसे नई संसद में रखा जाएगा.इसके बाद अब चर्चा हो रही है कि अगर कांग्रेस ने इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया तो ये नेहरू का अपमान होगा. मोदी सरकार ने तो मंत्रियों की फौज उतार दी है.


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