मुकेश नेमा
कटहल और सरकारी बंगलों मे सीधा संबंध.कटहल होगा तो सरकारी बंगला होगा और सरकारी बंगला होगा तो कटहल होगा.जितना बडा सरकारी बंगला होगा उतनी ही अधिक तादाद मे कटहल के पेड़ होंगे.और जितना बडा अफसर होगा उसके बंगले पर लगे कटहल उतने ही अधिक ज़ायक़ेदार होंगे.
कटहल की उपस्थिति बताती है कि कोई सरकारी आदमी आसपास पाया जाता है.कटहल या तो किसान पैदा करता है या अफसर.अंतर इतना भर कि कटहल उगाने के लिए किसान पसीना बहाता है फल आने का इंतज़ार करता है और अफसर लगे लगाए कटहल के पेड़ पाता है और जब मन हो कटहल खाता है.
साहब और कटहल से याद आया.नरसिंहपुर की पोस्टिंग के दौरान मुझे मिले सरकारी बंगले मे एक कटहल का पेड़ मौजूद था.जब तक रहे कटहल खाए गए ,जब ट्रांसफ़र हुआ ,उस वक्त भी वह पेड़ कटहलों से लदा था.दरियादिली के आलम मे ,घर मे काम करने वाले बंदों को कहा गया कि वो आपस मे बाँट लें कटहल.बाद मे पता चला ,उन कटहलों की वजह से उन लोगों के बीच भारी तकरार हुई.खून खच्चर हुआ और कुछेक सर भी फूटे.ग्वालियर के सरकारी मे भी कटहल का पेड़ मिला.पर पता नही क्यों ,वो कंजूस पेड़ कटहल देने को तैयार था नही ,सो हम लोग वहां इसका एक और पौधा रोप आए ताकि आने वाले भविष्य में वहां भी अमन चैन कायम रहे.
कटहल के बारे मे सबसे मज़ेदार बात जो सुनी गई वो अपने आप को शाकाहारी कहने वालों की तरफ से है.ये उन्हें नानवेज वाला लुत्फ़ देता है.ऐसे जहीन लोगों को मेरी सलाह यही कि ऐसी बातें करने से बचे.आपके ऐसा कहने से मुर्गों और बकरों का मन खराब होता है.बेहतर यह होगा कि वे सुनी सुनाई बातों पर यकीन न करें।केवल शकल पर न जाएं कटहल की सब्जी की.पहले मटन चिकन का भोग लगाएं फिर कटहल के बारे मे राय जाहिर करें.
यह कटहल चर्चा इसलिए क्योंकि कल घर बैठे कटहल मूवी देख ली गई.फिल्म ठीक ठीक लगी.गलती शायद मेरी ही थी ,मुझे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी इस फ़िल्म से.सान्या मल्होत्रा ,विजय राज और रघुवीर यादव ने पूरी कोशिश की कि इसमें स्वाद आ जाए पर वो पूरी तरह कामयाब होते दिखे नही मुझे.बहरहाल यही कहूँगा कि ,कटहल को पकने देना चाहिए,उसे सही वक्त पर तोड़ा जाए तो बेहतर.ये फिल्म ,कहानी ,निर्देशन के स्तर पर थोडी और पकाई जाती तो और बेहतर हो सकती थी.मुकेश नेमा की फ़ेसबुक वाल से साभार
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