डा रवि यादव
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर 'रिपॉर्टर्ज़ विदाउट बॉर्डर्ज़' से जारी प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत गत वर्ष के 150 वें पायदान से नीचे 161वें पायदान पर पहुँच गया है जबकि वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता संभालते समय 140 वें स्थान पर था . निश्चित ही 140 वाँ स्थान कोई सुखद स्थिति को दर्शाने वाला नहीं था मगर अब उससे गिर कर 161 पर पहुँचना भारत में प्रेस की ही नहीं लोकतंत्र की लगातार होती दयनीय स्थिति का द्योतक है . प्रेस को लोकतंत्र का प्रहरी कहा गया है . प्रेस फ़्रीडम देश की वर्तमान हालत का कारण और परिणाम दोनो ही है . प्रेस फ़्रीडम और डेमोक्रेसी में अनुक्रमानुपाती सम्बंध होता है. 2014 के मुक़ाबले प्रेस फ़्रीडम में भारत 21पायदान नीचे गिरा है तो डेमोक्रेसी सूचकांक में भी 2014 में 33वें नम्बर से 20 पायदान गिरकर 2022 में 53 वें नंबर पर पहुँच गया है और ह्यूमन फ़्रीडम इंडेक्स में 106 से गिरकर 150 वें पायदान पर. प्रेस की निष्पक्षता सिर्फ प्रेस का मुद्दआ नही है . जन कवि दुष्यंत कुमार के शब्दो में कहें तो -
आंधी में सिर्फ हम ही उखड़ कर नही गिरे
हमसे जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और
भारत का मीडिया सदैव से आलोकतंत्रिक ग़ैरबराबरी पसंद सामाजिक पदानुक्रम के समर्थक कथित सवर्ण समाज से तालुक्क रखने बाले लोगों द्वारा संचालित रहा है .अक्टूबर 2022 में आँक्सफ़ैम इंडिया द्वारा हू टेल्ज अवर स्टोरीज़ मैटर्स : रिप्रेज़ेंटेशन आँफ मार्जिन्लाइज़्ड कास्ट ग्रूप इन इंडियन मीडिया शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार मीडिया में नेतृत्व के सभी पदों पर क़ाबिज़ टीवी चैनल्स और डिजिटल मीडिया प्रतिष्ठानो को शामिल करते हुए 88 प्रतिशत सवर्ण हिंदू है . तो एक तो इनका झुकाव स्वाभाविकरूप से उस सामाजिक व्यवस्था को पोषित करने के प्रति रहता है जो जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था की हिमायती है . इस व्यवस्था का राजनीतिक प्रतिनिधित्व 1990 तक कांग्रेस करती थी और अब भाजपा .दूसरा इस दुर्दशा का महत्वपूर्ण कारण सरकार का आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह विफल होना है जिसे वह वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटका कर ग़ैर ज़रूरी ही नहीं बल्कि भविष्य के लिए बेहद घातक मुद्दों को हवा देकर करती है . सरकार आर्थिक मोर्चे पर किसानों की आय दो गुना करने , रोज़गार उपलब्ध कराने , स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहतर करने और शिक्षा व्यवस्था में सुधार के अपने वायदों को पूरा करने में विफल रही है. भ्रष्टाचार और ख़ास पूँजीपतियों की हिमायत के आरोपो से बचने व अपनी सत्ता बरक़रार रखने के लिए सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है और कदाचार के दागो को धोने के लिए मीडिया का दुरुपयोग करती रही है .
स्वतन्त्र न्यायपालिका , स्वतंत्र और निपक्ष चुनाव आयोग और स्वतन्त्र निर्भीक मीडिया किसी भी लोकतंत्र के आवश्यक अवयव होते है .आज मीडिया न केवल लोकतन्त्र के विनाश के लिए बारूद की व्यवस्था कर रहा है मांचिस भी लगा रहा है और आग लगाकर सेंक रहा है और लोकतंत्र को जला रहा है. तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया भी सवालों के घेरे में है . चुनाव आयोग की आचार संहिता के अनुसार चुनाव प्रचार के समय धार्मिक आधार पर मत देने की अपील या धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग प्रतिबन्धिकिया गया है लेकिन स्वयं प्रधान मंत्री बजरंगबली के नाम पर वोट देने की अपील कर रहे है और वोट करने के बाद वोटरों से जय बजरंगबली का नारा लगाने के लिए भी कह रहे है मगर चुनाव आयोग को प्रधान मंत्री , गृह मंत्री की भाषा से कोई आपत्ति नहीं है .उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव चल रहे है वहाँ मतदाता पहचान का काम प्रदेश की पुलिस कर रही है अल्पसंख्यक बहुल मतदान केंद्रो पर मतदान न हो यह प्रयास पुलिस द्वारा किया जा रहा है और इसका सफल प्रयोग वे रामपुर लोकसभा और विधान सभा उपचुनाव में कर चुके है . तमाम वीडीयो होने , विपक्षी पार्टी की शिकायत या धरने के बाद भी चुनाव आयोग कोई सुनवाई करने को तैयार नहीं है .
जिस उत्तर प्रदेश में जेल में हत्यायें हो रही है , पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु में देश में शीर्ष पर है , जहाँ सरकार की दृष्टि में प्रदेश का सबसे कुख्यात अपराधी पुलिस अभिरक्षा में मार दिया जाता है और मीडिया इसे कानून व्यवस्था के लिए चुनौती के बजाय सरकार की उपलब्धि के रूप में पेश करता है , मुख्य मंत्री के गृह जनपद में होटल में व्यापारी की हत्या और प्रधान मंत्री के संसदीय क्षेत्र में अभिनेत्री की होटल में हत्या प्रदेश की बदहाल क़ानून व्यवस्था को बताने के लिए काफ़ी है .महिला अपराधों में उत्तर प्रदेश गत वर्ष 56083 रिपोर्टिड घटनाओं के साथ देश में शीर्ष पर है और शासन महिलाओं के प्रति इतना क्रूर और पक्षपातपूर्ण है कि अपनी सरकार बनने के पहले ही वर्ष में योगी सरकार चिन्मयानन्द पर लगे बलात्कार के केस को वापस ले लेती है और फिर वही चिन्मयानन्द पर अन्य महिला द्वारा आरोप लगाया जाता है तो पीडिता को जेल भेज दिया जाता है कोर्ट के आदेश के बाद भी चिन्मयानन्द को अस्पताल में रखा जाता है . भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर दुराचार का आरोप लगाने वाली पीडिता मुख्यमंत्री सहित हर उस दर तक फ़रियाद ले कर गई जहाँ से न्याय की उम्मीद थी मगर उसके पिता की थाने में पुलिस अभिरक्षा में मौत हो गई और चाची और मौसी को दुर्घटनाग्रस्त कर मौत के घाट उतार दिया गया , चाचा को जेल भेज दिया गया तब देश व्यापी हाहाकार और कोर्ट के आदेश के बाद सेंगर पर कार्यवाही हुई . उन्नाव में ही दूसरी घटना में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दलित पीडिता के आरोपियों ने ज़मानत मिलने के बाद उसका घर जला दिया जिसमें उसका बच्चा और नाबालिग़ बहन भी जल गए. हाथरस में सरकार का रवैया कितना ग़ैरसंवेदनशील और पक्षपाती था वह पूरा देश जनता है और अब देश का परचम दुनिया में फहराने वाली अन्तर्राष्ट्रीय पदक विजेता आज जब दिल्ली में रो रही है तो कोर्ट के आदेश से मजबूर सरकार ने एफ़आईआर तो लिख ली मगर फ़रियादियों पर ही सरकार और समर्थकों का क़हर जारी है . इतने पर भी मुख्य मंत्री क़ानून के राज की दुहाई देते है और क़ानून के राज के लिए वोट भी पाते है तो यह मीडिया के प्रचार का ही कमाल है . पहली बार भाजपा के शासन में मणिपुर अभूतपूर्व हिंसा से गुजर रहा है ठीक उसी तरह जैसे पहली बार भाजपा सरकार बनने पर हरियाणा एक सप्ताह जला था . यह सब संयोग है या प्रयोग मीडिया को जानने और बताने की जरूरत नही लगती .
मीडिया वह शक्तिशाली माध्यम है जो तथ्यों को ट्विस्ट कर इस तरह प्रेज़ेंट कर सकता है जिससे पीड़ित के प्रति नफ़रत और पीड़क के प्रति सहानुभूति पैदा की जा सके और वही काम वह पिछले समय से कर रहा है.किंतु यह भी सच है कि सरकार कि चिलमनों को रफ़ू करते करते आज मीडिया की अपनी स्वतंत्रता और शाख़ वहाँ पहुँच गई है जहाँ से वह अधिक दिन तक सरकार की शाख़ को नहीं बचा सकता सरकार की नाकामियो को छुपाकर कामयाबी की मनगढ़ंत कहानियाँ बनाकर मीडिया अब तक सरकार के रक्षा कवच का काम करता रहा है भले उसकी ख़ुद की शाख़ लगातार घट रही है लेकिन अब उसकी हालत हम तो ढूबेंगे सनम तुम्ह भी ले ढूबेंगे की हो चुकी है .
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