आलोक कुमार
पटना.पटना हाइकोर्ट ने बिहार में राज्य सरकार द्वारा करायी जा रही जाति गणना पर गुरुवार को तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ ने दोपहर बाद अपना अंतरिम फैसला सुनाया. कोर्ट ने साथ ही इस जाति गणना के तहत अब तक एकत्र किये गये आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया.
बता दे कि बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 जनवरी से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था. दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ और 15 मई तक चलने वाला था.इस बीच अधिवक्ता दीनू कुमार ने पटना हाईकोर्ट को बताया कि राज्य सरकार जातिगत और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है. उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण करने का यह अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.महाधिवक्ता पी.के. शाही ने कहा कि जनकल्याण की योजनाएं बनाने और सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए सर्वेक्षण कराया जा रहा है.बिहार में जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
बिहार में जातिगत गणना पर पटना हाईकोर्ट ने पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को बिहार में जाति आधारित जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी.मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी. नीतीश सरकार के लिए ये बड़ा झटका है. बिहार में जाति आधारित सर्वे को जातिगत जनगणना या जातीय गणना भी कहा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में जाति आधारित सर्वे को रद्द करने के लिए याचिकाएं दाखिल हुई थीं, लेकिन कोर्ट ने तुरंत इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था. बता दें कि नीतीश सरकार जातिगत गणना कराने के पक्ष में रही है. नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है.
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जातिगत गणना पर हाईकोर्ट की अंतरिम रोक पर कहा कि हमारी सरकार जातिगत गणना कराने के लिए प्रतिबद्ध है. हम राज्य में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए ये सर्वे कर रहे हैं. हम अपनी कोशिश जारी रखेंगे. इससे पहले आज, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में उनकी सरकार द्वारा की जा रही जातियों की गणना के विरोध पर नाराजगी व्यक्त की.नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना के लिए केंद्र से बार-बार अनुरोध किया था और जब उन्हें वहां से निराशा हाथ लगी फिर उन्होंने सर्वे का आदेश दिया था.
भाकपा - माले राज्य सचिव कामरेड कुणाल ने बिहार में जारी जाति गणना पर पटना उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए अंतरिम रोक को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. कहा कि जाति गणना की मांग हम सबने देश के प्रधानमंत्री से मिलकर की थी, लेकिन भाजपा सरकार ने उसे ठुकरा दिया था. तब जाकर बिहार की सरकार ने अपनी पहलकदमी पर जाति गणना की शुरुआत की थी. 1931 के बाद से देश मे कोई जाति गणना हुई ही नहीं है, जबकि दलित - पिछड़ी जातियों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं, आरक्षण को तर्कसंगत बनाने तथा सामाजिक स्तर में सुधार के लिए जाति गणना बेहद जरूरी था. हम उम्मीद करते हैं कि अगली सुनवाई में बिहार सरकार मजबूती से जाति गणना के पक्ष में अपने तर्कों को रखेगी और जो भी विसंगतियां रही हैं, उसे ठीक करने के उपाय करेगी.
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