बेमानी है भाजपा का सामाजिक न्याय सप्ताह

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

बेमानी है भाजपा का सामाजिक न्याय सप्ताह

डा रवि यादव

भारतीय जनता पार्टी अपने स्थापना दिवस 6 अप्रेल से बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर जयंती 13 अप्रेल तक को सामाजिक न्याय सप्ताह मना रही है . पार्टी के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन के साथ कार्यक्रम शुरू हो चुके है . यद्यपि सामाजिक न्याय सप्ताह की योजना कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी  को सूरत कोर्ट द्वारा 2019 में कोलार कर्नाटक में  मोदी सरनेम पर उनकी टिप्पणी को अवामानना का दोषी ठहराए जाने के बाद बनी थी . गोरतलब है कि राहुल गांधी ने 13 अप्रेल 2019 को लोकसभा चुनाव के दौरान ललित

मोदी और नीरव मोदी के भ्रष्टाचार पर टिप्पणी करते हुए सबाल किया था कि नीरव मोदी ललित मोदी नरेन्द्र मोदी ये भ्रष्ट लोगों के सरनेम मोदी ही क्यों है ?  इस पर आपत्ति जताते हुए गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी केस दर्ज कराया था जिस पर 23 मार्च को  सूरत सेशंस कोर्ट ने उन्हें दोषी मानते हुए 2 साल की सज़ा दे दी .भाजपा ने इसे मोदी समुदाय का अपमान और पिछड़ों का अपमान बताया और इसे जनता के बीच ले जाने की योजना तैयार की.यह अलग बात है कि मोदी नाम का कोई समुदाय भारत में नहीं है. देश भर में पहचान बनाने वाले मोदी सरनेम वाले अनेक व्यक्ति अलग अलग जातियों और धर्म से सम्बंधित हुए है  जैसे  प्रखर वक़्ता और सांसद पीलू मोदी , टाटा स्टील और आइरन के अध्यक्ष रहे रूसी मोदी पारसी समुदाय से थे सैयद मोदी मुस्लिम तो प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी हिंदू धर्म से ताल्लुक़ रखते है . राहुल गांधी ने जिन ललित मोदी और नीरव मोदी पर प्रश्न किया था वे भी सवर्ण समुदाय से ताल्लुक़ रखते है . अतः राहुल गांधी ने पिछड़ों का अपमान किया का मुद्दा धार देने योग्य नहीं जान पड़ता. फिर भी भाजपा द्वारा सामाजिक न्याय सप्ताह मनाया जाना समाज के दलित पिछड़ें वर्ग के लिए उम्मीद जगाने वाला प्रयास माना जाना चाहिए मगर  सामाजिक न्याय सप्ताह के दौरान किए जाने बाले कार्यक्रमों को देखा जाय तो एक भी दिन का कार्यक्रम सामाजिक न्याय से वंचित वर्ग के सशक्तिकरण की योजनाओं पर नहीं है .किसान मोर्चा प्राकृतिक खेती की जानकारी देगा तो महिला मोर्चा सहभोज का कार्यक्रम करेगा , पौधा रोपण,ध्वज रोहण ,रंगोली , सहभोज किस तरह वंचित वर्ग का उत्थान सुनिश्चित करेंगे ?यह सोचने का विषय है .


संघ या भाजपा समानता की बात नहीं कहते वे हमेशा समरसता की बात कहते है अर्थात समानता के बिना जो

आपकी स्थिति है उसे स्वीकार कर सामाजिक वर्ण व्यवस्था की हायरार्की ( पदानुक्रम )को स्वीकार करने का

संदेश दिया जाता है. संघ भाजपा का संवाद भी एकतरफ़ा ही होता है वे अपनी बात कहते है सामने से क्या

आग्रह /अनुरोध / सबाल है उसे सुनना और उसका समाधान आवश्यक नहीं क्योंकि सबाल करने देना समरसता के

अभाव की निशानी है, सबाल से समरसता खत्म या बाधित होती है तो संवाद के नाम पर होने बाले कार्यक्रम

भी विषाद या फ़साद के लिए ही होते है . जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने आज़मगढ़ में कहा कि “पहले सिर्फ़

रमज़ान पर 24 घंटे बिजली मिलती थी “ क्या इससे कोई सामाजिक न्याय की उम्मीद की जा सकती है ?

सामाजिक न्याय सप्ताह में भाजपा को बताना चाहिए कि - 

वह जातीय जनगणना करा कर ओबीसी को उनकी संख्या के अनुपात में  शासन प्रशासन न्यायपालिका में

भागीदारी सुनिश्चित करेगी . ओबीसी एससी एसटी को उनकी सख्या के अनुपात में बैंक लोन दिए जाएँगे .

मंडल  आयोग के तहत मिला ओबीसी आरक्षण व एससी एसटी के अनुपालन में सिथिलता बरतने बाले

पदाधिकारियों पर आवश्यक क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी .मंडल आयोग की अन्य अनुशंसाओं को शीघ्र लागू

किया जाएगा. पिछड़ा वर्ग / अनुसूचित जाति / जनजाति के विकास के लिए पूर्व से कार्यरत वित्त एवं विकास


निगमो को धन आवंटन किया जाएगा .उसे बताना चाहिए कि लेट्रल एट्री  से भारत सरकार में अति महत्वपूर्ण

पदों पर 450 से अधिक  नियुक्तियाँ में एक भी ओबीसी क्यों नहीं है , क्यों  शिक्षक भर्ती में ओबीसी

एससीएसटी का हक़ मारा गया ? क्यों गोरखपुर विश्वविध्यालय बाँदा विश्वविद्यालय और चन्द्रशेखर विश्व

विद्यालय में  90 प्रतिशत पदों सिर्फ़ ब्राह्मण और राजपूतों की नियुक्ति हुई है ? क्यों पिछड़ा वर्ग वित्त एवं

विकास निगम को छः साल से बजट आवंटित नहीं किया जा रहा ?

2 अप्रेल 2018 को दलित उत्पीड़न एक्ट में संशोधन के विरोध में एक दर्जन युवकों को  पुलिस ने गोली मारकर

मौत के घाट उतार दिया और हज़ारों पर मुक़दमे किए गए . सब्बीरपुर सहारनपुर में दलितों पर सरकारी दमन

, हाथरस की बेटी को आज की न्याय की दरकार है . पुलिस कष्टडी में सैंकड़ों दलित पिछड़ें मार दिए गए उनके

परिवार आज भी न्याय के लिए तरस रहे है . हाल ही में झाँसी में फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारे गए पुष्पेंद्र की विधवा ने

न्याय की आस टूट जाने पर आत्म हत्या कर ली और सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंग रही , आगरा में सेना में

अग्निवीर भर्ती होने आए मध्य प्रदेश के मुरेना के नवयुवक अमित गुर्जर को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया क्या यूपी

सरकार को एक संवेदना संदेश देने की फ़ुर्सत नहीं , इसके पूर्व ग़ाज़ियाबाद में सुमित गुर्जर आज़मगढ़ में मुकेश

राजभर , इलाहाबाद में पिंटू पटेल , गोरखपुर में अशोक निषाद , गोरखपुर में ही मनीष प्रजापति  और मनीष

गुप्ता की भी पुलिस हत्या कर चुकी है . बर्बर  हत्याओं में भाजपा  सरकार द्वारा  सिर्फ़ लखनऊ में मारे गए

विवेक तिवारी और गोरखपुर में मारे गए मनीष गुप्ता के परिवार की आर्थिक मदद की गई किसी दलित ओबीसी

के परिवार की मदद क्यों नहीं की गई ? क्या दलितों पिछड़ो की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्यायें कर उसे सख़्त और

अच्छी क़ानून व्यवस्था कह कर प्रचारित करना  सामाजिक न्याय है?

जब तक इन ज़रूरी सबालों के जवाब नहीं दिए जाते या कुछ ठोस कार्यक्रम दलितों पिछड़ों महिलाओं के

सशक्तिकरण, स्वाभिमान , भागीदारी और बराबरी पर लाने की कौशिश नहीं की जाती तब तक सामाजिक

न्याय सप्ताह क्या सामाजिक न्याय वर्ष और दशक मनाना बेमानी ही नहीं बेईमानी भी है . विख्यात शायर प्रो .

वसीम बरेलवी साहब ने लिखा है -

नहीं गोदी बदलना चाहत है

ये बच्चा पाव चलना चाहता है .

ये ख़ुद को बदलना चाहता है

कुछ हमको बदलना चाहता है .

वंचित वर्ग पार्टियाँ ज़रूर बदलता रह सकता है मगर तक़दीर बदलना तो नीति नियंताओ पर ही निर्भर है जो

इन्हें बार बार छल कर उसे अपनी श्रेष्ठता मान लेते है.


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