भोपाल. एकता परिषद सहित विभिन्न जनसंगठनों ने आज भोपाल में 'पंच ज' (जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर) के संरक्षण, संवर्धन और आजीविका विषय को लेकर प्रदेश भर के आदिवासियों के साथ सम्मेलन आयोजित किया. सम्मेलन में 22 जिलों से आए आदिवासी समुदाय के मुखियाओं ने अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं को साझा किया. उन्होंने बताया कि आज भी वन विभाग द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. उनके खेतों में लगी फसलों को उजाड़ा जा रहा है.उनके वन अधिकार के दावों को बिना बताए निरस्त किया जा रहा है. आदिवासी समुदाय को न तो जंगल से आजीविका मिल रही है और न ही उन्हें रोजगार से जोड़ा जा रहा है.
सम्मेलन में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार ने कहा कि संगठन की ताकत से हमने कई कानूनों में बदलाव के लिए सरकार को झुकाया है.हमें फिर अपनी ताकत को पहचान कर एकजुटता के साथ आंदोलन करना होगा, ताकि न केवल आदिवासी बल्कि सभी वंचित समुदाय को जल, जंगल, जमीन पर अधिकार मिले और आजीविका का साधन मिले। कानून एवं नीतियों का लाभ समुदाय को मिल सके, इसके लिए एकजुटता की ताकत महत्वपूर्ण हैं. हर बार की तरह एक बार फिर राजनेता वोट के लिए गांव-गांव घुम रहे हैं, लेकिन हमें अपनी समस्याओं का समाधान के लिए उनसे सवाल करना होगा.यदि वे हमारी बात नहीं मानते, तो आगामी 5 जून को भोपाल में एक प्रदेशव्यापी बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा.
बरगी बांध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा ने कहा कि 2008 में पहली बार जब वन अधिकार के दावे किए गए थे, तब निरस्त करने पर कारण भी बताए गए थे.उस दरम्यान लोगों की सक्रियता भी कम थी। अब निरस्त दावों के कारण नहीं बताए जा रहे हैं. ऐसे में सरकार पर जन दबाव बनाने की जरूरत है, ताकि वन अधिकार का सही तरीके से क्रियान्वयन हो सके. कानूनी विशेषज्ञ जयंत वर्मा कहा कि संगठन की ताकत से अंग्रेजों के जमाने के बनाए कानून को बदलने के लिए प्रयास करने की जरूरत है. वन विभाग सहित अन्य विभाग जनहितैषी तरीके से काम करें, इसके लिए दबाव बनाना होगा. एकता परिषद के वरिष्ठ साथी निर्भय सिंह ने कहा कि पंच ज के अधिकारों के लिए संघर्ष के साथ-साथ सरकार के साथ संवाद भी करते रहेंगे.
एकता परिषद के संतोष सिंह, अनीष कुमार, डोंगर शर्मा, दीपक अग्रवाल, वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान, सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अजय मेहता सहित कई वक्ताओं ने सम्मेलन को संबोधित किया. वन अधिकार कानून के तहत दावेदारों को उनके दावा दिलाने के लिए प्रदेश के सभी जन संगठन आगामी दिनों में वन अधिकार पर व्यापक स्तर पर काम करेंगे. जिन आदिवासी परिवारों को वन अधिकार मिल चुके हैं, उन्होंने जैविक खेती से उपजी फसलों को सम्मेलन में प्रदर्शित किया.
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