प्रेमकुमार मणि
सूरत की एक अदालत ने कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई है. यह सजा उन्हें अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने से रोक सकती है और इससे उनकी संसद सदस्यता जा सकती है. कोई चार साल पहले उनके द्वारा दिए गए एक सार्वजनिक भाषण को आपत्तिजनक और किसी समुदाय विशेष के लिए अपमानजनक मानते हुए उन्हें यह सजा दी गई है. अखबारों से मैंने यही जाना था कि अपने भाषण में राहुल ने जनता से सवाल किया था - " सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है ? " . निश्चित ही ऐसे भाषण गलत हैं और कोई सभ्य आदमी इसका समर्थन नहीं करेगा. लेकिन क्या यह ऐसा मामला है जिससे मुल्क के किसी राजनेता का आप करियर नष्ट कर दें ? क्या किसी सांसद की लोकसभा सदस्यता इसके लिए ख़त्म की जा सकती है ? यदि ऐसी प्रवृत्ति रही तो मेरा मानना है लोकतंत्र ठप पड़ जाएगा .
मैंने बहुत पहले इस बात की भी निंदा की थी कि राहुल जैसे जिम्मेदार व्यक्ति को चौकीदार चोर है ,जैसे हलके जुमले नहीं बोलने चाहिए. दरअसल उनके इर्द -गिर्द ऐसे लोगों की जमात इकट्ठी है जो दिनरात ऐसी ही बातों की घुट्टी उन्हें पिलाती रहती है. उसी का नतीजा यह सब है. लेकिन इस सजा पर सवाल तो उठेंगे.
फैसला कोर्ट का है ,इसलिए इस पर मैं कोई टिपण्णी नहीं करना चाहूंगा, प्रथमदृष्टया ही यह कुछ सवालिया निशान उठाता है. निश्चित तौर पर इसकी जनप्रतिक्रिया होगी और वह भाजपा को भारी पड़ सकती है. 1978 में ऐसा ही हुआ था,जब इंदिरा गांधी को सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था. चरण सिंह तब गृहमंत्री थे. इंदिरा की गिरफ्तारी केलिए वह बेताब थे. रायबरेली से हार के बाद चिकमगलूर से जीत कर इंदिरा सांसद हुई थीं .उनकी संसद सदस्यता रद्द की गई. शाह कमीशन बैठा और इंदिरा पर और तो और मुर्गी चोरी के आरोप लगाए गए. इन्ही सब की प्रतिक्रिया थी कि इंदिरा 1980 में दो तिहाई बहुमत से जीत कर आईं.
इसलिए राजनीतिक रूप से राहुल गांधी को सब मिला कर इससे फायदा ही होगा. कई भारत जोड़ो यात्रा मिला कर जो राजनीतिक फायदा उन्हें होता, उससे कहीं अधिक इस एक मामले से संभव होगा. इसलिए कि जनता की अदालत बहुत न्यायपूर्ण है. वह जानती है कि खीरा चोर को फांसी नहीं दी जानी चाहिए. यदि यह होता है तो सही नहीं है. राहुल गांधी द्वारा कही गई बात का कोई समर्थन नहीं करेगा. शायद राहुल की जुबान फिसली हो,जैसा कि उन्होंने शायद कोर्ट में कहा भी कि उनका इरादा गलत नहीं था. इसके बाद चेतावनी देकर बात ख़त्म करनी चाहिए थी. या फिर सांकेतिक चौबीस घंटे की सजा दी जा सकती थी. इस सजा ने हमारी न्यायपालिका पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.
हमारे देश-समाज में विभिन्न समुदायों पर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का एक रिवाज जैसा है. कई लोक मुहावरे हैं,जो विभिन्न जातियों और समुदायों को लेकर अपमानजनक हैं. एक दिन में सब बदलने से रहा. जब हम अँधा कानून कहते हैं तब क्या दृष्टिहीन दिव्यांगों की भावना आहत नहीं होती ? हम लूली -लंगड़ी राजनीति या फिर काला-बाजार कहते हैं तब दिव्यांगों और कृष्णवर्णी लोगों की भावना आहत नहीं होती ? लोग मुहावरे में बोल जाते हैं ' हमारे इलाके में चोरी -चमारी बहुत हो रही है." चोरी के साथ चमारी ( कॉबलर ) को आप जब जोड़ते हैं तब क्या करते हैं. 1990 के आसपास की बात है तत्कालीन संसद सदस्य रामधन को एक सवर्ण कांग्रेस नेता ने संसद में ही " चमार का बच्चा " कहा . पत्रकारों से पूछे जाने पर उक्त कांग्रेस नेता ने कहा कि वह भी मुझे शौक से ब्राह्मण का बच्चा कह सकते हैं. इस नेता के घाघ वक्तव्य के निहितार्थ को कोई भी समझ सकता है. यह सब हमारे समाज का सच है. ऐसे समाज को हमें सधे अंदाज़ में सभ्य -सुसंस्कृत बनाना है.
राहुल गांधी के दिए वक्तव्य की कोई भी निंदा करेगा ;लेकिन यह ऐसा वक्तव्य नहीं था कि आप किसी की राजनीतिक ज़िंदगी बर्बाद कर दें. इससे हमारी न्याय प्रणाली प्रभावित हो सकती है. सर्वोच्च न्यायायलय को इस मामले पर त्वरित स्वतः संज्ञान लेना चाहिए.
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