डा रवि यादव
पिछले आठ साल से धन और मीडिया के सहयोग से कुछ ऐसा माहौल बनाया गया है कि विपक्ष नकारा है और भाजपा व नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है . उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के बाद यह स्थापित करने का प्रयास किया गया कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा के सामने कोई चुनौती अब नहीं है . मगर फिर इसी बीच बिहार में नीतीश कुमार का एनडीए छोड़ना व उसके बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने देश में भाजपा के सामने मैदान खुला होने की धारणा को बदला है. उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव फिर आज़मगढ़ व रामपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की जीत से आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा व सहयोगी मीडिया द्वारा उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए एकतरफ़ा माहौल बताया जा रहा था वहाँ मैनपुरी और खतौली उप चुनाव ने कई मिथकों को तोड़ा है . दोंनो स्थानों पर भाजपा का परम्परागत कहा जाने वाला वोट भी उसे नहीं मिला जबकि सरकारी मशीनरी का निर्लज्जतापूर्ण दुरुपयोग सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा. रामपुर के परिणाम को सभी जानते है वहाँ क्या हुआ . ऐसे में भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ चुनौतियों से भरा रहने वाला है.
राहुल गांधी ने जिस जिजीविषा , मेहनत एकाग्रता और निरंतरता से भारत जोड़ों यात्रा को पूरा किया है उसने भाजपा और संघ परिवार के हज़ारों करोड़ के निवेश और एक दशक की कड़ी मशक़्क़त से की गई अगंभीर पार्टटाइम नासमझ राजनेता की पेंट को धो डाला है . अपनी 3500 किमी की भारत जोड़ों यात्रा में वे एक निडर और जनसरोकारों पर अडिग राजनेता के रूप में स्थापित होकर उभर चुके है . कांग्रेस में अब भविष्य में उनके नेतृत्व पर कोई सबाल उठाने की हैसियत में नहीं होगा. यह ठीक है कि भारत जोड़ो यात्रा मात्र से कांग्रेस चुनावी सफलता प्राप्त नहीं कर सकती मगर विचारधारा और मुद्दा विहीन राजनीति के दौर इस यात्रा कांग्रेस को विचारधारा और मुद्दों पर मज़बूती दी है और कांग्रेस में एक निर्विवाद नेता भी. इस यात्रा से कांग्रेस को मज़बूती मिलना निश्चित है कितना यह कांग्रेस संगठन पर किए जाने वाले काम और कार्यकर्ताओं में पैदा हुई ऊर्जा को संगठन द्वारा किए जाने वाले इस्तेमाल पर निर्भर करेगी.
महाराष्ट्र , कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमांचल प्रदेश से भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में मुश्किल स्थितियों के संकेत मिल रहे है . उत्तर प्रदेश मे विपक्ष पूरी तरह अलग अलग भी चुनाव लड़ तो भी भाजपा पिछला प्रदर्शन नही दुहरा सकती . इन मुश्किल स्थितियों से निपटने के लिए भाजपा ने अपनी तपस्या बडा दी है .
25 नवम्बर 2020 से 11दिसम्बर 2021 तक तीन कृषि कानूनों के विरोध में 378 दिन चला किसान आंदोलन भारत सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज केस वापसी , आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा , बिजली दरो में संसोधन और प्रदूषण कानून में सुधार के आश्वासन के बाद समाप्त हुआ था तब प्रधान मंत्री ने इसे अपने सम्बोधन में आंदोलन की सफलता व सरकार द्वारा तीन कानूनों को वापस लेने को अपनी सरकार और पार्टी संगठन की तपस्या में कमी रहने के रुप में उल्लिखित किया था .
तपस्या - आंदोलन को मुट्ठीभर किसानों का आन्दोलन, खालिस्तान समर्थकों का आंदोलन, आढतियों का आंदोलन , बडे किसानों का आंदोलन , अराजक तत्वों का विपक्ष समर्थित सरकार को बदनाम करने का प्रयास और विकास विरोधी ,भारत विरोधी ताकतों द्वारा समर्थित तत्वो का प्रयास सिद्ध करने की थी जो नाकाम रही अर्थात आंदोलन को बदनाम करने के प्रयासों को तपस्या का नाम दिया गया था .
संघ तपस्वियों का संगठन है जो गाधी , नेहरु सहित सभी महत्वपूर्ण भाजपा विरोधी नेताओ को बदनाम करने का प्रयास या राजनीतिक तपस्या निरंतर करता रहा है उसकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी नें पंडित सुखराम के दूरसंचार घोटाले के आरोप में संसद से सडक तक आंदोलन किया मगर फिर उन्ही पंडित सुखराम के साथ मिलकर सराकार बनाई. नारायण राणे , सुरेन्द्र अधिकारी, हेमंत विश्वशर्मा , बीएस येदियुरप्पा प्रताप सरनाईक , अजीत पंवार , एकनाथ शिंदे सहित दर्जनों नेताओ के खिलाफ लम्बे समय तक आरोप लगाने ईडी सीबीआई की जांच के बाद भाजपा में आने के बाद या साथ देने के बाद सभी जांच-पड़ताल बंद कर दी गई. दूसरी तरफ राहुल गाधी को देश विरोधी सिद्ध करने भृष्ट सिद्ध करने , लालू यादव के खिलाफ छापे , मनीष सिसौदिया, के कविता सहित विपक्ष के सभी महत्वपूर्ण नेता ईडी या सीबीआई की जांच के दायरे में है . उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दो दर्जन पूर्व/ वर्तमान विधायक जेल में है. आजम खान और अब्दुल्लाह आजम को माह में बीस दिन अदालतों में चक्कर लगाने पड रहे है .
विपक्ष को नकारा के साथ भृष्ट और देश विरोधी सिद्ध करने के लिए सराकारी तंत्र का बेशर्मी से दुरुपयोग किया जा रहा है . चुनावी वांड और चुनाव आयोग के रवैए ने पहले ही लडाई को गैर-बराबरी की लडाई बनाया हुआ है ईडी सीबीआई विपक्ष के हौसले को तोड़कर चुनावी तैयारियों को कमजोर करने और जनता में छवि खराब करने के मिशन पर काम कर रही है.
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