कब तक दौड़ सकेंगे घोड़े मुंबई के विवादित महालक्ष्मी रेसकोर्स पर ?

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कब तक दौड़ सकेंगे घोड़े मुंबई के विवादित महालक्ष्मी रेसकोर्स पर ?

के  विक्रम राव 

  मुंबई में सवा सौ वर्ष पुराना रेस कोर्स आज सत्ता संघर्ष से घिर गया है.  राज्य शासन, न्यस्त स्वार्थी तत्व तथा सियासती पार्टियों के बीच पड़ गया है.  आगामी माह प्रस्तावित मुंबई महानगरपालिका निगम निर्वाचन के कारण यह आमजन का भी मुद्दा बन गया है.  मनपा का सालाना बजट 46 हजार करोड़ रुपये वाला है, जो सिक्किम और पांडुचेरी राज्यों को मिलाकर दुगुना है.  युवा शिवसेना विधायक आदित्य ठाकरे चाहते हैं कि उनके पितामह बाला साहेब ठाकरे का विशाल स्मारक इस रेसकोर्स मैदान पर निर्मित हो.  मनपा की कोशिश है कि शहर के मध्य स्थित यह सागरतटीय सोने के भाववाली भूमि कब्जिया कर रेस कोर्स को पूर्वी मुंबई के मुलुन्द उपनगर के दलदली क्षेत्र में खिसका दें.  समीपवर्ती नागरिक आवासी जन इस साढ़े आठ लाख वर्ग मीटर वाली हरित भूमि को विशाल पार्क के रूप में देखना चाहते हैं.  मसला राज्य सचिवालय की फाइलों में उलझा हुआ है.  लोलुप निगाहें गिद्धनुमा है, हथियाने हेतु सभी एकाग्र हो गई हैं.  उल्लेखनीय हैं कि इस अंडाकार मैदान में घोड़े पर दांव लगाने के पूर्व समीपस्थ (भूलाभाई देसाई मार्ग) प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में याचकजन अर्चना कर, दान का दावा वादा कर यहां प्रवेश करते हैं.  वारा न्यारा करते हैं.  कुछ खुशी से, बाकी गम से.  


      मध्य मुंबई में अरब सागर तट पर बसे इस रेस कोर्स का निर्माण 1883 में हुआ था.  पारसी दानवीर सर खुसरो एन. वाडिया द्वारा प्रदत्त भूखण्ड पर बना है.  ग्रेटर मुंबई नगर निगम ने रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब इसे पट्टे पर दिया है.  यही क्लब रेस कोर्स चलाता है.  यह एक नामित विरासत संरचना है.  दक्षिण मुंबई में रेस कोर्स नागरिक उपयोग के लिए खुला एकमात्र हेलीपैड भी है.  घुड़दौड़ का मौसम नवंबर के मध्य में शुरू होता है और अप्रैल के अंतिम सप्ताह में समाप्त होता है.  फरवरी में पहले रविवार को, डर्बी सालाना आयोजित किया जाता है और इसमें शहर के कई नामचीन हस्तियां भाग लेती हैं.  वर्ष 1986 से लेकर आज तक मैकडॉवेल्स इंडियन डर्बी को प्रमुख कंपनी मैकडॉवेल्स कंपनी लिमिटेड के नाम से भगौड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के यूबी ग्रुप द्वारा इंडियन डर्बी के रूप में प्रायोजित किया जाता रहा है. 


     मुख्य घुड़दौड़ ट्रैक के भीतरी लेन में व्यायाम, चलने या जॉगिंग के लिए निर्दिष्ट समय के दौरान आम मुंबईवासी सुबह और शाम को रेसकोर्स तक पहुंच सकते हैं.  रेसकोर्स ने कई आम मुंबई वासियों को भी मैराथनर्स में बदल दिया है.  हांगकांग में " हैप्पी वैली रेसकोर्स " के समान इस रेस-ट्रैक के भीतर स्थित बगीचे में ताई-ची जैसे योगसत्र आयोजित किए जाते हैं.  घुड़सवारी के लिए एमेच्योर राइडर्स क्लब द्वारा भी अनुमति प्रदान की जाती है.  शाम को कुत्तों को घुमाने की भी अनुमति है, लेकिन जांच के बाद.  सप्ताहांत में गैर-रेसिंग दिनों के दौरान पोलो ग्राउंड पर एयरो-मॉडलिंग के शौक़ीन विमानों को उड़ाना, मोटर चालित रेडियो-नियंत्रित विमानों के साथ हवाई कलाबाज़ी करना आम बात है.  हाल ही में मीडिया मालिकों ने जॉगर्स को सुबह समाचार पत्र देना भी शुरू कर दिया है. 


     जिस जमीन पर रेसट्रैक स्थित है, वह रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब को 99 साल के लिए लीज पर मनपा द्वारा दी गई थी.  यह 31 मई 2013 को खत्म हो गई.  इस विशाल, कीमती भूखण्ड के उपयोग पर विविध रायें है.  कुछ लोगों को लगता है कि जमीन को सार्वजनिक पार्क में तब्दील कर देना चाहिए.  अन्य लोग पार्क की योजना को लेकर संशय में हैं और महसूस करते हैं कि यह झुग्गियों और अतिक्रमणों से भर जाएगा.  राज्य सरकार रेसकोर्स को और 30 साल के लिए लीज पर देने के पक्ष में है.  शिवसेना रेसकोर्स की जमीन पर जिस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बगीचे के निर्माण की बात कर रही है, वह बाल ठाकरे का नाम देने की फिराक में है.  परंतु राज्य सरकार शिवसेना की मांग से सहमत नहीं है.  वह टर्फ क्लब को रेसकोर्स की जमीन का पट्टा (लीज) बढ़ाकर देने के पक्ष में नजर आ रही है.  कारण यही कि यह भूभाग बेशकीमती है.  हाल ही में मुंबई महालक्ष्मी स्थित रेसकोर्स मैदान की करीब सवा दो सौ एकड़ जमीन छोडऩे के लिए मुंबई मनपा प्रशासन की ओर से नोटिस जारी करेगी.  यदि इसके बावजूद मैदान नहीं छोड़ा गया, तो कार्रवाई की जायेगी।


     वर्तमान में 5000 श्रमजीवियों को इससे रोजगार मिलता है.  यहां राज्य सरकार कर वसूलती है.  केवल 43 रेस दिनों से सट्टेबाजी टैक्स से 50 करोड़ साल मिलता है.  शादियों और अन्य बाहरी कार्यक्रमों के लिए भी लॉन किराए पर दिए जाते हैं.  


     गत दिनों अपने मुंबई के प्रवास पर महालक्ष्मी मंदिर के बाद मैं रेस कोर्स भी गया था.  पुरानी यादें ताजा हो गई.  तब (1964-65 के आस-पास) "टाइम्स ऑफ इंडिया" के विश्व प्रसिद्ध घुड़दौड़ संवाददाता श्री सेसिल हेंड्रिक्स (उपनाम "पेगासस") मुझे रिपोर्टिंग सिखाने महालक्ष्मी घुड़दौड़ मैदान ले गये थे.  वे यूनानी ग्रंथों में उल्लिखित उड़नेवाले घोड़े "पेगासेस" के नाम से अपना स्तम्भ लिखते थे.  यूं मैं जुआ, मदिरा और तंबाकू का सख्त विरोधी रहा, पर पत्रकार के नाते केवल एक बार तब ही महालक्ष्मी में घोड़े पर बीस रुपए मैने लगाए थे.  पैंतीस रुपए जीते (आज के पांच सौ रुपए के बराबर).  वही पहली और अंतिम दफा था. 


     घुड़दौड़ पर दांव लगाना भारत में तथा अन्य राष्ट्रों में विकसित सम्य समाज का दस्तूर और मनोरंजन समझा जाता रहा है.  यूं घुड़सवारी सैनिक शौर्य का हिस्सा रही है.  प्रसिद्ध अश्वप्रेमी राल्फ कोल्फे ने कहा था कि दुनिया में कई खूबसूरत स्थल हैं.  पर सर्वश्रेष्ठ घोड़े की पीठ है.  इस पर विचार आया कि मानव इतिहास भी घोड़ों के पीठ पर सवार होकर ही रचा गया है.  मोटर कार पर सवार होकर तो जाना जाता है कि इंसान ने क्या बनाया.  मगर घोड़े पर चढ़कर पता चलता है कि ईश्वर ने क्या बनाया.  फिलहाल मुंबई में इस चौपाये के कारण संकट उभरा है, आर्थिक और राजनैतिक भी. फोटो साभार सोशल मीडिया 

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