फीकी पड़ी नफरत के बाजार की चमक

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फीकी पड़ी नफरत के बाजार की चमक

हिसाम सिद्दीकी श्रीनगर/नई दिल्ली! जनवरी के आखिरी हफ्ते में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मुकम्मल हुई उससे पहले शाहरूख खान की फिल्म पठान रिलीज हुई इन दोनों ने साबित कर दिया कि देश में भाईचारे और हमआहंगी का बुनियादी ढांचा कुछ कमजोर भले ही हुआ हो न तो खत्म हुआ है और न ही फिरकापरस्ती और नफरत के बाजार के खरीददार ही बचे हैं. राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान बार-बार कहा कि वह नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने निकले हैं. बजाहिर अवाम की हिमायत से उनकी मोहब्बत की दुकान चल पड़ी है और नफरत के बाजार की चमक धमक फीकी पड़ी है. अगर इसी किस्म की सियासी और समाजी कोशिशें जारी रहीं तो यकीनन देश एक बार फिर फिरकापरस्त ताकतों के पंजों से आजाद होकर भाईचारे, प्यार-मोहब्बत और सेक्युलरिज्म के रास्ते पर चल पडे़गा. नफरती ताकतें कमजोर पड़ी हैं इसकी दोनों मिसालें हैं. पहली यह कि राहुल गांधी एक सौ पैंतालीस दिनों तक कन्याकुमारी से श्रीनगर कश्मीर की चार हजार अस्सी किलोमीटर की यात्रा करते रहे तमाम कोशिशों के बावजूद नफरती ताकतों को दर्जन-दो दर्जन ऐसे नौजवान नहीं मिल पाए जो किसी भी जगह पर राहुल की यात्रा की मुखालिफत करते या उन्हें स्याह झण्डे दिखाते. जम्मू से श्रीनगर तक उनकी यात्रा के दौरान जम्मू कश्मीर में सरगर्म मुल्क दुश्मन दहशतगर्द अनासिर तक ने कोई हरकत नहीं की क्योंकि उन्हें भी राहुल को मिलने वाली अवामी हिमायत का अंदाजा था. राहुल गांधी की ही तरह शाहरूख खान और यशराज फिल्म्स की जोडी़ ने भी मुल्क के नफरती गैंग के मुंह पर प्यार-मोहब्बत का इतना जबरदस्त तमाचा जड़ा कि उनके लिए मुंह छिपाना भी मुश्किल हो गया. पठान फिल्म रिलीज हुई तो पूरा मुल्क खुसूसन नौजवान तबके ने नफरती बायकाट गैंग को सख्त सबक सिखाते हुए तमाम सिनेमा हाल पूरी तरह भर दिए. राहुल गांधी की यात्रा वैसे तो उन्तीस जनवरी को ही लालचैक पर तिरंगा फहराने के साथ मुकम्मल हो गई थी, लेकिन यात्रा की इख्तितामी तकरीब तीस जनवरी को शेरे-कश्मीर स्टेडियम में हुई. उस दिन ऐसा लगा जैसे कुदरत ने भी राहुल को आशीर्वाद दिया उस दिन मौसम की पहली बरफबारी हुई वह भी इतनी जबरदस्त कि हर तरफ बर्फ ही बर्फ दिख रही थी. उसी बरफबारी के दौरान राहुल गांधी ने तकरीबन पैंतीस मिनट तक तकरीर की. कश्मीर और कश्मीरियत की बात की कश्मीरियों और वहां तैनात सिक्योरिटी फोर्सेज के जवानों के साथ अपना दर्द साझा किया और एलान किया कि नफरत के बाजार में वह मोहब्बत की दुकानें खोलते रहेगे. उन्होने बार-बार कहा कि आपसी मोहब्बत और भाईचारे से ही देश मजबूत होगा. आम कश्मीरी इतनी जबरदस्त बरफबारी देख इंतेहाई खुश दिखा लेकिन बर्फ की वजह से श्रीनगर की फ्लाइटें कैंसिल हो गईं और राहुल की आखिरी मीटिंग में शरीक होने श्रीनगर पहुंचने वाले कई अपोजीशन पार्टियों के लीडरान श्रीनगर नहीं पहुंच सके. राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका बर्फ में एक दूसरे के साथ मस्ती करते और बर्फ के गोले मारते भी दिखे. मुल्क में नफरत के माहौल से परेशान इसे नापसंद करने वालों की उम्मीदें उस वक्त और ज्यादा बढ गईं जब राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में एक सवाल के जवाब में कहा कि अभी हमने एक लम्बी यात्रा मुकम्मल की है थोड़ा मौका दीजिए फिर तय करेंगे कि देश में पच्छिम से पूरब की यात्रा कब करेंगे. दूसरी तरफ पठान के डायरेक्टर सिद्धार्थ आनंद ने शाहरूख खान, दीपिका पादुकोण और जान अब्राहम की मौजूदगी में मीडिया से कहा कि वह पठान-2 बनाने पर भी गौर कर रहे हैं. भारी बर्फबारी के दरम्यान राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तीस जनवरी को श्रीनगर में मुकम्मल हो गई. यह 145 दिन पहले 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी. राहुल ने इस मौके पर शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में तकरीबन पैंतीस (35) मिनट लंबी तकरीर की. उन्होंने दो बार मोदी, अमित शाह और आरएसएस का जिक्र किया और बीजेपी पर हमला बोला. उन्होंने कहा, ‘मैं अब जम्मू-कश्मीर के लोगों, फौज और सिक्योरिटी के जवानों से कुछ कहना चाहता हूं. मैं हिंसा को समझता हूं. मैंने हिंसा सही है, देखी है. जिसने हिंसा नहीं देखी है, उसे यह बात समझ नहीं आएगी. जैसे मोदी हैं, अमित शाह हैं, संघ के लोग हैं, उन्होंने हिंसा नहीं देखी है. डरते हैं. यहां पर हम चार दिन पैदल चले. गारंटी देता हूं कि बीजेपी का कोई लीडर ऐसे नहीं चल सकता है. इसलिए नहीं कि जम्मू-कश्मीर के लोग उन्हें चलने नहीं देंगे, इसलिए क्योंकि वह डरते हैं. कश्मीरियों और फौजियों की तरह मैंने अपनों को खोने का दर्द सहा है. मोदी-शाह यह दर्द नहीं समझ सकते. ’ श्रीनगर में सुबह से भारी बर्फबारी हुई. इसके बाद भी कांगे्रसी वर्कर्स का हौसला कम नहीं हुआ. सुबह से ही कांग्रेस दफ्तर के बाहर वर्कर्स की भारी भीड़ देखी गई. उधर, राहुल यहां भी अलग रंग में दिखे. उन्होंने बहन प्रियंका के साथ बर्फबारी का लुत्फ उठाया. दोनों एक-दूसरे पर बर्फ उछालते नजर आए. मुझे थोड़ा गुरूर था, उतर गयाः मैं कन्याकुमारी से चला था. पूरे देश में चले हम लोग. सच बताऊं कि मुझे लगा कन्याकुमारी से कश्मीर चलने में मुश्किल नहीं होगी. फिजकली यह काम मुश्किल नहीं होगा. यह मैंने सोचा था. शायद मैं काफी वर्जिश करता हूं, थोड़ा सा गुरूर आ गया, जैसे आ जाता है. मगर फिर बात बदल गई. पांच-सात दिन चलने के बाद जबरदस्त तकलीफ हुई थी. मैं सोचने लगा कि जो साढे तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा हैं, उन्हें चल पाऊंगा कि नहीं. मुझे जो आसान काम लगा, वह काफी मुश्किल लगने लगा फिर भी मैंने यह काम पूरा कर लिया. उन्होने कहा कि यात्रा मैं चल रहा था, चार बच्चे आए. वह भीख मांगते थे, उनके पास कपड़े नहीं थे. मजदूरी करते थे तो मिट्टी थी. मैं उनके गले लगा, घुटनों पर जाकर पकड़ा. मेरे साथ चल रहे एक शख्स ने बोला कि यह बच्चे गंदे हैं, इनके पास नहीं जाना चाहिए. मैंने उनसे कहा कि बच्चे आपसे और मुझसे ज्यादा साफ हैं. उन्होने कहा कि मैं जम्मू से कश्मीर आ रहा था तब मेरी सिक्योरिटी वालों से बात हो रही थी. मुझसे कहा गया कि पैदल चलने पर आप पर ग्रेनेड फेंका जा सकता है. मैंने कहा चार दिन चलूंगा, बदल दो इस टी-शर्ट का रंग, लाल कर दो. देखी जाएगी. मगर जो मैंने सोचा था, वही हुआ. जम्मू-कश्मीर के लोगों ने मुझ पर हैंड ग्रेनेड नहीं फेंका, अपने दिल खोलकर प्यार दिया. गले लगे. मुझे खुशी हुई कि उन सबने मुझे अपना माना. प्यार से बच्चों ने, बुजुर्गों ने आंसुओं से मेरा यहां इस्तकबाल किया. उन्होंने कहा कि मैं हिंसा को समझता हूं. मैंने वह जगह देखी, जहां दादी को गोली मारी गई थी. मैं चैदह साल का था. जो मैं अभी कह रहा हूं, यह बात वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की समझ में नहीं आएगी. यह बात कश्मीर की समझ मंे आएगी, सीआरपीएफ और आर्मी के परिवारवालों की समझ में आएगी. उन्होंने मुझे कहा कि दादी को गोली लग गई. फिर मुझे गाड़ी में वापस ले गए, मुझे स्कूल से उठाया. फिर मैंने वह जगह देखी जहां मेरी दादी का खून था. पापा आए, मां आई. मां हिल गई थी, बोल नहीं पा रही थी. जो हिंसा करवाता है, मोदी हैं, अमित शाह हैं, अजित डोभाल हैं... वह दर्द को समझ नहीं सकते. हम दर्द को समझ सकते हैं. अपनों को खोने वालों के दिल में क्या होता है, जब फोन आता है तो कैसा लगता है, वह मैं समझता हूं, मेरी बहन समझती है. ’ उन्होंने कहा कि एक सहाफी ने पूछा जम्मू-कश्मीर से और यात्रा से क्या हासिल करना चाहते हैं. यात्रा का मकसद है कि यह जो फोन काल हैं, भले आर्मी के हों, कश्मीरियों के हों, बंद होने चाहिए. यह फोन काल किसी मां को, किसी बच्चों को नहीं लेने चाहिए. मेरा निशाना यह फोन काल बंद करने का है. उन्होंने कहा कि जो नजरियात इस देश की बुनियाद को तोड़नेे की कोशिश कर रहे हंै, उसके खिलाफ हम खड़े हों, मिलकर खड़े हों. नफरत से नहीं, क्योंकि वह हमारा तरीका नहीं, मोहब्बत से खड़े हों. हम मोहब्बत से खड़े होंगे, प्यार से बात करेंगे तो हमें कामयाबी मिलेगी. उनके नजरियात को सिर्फ हराएंगे नहीं, उनके दिलों से भी निकाल देंगे. प्रियंका गांधी ने कहा कि हर हिंदुस्तानी देश में एकता और अम्न चाहता है. जो सियासत तोड़ती है, उससे भलाई नहीं हो सकती. भारत जोड़ो एक आध्यात्मिक यात्रा रही है. यात्रा के बीच में अजान का वक्त हो गया तो इन्होंने तकरीर रोक दी. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि राहुल, आपने कहा था कि तुम कश्मीर में अपने घर आ गए हो. यह तुम्हारा घर है. मुझे उम्मीद है कि गोडसे के नजरियात ने जम्मू-कश्मीर से जो छीन लिया, वह इस देश से वापस मिल जाएगा. गांधी जी ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में उम्मीद की किरण देख सकते हैं. आज देश राहुल गांधी में उम्मीद की किरण देख सकता है. कांग्रेस सदर मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह यात्रा चुनाव जीतने या कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि नफरत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए निकाली गई.

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