आनंद मोहन,तब रिहाई सरकार के पाले में

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आनंद मोहन,तब रिहाई सरकार के पाले में

आलोक कुमार

पटना . 5 दिसंबर 1994 को गोपालपुर के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया पटना से गोपालगंज वापस लौट रहे थे तो मुजफ्फरपुर के खबड़ा गांव के पास भीड़ ने उनकी गाड़ी को घेर लिया और वहीं पहले पिटाई, फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.इसी मामले में पूर्व सांसद आनंद मोहन सजा भुगत रहे हैं.राजधानी पटना में मिलर हाई स्कूल है.यहां पर 23 जनवरी को महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि समारोह आयोजित किया गया था.इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल थे. इस अवसर पर आनंद मोहन के समर्थकों ने आनंद मोहन के रिहा करने की मांग करने लगे.तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस संबंध में इशारा किया.उन्होंने मंच से ही इस बात की घोषणा की कि वह आनंद मोहन की रिहाई के बारे में सोच रहे हैं.काम किया जा रहा है.तब उन्होंने कहा था कि आनंद मोहन हमारे मित्र रहे हैं.मुख्यमंत्री के इशारे के बाद 26 जनवरी को 74 गणतंत्र दिवस पर निकलना तय हो रहा था.जिस पर फिलवक्त पानी फिर गया है.

   ऐसा लग रहा है कि कुछ दिन और इंतजार करना होगा. उस शुभ घड़ी का बेसब्री से अनेक शुभचिंतक बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.इस संदर्भ में आरजेडी के विधायक चेतन आनंद को पूरी उम्मीद है कि पिता अब जल्द ही जेल से बाहर आएंगे. पूर्व में उन्होंने ये भी सोचा था कि आनंद मोहन साल 2023 का 69 वां जन्मदिन 28 जनवरी को सबके साथ घर पर मनाएंगे. उनको फिलहाल बाहर आने में वक्त लग सकता है.

 

 संपूर्ण क्रांति आंदोलन में कूद गए

बिहार के कोसी प्रमंडल के सहरसा जिले के पंचगछिया गांव में 28 जनवरी 1954 को आनंद मोहन का जन्म हुआ था.इनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. यही कारण था कि साल 1974 में 17 साल की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ लोकनायक जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में कूद गए थे.और यहीं से उसके राजनीतिक करियर की शुरुआत भी.उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया था.इमरजेंसी के दौरान इन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा था.कहते हैं कि बिहार की राजनीति दो चीजों पर चलती है. पहली है जाति और दूसरी है दबंगई.इन दोनों का ही सहारा लेकर राजनीति में कदम रखा.आनंद मोहन सिंह बिहार के बड़े सवर्ण नेता माने जाते हैं, खास राजपूत जाति के.80 के दशक में बिहार में आनंद मोहन सिंह बाहुबली नेता बन चुके थे. उन पर कई मुकदमे भी दर्ज हुए.1983 में पहली बार तीन महीने के लिए जेल जाना पड़ा.


 लालू के समर्थन से चुनाव जीतकर सांसद बने

पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ की गई राजनीति ने आनंद मोहन को स्थापित किया, उन्होंने 1998 में उन्हीं लालू के सामने सरेंडर कर दिया.1998 में आनंद मोहन लालू के समर्थन से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.लेकिन 13 महीने की वाजपेयी सरकार जब अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी तब आनंद मोहन ने पाला बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी का साथ दिया, हालांकि सरकार नहीं बची. इसके बाद 1999 के चुनाव में आनंद मोहन ने पाला बदल लिया और फिर से बीजेपी के करीब पहुंच गये.1999 में आनंद मोहन शिवहर से और पत्नी लवली को वैशाली से एनडीए का टिकट मिला मगर दोनों हार गये.2000 में भी आनंद मोहन एनडीए के साथ रहे. मिलकर चुनाव लड़ा, इसके बाद वो और उनका परिवार पाला बदलता रहा.वैसे आनंद मोहन पहली बार 1990 में महिषी से जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे.विधानसभा चुनाव में आनंद मोहन जनता दल के टिकट पर महिषी से चुनाव लड़े और कांग्रेस के लहतान चौधरी को 62 हजार से ज्यादा वोट से हराया.1994 में वो लालू प्रसाद यादव से अलग हो गए थे. आनंद मोहन की छवि कोसी इलाके में रॉबिनहुड वाली थी. अपनी जाति के वो सबसे बड़े सिरमौर हुआ करते थे.2020 में पहली बार आनंद मोहन की विरासत बेटे चेतन आनंद के हाथ में पहुंची और फिर वो शिवहर से आरजेडी के विधायक बने और अब जब सत्ता की पलटी हुई और महागठबंधन की सरकार बनी तो सबसे पहला विवाद आनंद मोहन ने ही खड़ा किया.बताया जाता है कि जिस समय आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नेता हुआ करते थे छोटन शुक्ला. आनंद मोहन और छोटन शुक्ला की दोस्ती काफी गहरी थी.1994 में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई.

   

लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी    

छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा के बीच से एक लालबत्ती की गाड़ी गुजर रही थी, जिसमें सवार थे उस समय के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया।लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और जी कृष्णैया को पहले पिटाई, फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. 5 दिसंबर 1994 को गोपालपुर के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया पटना से गोपालगंज वापस लौट रहे थे तो मुजफ्फरपुर के खबड़ा गांव के पास भीड़ ने उनकी गाड़ी को घेर लिया और वहीं पहले पिटाई, फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा.आरोप था कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने उनकी हत्या की. आनंद की पत्नी लवली आनंद का नाम भी आया.


5 दिसंबर 1994 को जिलाधिकारी की हत्या का परिणाम

 भीड़ द्वारा पहले पिटाई, फिर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.ऐसा आरोप लगा था कि इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था.साल 2007 में इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया था और फांसी की सजा सुनाई थी. आजाद भारत का ये पहला मामला था, जिसमें किसी जनप्रतिनिधि को मौत की सजा सुनाई गई थी.हालांकि 2008 में हाईकोर्ट की तरफ से ही इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था. 2012 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की थी, जो खारिज हो गई थी.


आनंद मोहन के चाहने वाले लगातार ही उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं

बता दें कि आनंद मोहन के चाहने वाले लगातार ही उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं.कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम के दौरान भी उनके कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने ही उनको रिहा करने के नारे लगाए थे.इस पर नीतीश कुमार ने कहा था कि इंतजार कीजिए, सब होगा. वो कोशिश कर रहे हैं.आनंद मोहन की बेटी सुरभि आनंद की सगाई में सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ राज्य के सभी बड़े नेता शामिल हुए थे.पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन 26 जनवरी को भी जेल बाहर नहीं निकले. 23 जनवरी को सीएम नीतीश कुमार के इशारे के बाद ऐसा माना जा रहा था कि 26 जनवरी को वे परिहार पर जेल से बाहर आ जाएंगे.परिवार के साथ उनके समर्थक पूरे दिन इंतजार करते रहे, लेकिन कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण एक बार फिर से उनका निकलना लटक गया.


14 साल से ज्यादा की सजा पूरी कर लेने के बाद 

 आनंद मोहन के जेल से बाहर निकलने का मामला कहां अटक रहा है? एक नोटिफिकेशन के कारण आनंद मोहन और उनकी तरह के सैकड़ों कैदियों के जेल से बाहर निकलने का मामला अटका हुआ है. सरकार चाहे तो ये बेहद आसानी से हो सकता है.हाईकोर्ट की तरफ से पहले ही इस पर अपना फैसला सुनाया जा चुका है.आनंद मोहन के पूरे परिवार को उनकी रिहाई का इंतजार है.

बिहार में है रिमिशन (परिहार) की पॉलिसी 

बिहार में रिमिशन (परिहार) की पॉलिसी सबसे पहले 1984 में बनी थी.इसमें ये प्रावधान था कि 14 वर्ष की सजा काट लेने के बाद बंदी को रिमिशन के साथ 20 साल की सजा काटना मान लिया जाता है.इस वजह से जेल उसे अपनी तरफ से ही छोड़ सकता है.लेकिन 2002 में इसमें एक संशोधन किया गया. इसमें दो क्लॉज (उपधारा) जोड़े गए.वो थे -

1. कैदियों को परिहार पर छोड़ने का निर्णय लेने के लिए जेलर की जगह रिमिशन बोर्ड बनाया गया.इनके निर्णय के बाद ही कैदी छोड़े जाएंगे.इस रिमिशन बोर्ड में गृह सचिव, डिस्ट्रिक्ट जज, जेल आईजी, होम सेक्रेटरी, पुलिस प्रतिनिधि के साथ लॉ सेक्रेटरी शामिल होते हैं.

2. 5 कैटेगरी के कैदी को नही छोड़ने का प्रावधान शामिल किया गया.ये ऐसे कैदी होते हैं, जो एक से अधिक मर्डर, डकैती, बलात्कार, आतंकवादी साजिश रचने और सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी होंगे.उनके छोड़ने का निर्णय सरकार लेगी. आनंद मोहन एक सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी हैं.ऐसे में उन्हें परिहार मिलने का क्या तर्क है? 2002 में रिमिशन के नियम में संशोधन जरूर हुआ था, लेकिन 2007 तक रिमिशन बोर्ड ही नहीं बन पाया था.इसके कारण हाईकोर्ट की तरफ से भी यह आदेश जारी किया जा चुका है कि 2002 के सर्कुलर को 2007 तक लागू ही नहीं किया जा सकता है.आनंद मोहन की सजा 2007 में हुई है. इसी को आधार बनाकर उनकी रिहाई की मांग की जा रही है.उन पर1994 में  आरोप लगा था, 2007 में सजा हुई थी.उम्र कैद की सजा काट चुके आनंद मोहन पिछले साल 15 दिनों के पैरोल जेल से बाहर आए थे. इस दौरान वे अपनी बेटी सुरभि आनंद की सगाई में शामिल हुए.इसके साथ ही उन्होंने अपने बेटे और अपनी पत्नी का जन्मदिन भी मनाया.सगाई कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव समेत बिहार के सभी बड़े नेता शामिल हुए थे. इसके बाद से कयास लगाया जाने लगा था कि आनंद मोहन जल्द ही जेल से बाहर निकलेंगे.

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