खतरे में सुप्रीम कोर्ट का वकार

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खतरे में सुप्रीम कोर्ट का वकार

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के जरिए जजों की तकर्रूरी हो या सरकार के कहने पर इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के वजीर कानून किरण रिजिजू के दरम्यान जारी टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है.  इस टकराव की वजह से सुप्रीम कोर्ट का वकार (गरिमा) खतरे में पड़ गया है, जिसका बचना बहुत जरूरी है.  गुजिश्ता आठ सालों में मोदी हुकूमत ने एलक्शन कमीशन, इंसानी हुकूक कमीशन, आरटीआई कमीशन और अदलिया के एक बड़े हिस्से तकरीबन सभी पर अपना पूरा कण्ट्रोल कर लिया है.  संवैधानिक इदारों के आखिरी किले की शक्ल में सुप्रीम कोर्ट बचा है.  अगर वह भी सरकार के कण्ट्रोल में चला गया तो देश को तानाशाही से बचाना मुश्किल हो जाएगा.  वजीर कानून किरण रिजिजू ने फिर अपनी बात दोहराते हुए कहा है कि जजों की तकर्रूरी करने का काम एडमिनिस्टेªशन का है, अदलिया (न्यायपालिका) का नहीं है.  वह यही नहीं रूके उन्होंने यह भी कहा कि जजों को न तो एलक्शन लड़ना होता है, न अवाम के बीच जाना पड़ता है.  वह अपनी तरफ से ही कार्रवाइयां करते हैं और अपनी मर्जी मुताबिक  इंसाफ करते हैं.  इसलिए अवाम के दरम्यान उनकी कोई जवाबदेही नहीं होती सारी जवाबदेही अवाम के वोट से चुनकर आने वाले अवामी नुमाइंदों और सरकार की होती है.  किरण रिजिजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आर एस सोढी के एक इंटरव्यू की क्लिपिंग भी ट्वीट की जिसमें सोढी यह कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान को अगवा कर लिया है. 

चीफ जस्टिस आफ इंडिया डी वाई चन्द्रचूड़ ने साफ कह दिया कि संविधान के बुनियादी ढांचे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.  उन्होंने संविधान के बुनियादी उसूल को नार्थ-स्टार जैसा करार देते हुए कहा कि  वह हमारी बेंच की भी रहनुमाई करता है.  चीफ जस्टिस आफ इंडिया हों या सुप्रीम कोर्ट के बाकी जज सभी का यह कहना है कि कोलेजियम सिस्टम देश के कानून का हिस्सा है.  इसमें छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती.  इस टकराव में नायब सदर जम्हूरिया जगदीप धनखड़ भी कूद पडे़ हैं.  उन्होने सवाल उठाया कि क्या पार्लियामेंट का बनाया हुआ कानून तभी तस्लीम किया जाएगा जब सुप्रीम कोर्ट की उसपर मोहर लग जाए.  उन्होनेे सवाल किया कि पार्लियामेंट सुप्रीम है या सुप्रीम कोर्ट पार्लियामेंट के ऊपर है.  धनखड़ यह भी कहते हें कि 2015 में जब पार्लियामेंट ने जजेज की तकर्रूरी करने के लिए एक कमीशन बनाने का फैसला कर लिया तो सुप्रीम कोर्ट ने पार्लियामेंट के उस फैसले को रद्द कैसे कर दिया.  उसे यह अख्तियार कहां से मिला? क्या सुप्रीम कोर्ट पार्लियामेंट से ऊपर है?

दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आर एस सोढी जिनके इंटरव्यू का हिस्सा वजीर कानून किरण रिजिजू ने ट्वीट किया.  उन्होने रिजिजू पर सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आप अगर सुप्रीम कोर्ट से लड़ रहे हैं तो खुद लड़िए मेरे कंधे पर रखकर बंदूक मत चलाइए.  सोढी रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं और क्रिमिनल मामलात के नामवर वकील हैं.  उनके बयान के एक हिस्से को ट्वीट करते हुए किरण रिजिजू ने लिखा था कि देश के बेश्तर लोगों का सुप्रीम कोर्ट के सिलसिले में ऐेसे ही ख्यालात हैं.  सरकार और सुप्रीम कोर्ट के झगड़े का नतीजा यह है कि मुल्क के हाई कोर्टों में जजों के एक-तिहाई ओहदें खाली पड़े हैं.  पेंडिंग मुकदमों का अंबार लग चुका है.  लेकिन मोदी सरकार, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश पर जजों की तकर्रूरी करने के लिए तैयार नहीं है. 

कानून वजीर किरण रिजिजू ने यह कहकर जजों की तकर्रूरी पर फिर से सवाल खड़े किये कि जजों को चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता.  वैसे भी यह काम एडमिनिस्टेªशन का है अदलिया का नहीं है.  वह हाल के दिनों में लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं.  अदलिया और सरकार के दरम्यान जजों की तकर्रूरी और संविधान के बुनियादी ढाँचे के उसूल को लेकर चले आ रहे टकराव के दरम्यान रिजिजू के यह बयानात काफी खतरनाक हैं.  रिजिजू ने दिल्ली बार एसोसिएशन के प्रोग्राम में कहा, ‘जज बनने के बाद उन्हें चुनाव या अवाम के सवालों का सामना नहीं करना पड़ता है... जजों, उनके फैसलों और जिस तरह से वह इंसाफ करते हैं, और अपना तजजिया करते हैं, उसे अवाम देख रहे हैं... सोशल मीडिया के इस दौर में, कुछ भी नहीं छुपाया जा सकता है.  मरकजी वजीर कानून किरण रिजिजू ने कहा कि 1947 के बाद से कई बदलाव हुए हैं, इसलिए यह सोचना गलत होगा कि मौजूदा सिस्टम जारी रहेगा और इस पर कभी सवाल नहीं उठाया जाएगा.  उन्होंने कहा कि यह बदलते हालात हैं, इसे जरूरतें तय करती हैं और यही वजह है कि संविधान में सौ से ज्यादा बार तरमीम करनी पड़ी. 

सरकार जजों की तकर्रूरी में एक बड़े रोल की मांग कर रही है, यह दलील देते हुए कि लेजिस्लेचर सुप्रीम है क्योंकि यह लोगों की ख्वाहिशात की नुमाइंदगी करती है.  तकरीबन हफ्ते भर पहले एक रिपोर्ट आई थी कि वजीर कानून किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को एक खत लिखा है जिसमें मांग की गई है कि जजों की तकर्रूरी के मसले पर बनने वाली कमेटी में सरकार के एक नुमाइंदे को शामिल किया जाना चाहिए.  जजों की तकर्रूरी की कार्रवाई में मरकज और मुताल्लिका रियासती सरकार के नुमाइंदों को शामिल किया जाए.  खत में लिखा गया है कि यह अवामी जवाबदेही के लिए जरूरी है.  वजीर कानून ने एक दिन पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज के इंटरव्यू को ट्वीट किया है, ‘एक जज की नेक आवाजः भारतीय जम्हूरियत की असली खूबसूरती इसकी कामयाबी है.  अवाम अपने नुमाइंदों के जरिए खुद हुकूमत करते हैं.  चुने हुए नुमाइंदे लोगों के मफाद की नुमाइंदगी करते हैं और कानून बनाते हैं.  हमारी अदलिया आजाद है लेकिन हमारा संविधान सबसे ऊपर है.   वजीर कानून किरण रिजिजू दिल्ली हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के कमेण्ट का हवाला दे रहे थे. 

दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आरएस सोढी ने ला स्ट्रीट यू-ट्यूब चैनल के साथ एक इंटरव्यू में कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान को अगवा कर लिया है.  उन्होंने कहा है कि हम खुद जजों की तकर्रूरी करेंगे.  सरकार का इसमें कोई रोल नहीं होगा.  इस दरम्यान भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने संविधान के मूल ढाँचे के उसूल पर जोर दिया है.  उन्होंने  एक प्रोग्राम में इस उसूल को ‘नार्थ स्टार‘ जैसा बताया जो बेशकीमती रहबरी करता है.  उन्होंने कहा, ‘हमारे संविधान का बुनियादी ढांचा, नार्थ स्टार की तरह है जो संविधान की तशरीह करने और लागू करने वालों को कुछ सिम्त देता है.  सीजेआई ने कहा कि ‘हमारे संविधान का बुनियादी ढांचा संविधान की बालादस्ती, कानून के राज, अख्तियारात को अलग करके, अदलिया का जायजा, सेक्युलरिज्म, फेडरलिज्म, और देश की एकता और सालमियत, आजादी और इंसानों के एहतराम पर मबनी है.  उन्होंने कहा था कि पार्लियामेंट कानून बनाती है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है. 

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूछा कि क्या पार्लियामेंट के जरिए बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी.  नायब सदर जम्हूरिया धनखड़ ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा था- ‘क्या हम एक जम्हूरी मुल्क हैं, इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा.  केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पार्लियामेंट के पास संविधान में तरमीम करने का अख्तियार है, लेकिन इसके बुनियादी ढांचे में नहीं.  धनखड़ ने कहा था कि 1973 में एक बहुत गलत रिवाज शुरू हुआ.  उन्होंने कहा कि ‘केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी ढांचे का उसूल दिया कि पार्लियामेंट संविधान में तरमीम कर सकती है, लेकिन इसके बुनियादी ढांचे को नहीं.  कोर्ट को एहतराम के साथ कहना चाहता हूँ कि इससे मैं मुत्तफिक नहीं हूं. 


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