मुलायम सिंह को क्यों दिया पद्मविभूषण सम्मान ?

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मुलायम सिंह को क्यों दिया पद्मविभूषण सम्मान ?

डा रवि यादव

गणतंत्र दिवस  2023 की पूर्व संध्या पर नागरिक सम्मानों के लिए चुने गए लोगों में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह का नाम अधिकांश लोगों के लिए चौंकाने वाला है जिनमें मुलायम सिंह के चाहने वाले और विरोधी दोंनो ही शामिल है.धरती पुत्र और नेताजी के उपनामों से चर्चित रहे मुलायम सिंह यादव का पिछले वर्ष 10 अक्टूबर को निधन हो चुका है . नेताजी 1967 में उत्तर प्रदेश विधान सभा के पहली बार सदस्य चुने गए तथा 1980 में लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष रहे . आपातकाल में 19 माह जेल में रहे मुलायम सिंह यादव 1989, 1993 और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बनें और केंद्र में रक्षा मंत्री. वे दुर्गमतम सैन्य चौकी सियाचिन ग्लेशियर पहुँचने वाले पहले रक्षा मंत्री थे . शहीद होने वाले जवानों के शव उनके पैतृक निवास भेजे जाने का निर्णय उन्ही के कार्यकाल में हुआ उसके पहले सिर्फ़ शहीद सेना अधिकारियों के शव ही उनके घर पहुँचाए जाते थे.


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चुंगी समाप्त करने , मुफ़्त दवाई, पढ़ाई, सिंचाई ,मंडल कमीशन की शिफरिसे लागू करने व महिला शिक्षा के लिए किए उनके कार्यों सहित अनेक उपलब्धियाँ उनके नाम है . डाक्टर राम मनोहर लोहिया के विचारों को व्यावहारिक रूप से लागू करने के लिए उन्होंने जीवनभर प्रयास किया . सामाजिक क्षेत्र में किए गए उनके कार्यों ने उत्तर प्रदेश ही नहीं हिंदी पट्टी की राजनीति व सामाजिक संरचना को सदैव के लिए बदल दिया है. इटावा से  रघुराज सिंह के पिता राम सिंह शाक्य को जिस समय उन्होंने सांसद बनवाया तब प्रदेश में भाजपा या कांग्रेस में शाक्या -सेनी -कुशवाह को जिताऊँ उम्मीदवार नहीं माना जाता था . अपने सुरक्षा अधिकारी पुलिस सब इंस्पेक्टर रहे सत्य पाल सिंह बघेल को 1998 में जलेसर से विधायक और फिर दो बार सांसद बनाया तब पाल बघेल गडरिया समाज का प्रतिनिधित्व अन्य पार्टियों में शून्य था , फूलन देवी को बड़े विरोध की परवाह न करते हुए सांसद का चुनाव लड़वाना अत्यंत पिछड़े केवट विंद निषाद समाज के सशक्तिकरण का गम्भीर प्रयास था . समाजवादी पार्टी अपने गठन के साथ ही संख्या में काफ़ी कम अत्यंत पिछड़ें प्रजापति समाज के कम से कम तीन लोगों को विधान सभा का टिकिट देती रही है . आज इन अतिपिछड़ी जातियों के अनेक प्रतिनिधि विधान सभा और लोकसभा में पहुँच रहे है तो इस सामाजिक जागरूकता का श्रेय काफ़ी हद तक मुलायम सिंह को जाता है . मुलायम सिंह जैसे मजबूत नेतृत्व के कारण भाजपा जैसी सवर्णवादी पार्टी को पार्टी में पिछड़ें नेतृत्व को जगह देने पर मजबूर होना पड़ा है ..


मुलायम सिंह पर अनुसूचित जाति के लिए काम न करने का आरोप विरोधी अक्सर लगाते मिलते है जबकि तथ्य एक दम इसके विपरीत है . बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के बाद दलित समाज के लिए संगठित और जागरूक करने का सर्वाधिक काम मान्यवर काशीराम ने किया है जो पहली बार इटावा सामान्य संसदीय सीट से चुनाव लड़कर  मुलायम सिंह सहयोग से ही संसद पहुँचे .


अनेको प्रशासनिक राजनीतिक उपलब्धियों के साथ मुलायम सिंह यादव पर अनेक आरोप भी रहे है . 30 अक्टूबर  1990 को अयोध्या में भाजपा और अनुसंगिक संगठनों द्वारा प्रायोजित भीड़ पर गोली चलने का प्रशासनिक आदेश यद्यपि मजबूरी में लिया गया निर्णय था जिसमें प्रशासन की कड़ी व्यवस्था को न मानते हुए हिंसक भीड़ अयोध्या में विवादित ढाँचे को तोड़ने पर उतारू थी .इस घटना को हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त घोषित -प्रचारित किया गया और भाजपा और उसके समर्थक वर्ग द्वारा मुलायम सिंह यादव को मौलाना मुलायम सिंह कहाँ जाने लगा . मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिम परस्त ही नहीं जातिवादी , परिवारवादी होने व दलित पिछड़ों की अनदेखी करने के आरोप भी वर्तमान सत्ता संगठन हमेशा लगाता रहा है . भाजपा मुलायम सिंह यादव पर अपराधियों को प्रश्रय देने का आरोप भी लगाती रही है. भाजपा द्वारा मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक विरोध तो फिर भी समझा जा सकता था मगर नफ़रत की हद तक विरोध किया गया . समर्थक नेता जी को मूलयम के बजाय “मुलम्मा “ कहते रहे है एक दौर था जब मुलायम सिंह यादव का क़ाफ़िला जिस रास्ते गुज़रता था उस रास्ते के भाजपा समर्थक अपनी दुकाने बंद कर सड़क पर खड़े होकर ज़मीन पर नफ़रत से थूकते थे और अब उसी भाजपा की सरकार द्वारा देश के दूसरे सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा जाना क्या भाजपा के मुलायम सिंह यादव पर लगाए गए हिंदू विरोधी जातिवादी परिवारवादी अपराधियों के संरक्षण के आरोपों के मिथ्या होने की घोषणा नहीं माना जाएगा. ?  क्या वह वर्ग जो अभी तक नफ़रत कर रहा था वह इस सम्मान से नाराज़ नहीं होगा ? विशेष रूप से कल्याण सिंह,  विनय कटियार , उमा भारती के समर्थक इसे  “ ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम “  के रूप में नहीं लेंगे. अन्य को छोड़ भी दे तो कल्याण सिंह जो भाजपा की पिछड़ों में पहुँच और सामाजिक अभियंत्रिकी के सूत्रधार और भाजपा के उदय के प्रमुख पुरोधा रहे है उनके समर्थक इस घटना को कल्याण सिंह के अपमान के रूप में नहीं देखेंगे ?  हिंदुत्व के  आंदोलन के प्रमुख और पहले हीरो कल्याण सिंह जो मुलायम सिंह यादव के समकालीन और मुलायम सिंह यादव के विरुद्ध भाजपा का एकमात्र चेहरा रहे है का अपमान उनके समर्थकों को आसानी से तो गले नहीं उतरने वाला.

भाजपा के इस निर्णय को 2024 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के समर्थक वर्ग विशेष रूप से यादवों के एक हिस्से  को अपने साथ करने के लिए लिया गया निर्णय समझा जाना चाहिए. यूँ भी भाजपा अभी तक यादव वर्ग को अभी तक उस तरह अपने साथ लाने में कामयाब नहीं हुई है जैसे अन्य कई पिछड़ीं जातियों को हिंदुत्व के नाम पर गोलबंद कर भाजपाई बनाया जा चुका है . इसके लिए भाजपा ने पिछले साल से ही प्रयास शुरू कर दिया है . पिछड़ो को संसदीय बोर्ड में कभी जगह देने लायक न समझने वाली भाजपा  द्वारा  11 सदस्यीय संसदीय बोर्ड में भूपेन्द्र यादव और सुधा यादव को शामिल करना हो या आरएसएस द्वारा विजय दशवी कार्यक्रम का  किसी महिला को पहली बार मुख्य अतिथि बनाना और उस मुख्य आतिथ्य के लिए संतोष यादव का चयन. या राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष हंसराज अहीर को नियुक्त करना हो या अब नेताजी को पद्म पुरस्कार भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है .मीडिया के सहयोग से इसे अखिलेश के लिए असहज करने बाला मास्टर स्ट्रोक सिद्ध किया जाएगा भाजपा मुलायम सिंह को सरदार पटेल की तर हड़पने का मंसूबा पाल सकती है लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है  मैनपुरी  उप चुनाव परिणाम मुलायम सिंह की विरासत का फ़ैसला अंतिम तौर पर कर चुका है  अभी तो इतना ही कहा जा सकता है -


मंज़िलों का कौन जाने रहगुज़र अच्छी नहीं

आँखें बेशक ख़ूबसूरत है पर नज़र अच्छी नहीं

ख़ासतौर जब लेट्रल एंट्री में , विश्वविध्यालयों की नियुक्ति में , महाविद्यालयों में नियुक्ति में या न्यायिक अधिकारियों की नियुक्तियों में जिस तरह पिछड़ों की अनदेखी की जा रही है निजीकरण के दौर में सरकारी पद यू भी समाप्त कर दिए गए है और जो नियुक्तियाँ हो रही है उनमें पहले से प्राप्त आरक्षण को ख़त्म करना पिछड़ों के साथ भाजपा के वास्तविक व्यवहार को बताने के लिए काफ़ी है. हाँ  नज़र-ए-जलाल गर नज़र-ए-करम में बदले तो और बात है.


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