धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती पर 30 को सुनवाई

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धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती पर 30 को सुनवाई

आलोक कुमार 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट  ने 7 राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को हाई कोर्ट  में स्थानांतरित करने की अनुमति दी. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि वे उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक आवेदन दायर करें. धर्मांतरण विरोधी कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं इलाहाबाद, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित हैं.

    सुप्रीम कोर्ट ने अंतर्धार्मिक विवाह के कारण धर्म परिवर्तन को विनियमित करने वाले विवादास्पद राज्य कानूनों से संबंधित विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा वर्तमान में जब्त की गई कई याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर करने की अनुमति दे दी है.      मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि वे उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक आवेदन दायर करें। धर्मांतरण विरोधी कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं इलाहाबाद, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित हैं.


पीठ ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा कि सुनवाई की अगली तारीख पर इन याचिकाओं को शीर्ष अदालत को हस्तांतरित किया जाता है या नहीं, इस सवाल पर वह उनका पक्ष सुनेंगे.21 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की याचिका का विरोध करते हुए, अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि ने कहा कि उच्च न्यायालयों को उनके समक्ष संबंधित धर्मांतरण विरोधी राज्य कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला करने दें और शीर्ष अदालत के समक्ष उनके फैसले के खिलाफ हमेशा अपील होती है.


सात उच्च न्यायालयों के समक्ष याचिकाएँ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश द्वारा अधिनियमित धर्मांतरण की जाँच के लिए कानूनों को चुनौती देती हैं.

सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि सभी कानून एक जैसे हैं.पीठ ने मामले को आगे के विचार के लिए 30 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया.

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ताओं में से एक - अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय - ने अतीत में एक ही मुद्दे पर दो बार याचिका दायर की थी और उन्हें वापस ले लिया था, हर बार जब वे सुनवाई के लिए आए और अब एक बार फिर वह शीर्ष अदालत के सामने धर्मांतरण का वही मुद्दा उठा रहे हैं.


उपाध्याय से यह कहते हुए कि एक ही मुद्दे पर बार-बार याचिका दायर करना उचित नहीं है, पीठ ने कहा, "हम बाद में किसी तारीख में विल्सन की आपत्ति पर विचार करेंगे."

उन्होंने याचिका दायर कर दावा किया था कि देश भर में फर्जी और धोखे से धर्मांतरण हो रहा है.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने धर्मांतरण से संबंधित उत्तर प्रदेश के कानून को चुनौती देने वाले एनजीओ सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस के ठिकाने पर आपत्ति जताई.

कुछ राज्य सरकारों द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ कई जनहित याचिकाएँ दायर की गईं.कानून को चुनौती देने वाली दलीलों में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा 'लव जिहाद' के खिलाफ पारित कानून और उसके दंड को अधिकारातीत और अमान्य घोषित किया जा सकता है क्योंकि वे कानून द्वारा निर्धारित संविधान की मूल संरचना को परेशान करते हैं.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित छह राज्यों समेत कम-से-कम दस भारतीय राज्य धर्मांतरण विरोधी कानून पास कर चुके हैं. यह कानून शादी के इरादे से धर्म परिवर्तन करने पर प्रतिबंध लगाता है. दिसंबर 2022 में महाराष्ट्र की सरकार ने 13 सदस्यों की एक समिति गठित की. यह समिति राज्य में हुई अंतरधार्मिक शादियों की जांच करेगी और ऐसे जोड़ों और उनके परिवारों का ब्योरा दर्ज करेगी.


इन राज्यों में है धर्मांतरण विरोधी कानून लागू है


1. ओडिशाः पहला राज्य है जहां जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून आया था. यहां 1967 से इसे लेकर कानून है. जबरन धर्मांतरण पर एक साल की कैद और 5 हजार रुपये की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है.

  2. मध्य प्रदेशः यहां 1968 में कानून लाया गया था. 2021 में इसमें संशोधन किया गया. इसके बाद लालच देकर, धमकाकर, धोखे से या जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो 1 से 10 साल तक की कैद और 1 लाख तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है. 

 3. अरुणाचल प्रदेशः ओडिशा और एमपी की तर्ज पर यहां 1978 में कानून लाया गया था. कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.

4. छत्तीसगढ़ः 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद यहां 1968 वाला कानून लागू हुआ. बाद में इसमें संशोधन किया गया. जबरन धर्मांतरण कराने पर 3 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना, जबकि नाबालिग या एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 40 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है.

 5. गुजरातः यहां 2003 से कानून है. 2021 में इसमें संशोधन किया गया था. बहला-फुसलाकर या धमकाकर जबरन धर्मांतरण कराने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये जुर्माना, जबकि एससी-एसटी और नाबालिग के मामले में 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है.

  6. झारखंडः यहां 2017 में कानून आया था. इसके तहत, जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.                                  

7. उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021        उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराने के मामले में सख्त सजा का प्रावधान है. महिलाओं और अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों का अवैध रूप से धर्म परिवर्तित कराने पर दो साल से 10 साल तक की जेल की हो सकती है. वहीं, अगर कोई सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन कराता है तो उसे 10 साल की सजा और 50 हजार के जुर्माने की सजा देने का प्रावधान है. इसी तरह, अगर कोई संगठन ऐसा कराता है तो उसकी मान्यता रद्द हो सकती है.            

8.उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018,         उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2022 में गैर-कानूनी धर्मांतरण को एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया है. कानून को और भी सशक्त बनाने के लिए इसकी सजा को 2 से लेकर 7 साल तक निर्धारित कर दिया गया है. अपराधी पर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा.    

9.हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2019,  सामूहिक धर्म परिवर्तन जिसमें दो व इससे अधिक लोगों का एक साथ कपटपूर्ण अथवा बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाने की स्थिति में 7 से 10 साल तक कारावास का प्रावधान होगा। संशोधित कानून के मसौदे के मुताबिक किसी व्यक्ति द्वारा अन्य धर्म में विवाह करने व ऐसे विवाह के समय अपने मूल धर्म को छिपाने की स्थिति में भी तीन से 10 साल तक के कारावास का प्रावधान होगा। कानून में 2 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव है। धर्म की स्वतंत्रता कानून के प्रावधानों के तहत मिली किसी भी शिकायत की जांच पुलिस उप निरीक्षक से नीचे का अधिकारी नहीं करेगा। सत्र न्यायालय में इसकी  सुनवाई होगी।    10. गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021  

गुजरात विधान सभा ने विवाह द्वारा जबरन या कपटपूर्ण धर्म परिवर्तन को दंडित करने के लिए धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम में संशोधन किया.कानून में 3-10 साल की जेल और आरोपी के दोषी पाए जाने पर ₹5 लाख तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है. 2003 के संशोधन में उस उभरती हुई प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की गई थी जिसमें धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से महिलाओं को शादी के लिए फुसलाया जा रहा था.

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