उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था भारी संकट में

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उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था भारी संकट में

अखिलेंद्र प्रताप सिंह

आंकडों से यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था ठहरी हुई है और इससे उबरने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है.  प्रदेश के ऊपर वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 6.66 लाख करोड़ रूपये का कर्जा है और प्रति व्यक्ति कर्ज 26000 रूपये से ज्यादा है.  उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति सालाना आय 81398 रूपये है यानी एक माह में 7 हजार रूपये से भी कम आय है.  रोजगार की हालत बेहद खराब है.  प्रदेश में करीब 6 लाख सरकारी पद खाली पड़े हुए हंै.  निजी क्षेत्र में महज 5616 स्टार्टअप का पंजीकरण हुआ है.  प्रदेश में विकास के नाम पर मेट्रो, ग्लोबल समिट, एक्सप्रेस वे, स्मार्ट सिटी आदि की ही चर्चा होती है.  एक डिलाॅयट कम्पनी ने विकास के लिए राज्य सरकार को बड़े पैमाने पर शहरीकरण का सुझाव दिया है.  उसका कहना है कि उत्तर प्रदेश की शहरी आबादी अभी भी 22 फीसदी है, जिसकी संख्या बढ़ाकर ही प्रदेश विकास कर सकता है.  हालांकि अभी भी प्रदेश में बहुत सारे जिले है जिनकी शहरी आबादी अधिक है जैसे गौतमबुद्ध नगर 83.6 प्रतिशत, गाजियाबाद 81 प्रतिशत, लखनऊ 67.8 प्रतिशत, कानपुर नगर 66.7 प्रतिशत, झांसी 43.2 प्रतिशत, वाराणसी 43 प्रतिशत आदि.  इन शहरों में भी बड़े पैमाने पर बेकारी है और आम शहरी की आमदनी में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखता है.  सरकार भी बड़े पैमाने पर प्रदेश में स्मार्ट सिटी बनाने की बात कर रही है.  मकसद साफ है किसानों की जमीन जैसे-तैसे दाम पर खरीद कर बिल्डर्स और कम्पनियों के हवाले करना.  विपक्षी दल भी इसी तरह के विकास के माडल की बात करते है और सरकार स इसी क्षेत्र में प्रतिद्वंद्विता में उतरते है.  जबकि सच्चाई यह है कि पूंजी और उच्च तकनीकी केन्द्रीत इस तरह के विकास की योजनाएं लोगों की गरीबी और बेकारी दूर करने में कतई सक्षम नहीं है.  एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 2018-19 में दो पहिया वाहन की खरीद में 36 प्रतिशत की गिरावट आई है.  वहीं कार की खरीद में 9 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है.  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार 2015-16 की तुलना में 2019-21 में 22 प्रतिशत लोगों की जोत में कमी आयी है.  स्वतः स्पष्ट है कि किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जमीन बेच रहे है.  यह भी रिपोर्ट है कि इसी गरीबी के दौर में कारपोरेट घराने खासकर अम्बानी और अडानी ने अकूत सम्पत्ति बनाई है.  केन्द्र की मोदी सरकार के सहयोग से अडानी ने अपनी सम्पत्ति में भारी इजाफा किया है.  इस समय उनकी सम्पत्ति 10.94 लाख करोड़ है जबकि 2014 में उनकी सम्पत्ति न्यूज क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार महज 50.4 हजार करोड़ रूपये थी. ़ उनकी सम्पत्ति अभी अम्बानी की सम्पत्ति से 3 लाख करोड़ रूपये अधिक है.  संसद में यह भी बताया गया कि पिछले पांच वित्तीय वर्षों में कर्जे के लगभग 10 लाख करोड़ रूपये कारपोरेट के माफ कर दिए गए.  उच्च मध्य वर्ग के एक छोटे से हिस्से की भी आमदनी बढ़ी है.  2021 वर्ष की तुलना में 2022 में मर्सडीज, बेंज जैसी कारों की खरीद में 64 प्रतिशत वृद्धि हुई है.  यह भी स्वतः स्पष्ट है कि आर्थिक असमानता में भी बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है.   

       प्रदेश में श्रमशक्ति के लिहाज से देखा जाए तो गरीब किसानों और निम्न मध्यम वर्ग के किसानों की संख्या सबसे बड़ी है.  एक हेक्टेयर से कम छोटी जोतों की संख्या राजस्व परिषद् उत्तर प्रदेश से लिए आंकड़ो के अनुसार 1.91 करोड़ यानी 80 फीसदी है.  एक से दो हेक्टेयर जोत के अंदर किसानों की संख्या 30 लाख यानी 12.6 फीसदी है.  इन छोटी जोतों को सहकारी आधार पर यदि पुनर्गठित किया जाए तो फसलों की उपज में बढोत्तरी तो होगी ही साथ ही पूंजी निर्माण और प्रदेश के विकास में इनकी बड़ी भूमिका हो सकती है.  सहकारिता को प्रोत्साहन देने की बात दूर रही पूरे कृषि विकास पर सरकार अपने 6.15 लाख करोड़ के बजट का 2.8 प्रतिशत यानी 16-17 हजार करोड़ रूपये ही खर्च करती है.  जो किसान गन्ना, धान, गेहूं आदि बाजार के लिए पैदा कर पाते है उन्हें अपनी उपज को बेचने और भुगतान पाने में गंभीर किस्म के संकट का सामना करना पड़ता है.  हजारों करोड़ रूपये गन्ना किसानों के मिल मालिकों के ऊपर बकाया रहते है.  न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए धारावाहिक बड़े किसान आंदोलन के बावजूद सरकार ने लागत पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने से इंकार कर दिया है.  यदि तीन-चार ग्रामसभाओं के क्लस्टर के आधार पर किसानों और व्यापारियों के सहयोग से नौकरशाही मुक्त मंडी समितियां बनती और समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद और भुगतान किया जाता तो किसानों की आर्थिक हालत में बड़ा बदलाव होता.  कृषि आधारित उद्योग लगते तो खेती पर निर्भर अतिरिक्त श्रम से बचा जाता और बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिलता.  इसी तरह डेरी, मछली और अन्य क्षेत्रों में सहकारी उत्पादन की प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है. 

       खेत मजदूरों, दलितों, आदिवासियों, अति पिछड़े वर्गों में जमीन की बड़ी भूख दिखती है और काम के अभाव में बड़े पैमाने पर इन वर्गों के लोगों का पलायन दूसरे प्रदेशों में होता है.  उनकी श्रम शक्ति का उपयोग अपने प्रदेश के विकास में नहीं लगता है.  वनाधिकार कानून के तहत ऊपर दिए गए आंकड़ों से स्पष्ट है कि आदिवासियों और वनाश्रितों को वन भूमि बहुत सीमित संख्या में दी गई है.  गांव में हमारे सर्वे के आधार पर हम यह कह सकते है कि दो जून भरपेट भोजन का भी संकट उनके ऊपर रहता है.  सोनभद्र जिले में यह भी देखा गया कि लड़कों के अलावा लड़किया भी समूह बनाकर बंगलौर जैसे शहर में जाकर काम करती है.  यदि उनको यहां उच्च शिक्षा व काम के अवसर मिलते तो उनका पलायन रूक जाता और उनकी श्रम शक्ति प्रदेश के विकास में लगती.   

     उत्तर प्रदेश में कुटीर व छोटे उद्योग फैले पड़े है, उन्हें पुनर्जीवित और विकसित करने की जरूरत है.  रोजगार और पूंजी निर्माण में इनकी बड़ी भूमिका हो सकती है.  आगरा में चमड़ा और हस्तशिल्प उद्योग, अमरोहा में वाद्य यंत्र व रेडिमेड कपडे, अलीगढ़ में ताला, आजमगढ़ में मिट्टी के बर्तन, बरेली में जरी जरदोई व बांस की सामग्री, भदोही में कालीन, चित्रकूट में लकड़ी के खिलौने, एटा में धुधंरू, घंटी और ब्रास के उत्पाद, हरदोई में हैण्डलूम, झांसी में नर्म खिलौने, कन्नौज में इत्र, कानपुर देहात में एलमोनियम, कानपुर में चमड़ा, लखनऊ में चिकन कारी, मेरठ में खेल के सामान, मिर्जापुर में कालीन और ब्रास के बर्तन, मुरादाबाद में धातु शिल्प और ब्रास के बर्तन, वाराणसी में बनारसी सिल्क साड़ी, मऊ में पावरलूम वस्त्रों आदि का उत्पादन होता है.  प्रदेश का कोई ऐसा जिला नहीं है जहां कुटीर उद्योग न हो.  सोनभद्र, अलीगढ़, रायबरेली, झांसी, कानपुर, प्रयागराज आदि में बिजली का उत्पादन होता है. 

      प्रदेश में साढे तीन लाख आंगनबाड़ी व सहायिकाएं और दो लाख दस हजार आशाएं है.  इन लोगों को बहुत कम पैसे में काम करना पड़ता है.  यदि इन्हें न्यूनतम वेतनमान मिलता तो मंदी के संकट से निपटने में बड़ी मदद मिलती और देश निर्माण में महिलाओं की बड़ी भूमिका बनती.  इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि प्रदेश के विकास की प्राथमिकता इस सरकार के पास नहीं है.  इसी प्रकार पारम्परिक व्यापारियों की हालत भी बहुत खराब है.  जीएसटी और ई कामर्स के बिजनेस ने उनकी कमर तोड दी है.  दूध, दही, पनीर, लस्सी, मछली, शहद, मटर, गेंहू, आटा और लाई पर भी जीएसटी लगा दिया गया है.   

      राज्य की सकल घरेलू उत्पाद का 49 प्रतिशत सेवा क्षेत्र का है.  अर्थशास्त्रीयों के कुछ हिस्से का यह मानना है कि बगैर कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग के उचित विकास के सेवा क्षेत्र के विस्तार या अर्थव्यवस्था में उसकी भूमिका आर्थिक समृद्धि का द्योतक नहीं होती है.  नई अर्थनीति में सेवा क्षेत्र का ही तेजी से विस्तार हुआ है.  लेकिन अर्थव्यवस्था लोगों की वास्तविक क्रय शक्ति और रोजगार देने में सफल नहीं हुई.  कांग्रेस की स्थिति अभी भी इस पर स्पष्ट नहीं है.  आरबीआई के पूर्व गवर्नर रधुराम राजन जिन्हें कांग्रेस के नए आर्थिक सलाहकार के रूप में देखा जा रहा है, का जोर अभी भी सेवा क्षेत्र पर ही है.  जबकि घरेलू मांग बढ़ाने के लिए कृषि और उद्योग का विकास बेहद जरूरी है.  यह भी नोट किया जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में सेवा क्षेत्र बिखरा हुआ है.  पारचून की दुकान से लेकर ठेला लगाने, रेस्टोरेंट में काम करने वाले की मूल्य वर्धन क्षमता बेहद कम है.  बड़ी आबादी की वजह से ही सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था में अपना योगदान कर पाता है.  उच्च मूल्य वर्धन यानी अच्छी आमदनी की सेवाएं प्रदेश के बाहर ही है.  फिर भी प्रदेश में सेवा क्षेत्र के दो तीन सेक्टर ऐसे है जिस पर सरकार ध्यान दे तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था में वास्तविक वृद्धि हो सकती है.  मसलन प्रदेश का स्वास्थ्य क्षेत्र- कोविड़ महामारी ने यह साबित कर दिया कि सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद खराब है और निजी अस्पताल भी बेहतर चिकित्सा सुविधा देने में अक्षम है.  यदि प्रदेश में आक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता होती तो बहुत सारी जिंदगियों को बचाया जा सकता था.  यानी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं और उसके लिए जरूरी उपकरण के लिए आवश्यक है कि सेवा क्षेत्र के साथ-साथ मैन्यूफैक्चरिंग पर सरकार पर्याप्त निवेश करे.  यही हाल शिक्षा का है प्राथमिक विद्यालयों के कमजोर होने से गांव-गांव तक अंग्रेजी के नर्सरी स्कूल खुल रहे है.  उच्च शिक्षा क्षेत्र में भी प्राइवेट मैनेजमेंट स्कूल और कालेजों की भरमार है.  आईटीआई और पालिटेक्निक संस्थानों को मजबूत करने और मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाकर उनसे प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार देने की जरूरत है.   

    खेत मजदूरों की संख्या प्रदेश में 97.50 लाख है और उनकी क्रय शक्ति नगण्य है.  बगैर उनकी आमदनी को बढ़ाए हुए पूंजी संचय की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकती है.  इसके लिए जरूरी है कि ऊसर, परती, कृषि योग्य बेकार जमीनों का उनके बीच में वितरण किया जाए, उनके रहने के लिए आवासीय जमीन दी जाए तथा मनरेगा में 200 दिन के काम की गारंटी की जाए और जिन जिलों में मनरेगा की उपेक्षा हो वहां के जिला प्रशासन को जबाबदेह बनाया जाए.  ज्ञातव्य है कि मनरेगा में महज 34 दिन ही साल में एक मजदूर को औसतन काम मिल पाता है.  गरीबों के शहरी रोजगार के लिए भी मनरेगा जैसी योजना की जरूरत है.  विकास का पिरामिड जो सर के बल खड़ा है उसे उलटना होगा और विकास की धुरी के रूप में ग्रामीण और शहरी गरीबों को लाना होगा.  गांव से पलायन रोकने के लिए सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और सम्मानजनक काम ग्रामीण गरीबों को देना अति आवश्यक है. 


           आज्ञापालक नागरिक, विभाजित समाज और डण्ड़े का लोकतंत्र

 

     प्रदेश में राजनीति और लोकतंत्र की संस्कृति को बदलना होगा.  यहां भी मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन सूत्र एक चालक अनुवर्तिता यानी एक नेता के अधिनायकत्व में चलते है.  इसकी जगह सामुहिकता की संगठन संस्कृति और  राजनीति को विकसित करना होगा.  1990 के बाद की अर्थनीति ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया, नौकरशाही और ताकतवर हुई, लोकतांत्रिक अधिकारों का दायरा सिमटता चला गया.  सार्वजनिक सम्पत्ति जैसे चीनी मिल व सीमेंट उद्योग आदि को भारी कमीशन लेकर औने पौने दाम पर निजी पूंजीपतियों को बेच दिया गया.  क्रमशः लोकतांत्रिक अधिकारों का क्षरण होता चला गया.  2017 के बाद स्थिति और बदतर हुई है.  आज के दौर में सरकार की हर सम्भव कोशिश है कि नागरिकों को आज्ञापालक बनाया जाए, समाज में साम्प्रदायिक जहर घोला जाए और कानून के राज की जगह ठोक दो की प्रशासनिक संस्कृति विकसित की जाए.  अमूमन राजनीतिक गतिविधियों को ठप कर दिया गया है.  शांतिपूर्ण धरने, प्रदर्शन, यात्रा और सम्मेलन तक की गतिविधियों पर किसी न किसी बहाने प्रतिबंध लगा दिया जाता है.  संविधान के मूल तत्व न्याय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए पहल लेना सरकार की नजर में असंवैधानिक हो गया है.  साम्प्रदायिक राजनीति का सबसे बड़ा शिकार लोकतंत्र ही हुआ है.  लोग राजनीतिक, सामाजिक कर्म से विमुख हो जाएं इसके लिए कठोर कानून बना दिए गए है.  इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020 है.  यदि आप सरकार के आलोचक हो तो आपको किसी आंदोलन में शरीक न होते हुए भी आंदोलन खड़ा करने के षडयंत्र के अभियुक्त के बतौर आईपीसी की धारा 120 बी के तहत गिरफ्तार कर महीनों जेल में रखा जा सकता है.  शारीरिक प्रताडना और सार्वजनिक रूप से बदनाम करने के साथ ही आपकी सम्पत्ति को जब्त करने की कार्यवाही इस वसूली अधिनियम के तहत हो सकती है.  स्वतंत्र भारत में आंदोलन के दमन का यह एक नया हथियार है.  इस तरह के कानून से नागरिक आमतौर पर भयभीत है.  जिसका प्रभाव उनकी राजनीतिक सामाजिक गतिविधियों पर पड़ रहा है.  गुण्डा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट जैसे काले कानूनों का भारी पैमाने पर दुरूपयोग हो रहा है.  याद रहे नागरिकता आंदोलन के दौर में ऐसे नागरिकों को जिन्हें सरकार ने अभियुक्त घोषित कर दिया था, के फोटो सार्वजनिक स्थानों पर लगा दिए गए थे.  जिसे उच्च न्यायालय ने भी अनुचित मानते हुए हटा देने का आदेश दिया था लेकिन न्यायालय के आदेश के बावजूद योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उन्हें नहीं हटाया.  इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं और नागरिक अधिकारों के बारे में इस सरकार का क्या रूख है.  लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करके और नागरिक अधिकारों की रक्षा करके ही प्रदेश में समावेशी विकास की गारंटी हो सकती है. 


सामाजिक न्याय और पंचायती राज


       सामाजिक न्याय के क्षेत्र में दो समुदाय आदिवासी और अति पिछड़ों का प्रतिनिधित्व अभी कम दिखता है.  यदि कोल जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कर लिया जाए तो आदिवासियों की आबादी प्रदेश में लगभग 25 लाख है.  यह विडम्बना है कि साढ़े सात लाख की आबादी वाले आदिवासी कोल को अभी तक जनजाति की सूची में शामिल नहीं किया गया.  जिसकी वजह से संसद में प्रदेश से किसी भी आदिवासी का प्रतिनिधित्व नहीं है.  नगर पंचायतों में इन्हें महज एक सीट दी गई है वह भी इटावा जिले के बकेवर नगर पंचायत में जहां एक भी आदिवासी नहीं है.  दूसरी बड़ी आबादी अति पिछड़ों की है उनका भी प्रतिनिधित्व आबादी के हिसाब से नौकरियों और पंचायतों में कम है.  उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.  पंचायतों में उनकी हिस्सेदारी की व्यवस्था बिहार माडल पर हो सकती है जिसमें अति पिछड़ों और महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व है.  जातीय जनगणना प्रदेश सरकार को भी कराना चाहिए. 

       सत्ता का विकेन्द्रीकरण भी एक प्रमुख जनवादी मांग रही है.  पंचायती राज व्यवस्था प्रदेश में जरूर कायम है लेकिन ये लोकतांत्रिक संस्थाएं नौकरशाही के भारी दबाव में है.  जिला पंचायतों के अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुखों के चुनाव में भारी पैमाने पर खरीद फरोख्त होती है.  यहां भी सीधे मतदान हो और लोग चुने जाए.  पंचायतों का जनतंत्रीकरण और चुने हुए प्रतिनिधियों की संस्थाओं का पूर्ण वित्तीय अधिकार सुनिश्चित करना होगा. 

       बड़ी संख्या में अदालतों में मुकदमें लम्बित हैं और बिना ट्रायल के ढेर सारे लोग जेल में बंद है.  त्वरित और सस्ते न्याय के लिए न्यायिक व्यवस्था पंचायतों तक विकसित करनी होगा और यदि मुकदमों का निस्तारण निचले स्तर पर न्यायिक पंचायतों से हो जाए तो सबसे बेहतर होगा. 

       इस समय पूरे प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 20.48 लाख करोड़ है.  उत्तर प्रदेश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार एक ट्रिलियन डालर यानी 80 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य लेकर काम कर रही है.  सरकार कहने को तो कुछ भी कह सकती है लेकिन सच्चाई यह है कि जिस ग्लोबल निवेश का सपना प्रदेश सरकार दिखा रही है उसमें न कोई प्रदेश में बड़ा निवेश करने आ रहा है और न ही उसके बूते प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है.  यह तथ्य नोट करने लायक है कि दुनिया में मंदी का दौर चल रहा है और हमारा प्रदेश भी उससे प्रभावित है.  मंदी से निपटने के लिए जरूरी है कि लोगों की आमदनी बढ़े जिससे उनकी खरीदने की क्षमता बढ़े यानी लोगों की क्रयशक्ति और बाजार में मांग बढ़ाई जाए.  अर्थशास्त्र की भाषा में कहे तो कारपोरेट को मदद देने वाली सप्लाई साइड इकनोमी यानी आपूर्ति आधारित अर्थव्यवस्था से सरकार पीछे हटें, आम लोगों को राहत देने वाली डीमांड साइड इकनोमी यानी मांग बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिले.  इसके लिए यह जरूरी है कि प्रदेश सरकार आर्थिक विकास की दिशा बदले कृषि, सूक्ष्म, लधु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा दें, किसानों की फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी की जाए, सब्जी के रखरखाव के लिए स्टोरेज बनाया जाए, रोजगार पैदा किया जाए, व्यापारियों के जीएसटी में कमी लाई जाए, ई कामर्स के बिजनेस का सही नियमन हो, डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए, ठेका मजदूरों व मानदेय कर्मियों को वेतनमान दिया जाए, पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल की जाए और स्वास्थ्य, शिक्षा पर खर्च बढ़ाया जाए तो ठहरी हुई अर्थव्यवस्था में गति आ सकती है.  सर्वाेपरि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा साम्प्रदायिक आधार पर समाज का विभाजन बंद करें और सदियों से लोगों में बने मैत्री भाव को नष्ट न करें.  सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध न लगाएं.  तब बेहतर लोकतांत्रिक वातावरण में उत्तर प्रदेश भी अपने अंतर्निहित क्षमताओं को विकसित कर सकता है और हर क्षेत्र में देश में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. 




उत्तर प्रदेश  एक नजर में

प्रदेष में उन सभी लोगों को जोड़ना है जो लोकतंत्र और समावेषी विकास के लिए एक साथ चल सके. 

लगभग 25 करोड़ जनसंख्या और 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेष के बारे में. . 

उत्तर प्रदेश (2011 की जनगणना के अनुसार)

क्षेत्रफल 240928 वर्ग किमी जनसंख्या घनत्व 829 प्रति वर्ग किमी.   

कुल जनसंख्या 199812341 पुरूष 104480510 महिला 95331831

ग्रामीण जनसंख्या 155317278

नगरीय  4449563

अनुसूचित जाति 41357608, जनजाति 1134273. 

कुल ब्लाक 827 व कुल ग्राम पंचायतें - 59168 (स्रोत- मनरेगा की बेवसाइट से)

नगर निगम - 17, नगर पालिका - 199, नगर पंचायतें - 544

कुल पुलिस जोन - 8, पुलिस आयुक्त -07  

(स्रोत- यूपी पुलिस की बेवसाइट से)

प्रदेश की प्रमुख भाषा हिन्दी (94.08 प्रतिशत) व उर्दू (5.42 प्रतिशत) है. 

प्रदेश में धर्मों के अनुसार जनसंख्या

हिन्दू-159312654 (79.7 प्रतिशत), मुस्लिम-38483967 (19.3 प्रतिशत), ईसाई-356448 (00.2 प्रतिशत), सिक्ख-643500(00.3 प्रतिशत), बौद्ध-206285 (00.1प्रतिशत), जैन-213267(00.1 प्रतिशत), अन्य तथा अवर्णित धर्म-596220 (00.3 प्रतिशत)

प्रदेश में प्रमुख अनुसूचित जनजातियां - गोंड़, खरवार, चेरो, बैगा, भुईयां, पनिका, पठारी, अगरिया, सहरीया, पराहिया, थारू, बोक्सा, भोटिया, राजी, जौनसारी.  आदिवासी कोल की आबादी लगभग साढे सात लाख है फिर भी उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची में अभी तक नहीं रखा गया है.  प्रदेश की सभी सरकारों का रूख उनके प्रति न्याय सम्मत नहीं रहा है. 

साक्षरता दर 57.2 प्रतिशत

नोट:- 2021 में प्रदेश में जनगणना होनी थी लेकिन हुई नहीं इसलिए 2011 की जनगणना के अनुसार ये आंकड़ें दिए गए है.   


जमीन का वितरण उत्तर प्रदेश में


कुल जोतें 2.38 करोड़, क्षेत्रफल 1.74 करोड़ हेक्टेयर

1 हेक्टेयर से कम 1.91 करोड़ 80.2 फीसद  क्षेत्रफल 0.73 करोड़ हेक्टेयर 41.8 फीसद. 

1-2 हेक्टेयर 0.30 करोड़, 12.6 फीसद  क्षेत्रफल 0.42 करोड़ हेक्टेयर 23.9 फीसद. 

2-4 हेक्टेयर 0.13 करोड़  5.5 फीसद  क्षेत्रफल 0.66 करोड़  हेक्टेयर 20.4 फीसद. 

4-10 हेक्टेयर 3.77 लाख 1.6 फीसद क्षेत्रफल 0.21 करोड़  हेक्टेयर 11.9 फीसद. 

10 हेक्टेयर से ज्यादा 23 हजार 0.1 फीसद  क्षेत्रफल 3.43 लाख हेक्टेयर 2 फीसद. 


सीमांत किसान 1.91 करोड़

लधु 30.08 लाख

कृषि श्रमिक 97.50 लाख

(स्रोत- राजस्व परिषद् उत्तर प्रदेश एवं भारतीय जनगणना 2011)


भूमि उपयोग 2018-19 (स्रोत- कृषि सांख्यिकी एवं फसल निदेशालय उत्तर प्रदेश)

समग्र क्षेत्रफल  2.42 करोड़ हेक्टेयर

वास्तविक बोया गया क्षेत्रफल 1.65 करोड़ हेक्टेयर

एक से अधिक बोया गया क्षेत्रफल 1.03 करोड़ हेक्टेयर

वन  17.15 लाख हेक्टेयर

ऊसर और खेती के अयोग्य 4.82 लाख हेक्टेयर

स्थायी चारागाह एवं अन्य चराई की भूमि 70 हजार हेक्टेयर

अन्य वृक्षों, झाड़ियों आदि की भूमि 2.69 लाख हेक्टेयर

वर्तमान परती 9.87 लाख हेक्टेयर

अन्य परती 5.94 लाख हेक्टेयर

शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल से शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल 1.43 करोड़ हेक्टेयर है. 

नहर से 21.74 लाख हेक्टेयर (15.2 प्रतिशत), नलकूप 1.06 करोड़ हेक्टेयर (74.6 प्रतिशत) इसमें राजकीय नलकूप की संख्या 34401, कुएं 12.58 लाख हेक्टेयर (8.8 प्रतिशत), तालाब एवं झील आदि 86 हजार हेक्टेयर (0.6 प्रतिशत), अन्य 1.14 लाख (0.8 प्रतिशत)

लगभग 13 प्रतिशत खेती मानसून पर अभी भी पूरी तौर पर निर्भर है. 


(नोट- प्रदेश में सिंचाई का मुख्य साधन निजी नलकूप हैं, नहर सिंचाई व्यवस्था में दशकों से कोई प्रगति नहीं है.  वैसे नहरें लम्बी है और प्रदेश में इनका विस्तार भी है लेकिन साफ सफाई, मरम्मत और पक्के निर्माण के अभाव में सिंचाई का काम बाधित होता है और आमतौर पर किसानों की शिकायत रहती है कि टेल तक पानी ही नहीं पहुंचता.  सिंचाई की समस्या उत्तर प्रदेश के किसानों की एक मुख्य समस्या है)


2020 जलवायु व वर्षा


उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी. है, मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 94 सेमी है, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी मैदानी क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 84 सेमी है.  प्रदेश के बुदेलखण्ड़ में औसत वार्षिक वर्षा 80 सेमी है लेकिन इधर के वर्षों में बरसात में गिरावट दिखी है. 


वनाधिकार कानून के तहत जिलावार दावों और भूमि आवंटन की स्थिति

(स्रोत - जनजाति कल्याण निदेशालय, उत्तर प्रदेश द्वारा 2019 में प्राप्त)


चित्रकूट - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के -858

          स्वीकृत दावे व्यक्तिगत- 140 सामुदायिक -8

          निरस्त दावे - व्यक्तिगत-668 सामुदायिक -42

          आंवटित कुल जमीन - 163.880 एकड़

सोनभद्र - कुल दावें अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत 32431, सामुदायिक-769 अन्य परम्परागत वन निवासियों के 32340

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 11251, सामुदायिक - 769

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 21180, अन्य परम्परागत वन निवासियों -32340

          आंवटित कुल जमीन - 132483.378 एकड़

मिर्जापुर - कुल दावें अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत 266, अन्य परम्परागत वन निवासियों के 3147

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 67, अन्य परम्परागत वन निवासियों -218

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 199, अन्य परम्परागत वन निवासियों -2929

          आंवटित कुल जमीन - 222.490 एकड़

चंदौली - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के- 14000, सामुदायिक - 72

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 72, सामुदायिक - 18

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 13928, सामुदायिक - 54

          आंवटित कुल जमीन - 352.895 एकड़

बहराइच - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के 1007, सामुदायिक - 19

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 93, सामुदायिक - 19

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 924

            आंवटित कुल जमीन - 313.878 एकड़

बलरामपुर- कुल दावें अनुसूचित जनजाति के - 159

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - 121

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - 38

          आंवटित कुल जमीन - 398.310 एकड़

ललितपुर- कुल दावें अनुसूचित जनजाति के 1917, सामुदायिक - 211

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - 832, सामुदायिक - 28

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - 1139, सामुदायिक - 183

          आंवटित कुल जमीन - 559.395 एकड़

लखीमपुर खीरी - कुल दावें अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत 844, सामुदायिक-20 अन्य परम्परागत वन निवासियों के 102

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 475, अन्य परम्परागत वन निवासियों के - 90

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत- 369, अन्य परम्परागत वन निवासियों -12

आंवटित कुल जमीन - 772.783 एकड

गोरखपुर - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के 561, सामुदायिक - 02

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 501

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 60, सामुदायिक - 02

          आंवटित कुल जमीन - 226.769 एकड़

महाराजगंज - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के - 3956, सामुदायिक - 18

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 3796, सामुदायिक - 18

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 160

          आंवटित कुल जमीन - 265.841 एकड़

गोण्डा - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के 162, सामुदायिक - 01

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 157, सामुदायिक - 01

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 05

          आंवटित कुल जमीन - 47.200 एकड़

बिजनौर - कुल दावें अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत 47, अन्य परम्परागत वन निवासियों के - 05

स्वीकृत दावे:- अनुसूचित जनजाति - व्यक्तिगत - 47 लम्बित है. 

निरस्त दावे - अनुसूचित जनजाति - 00, अन्य परम्परागत वन निवासियों -05

आंवटित कुल जमीन - 00 एकड

सहारनपुर - कुल दावें अन्य परम्परागत वन निवासियों के - 462

स्वीकृत दावे:- अन्य परम्परागत वन निवासियों - 151

निरस्त दावे - अन्य परम्परागत वन निवासियों - 311

          आंवटित कुल जमीन - 40.680 एकड़

उत्तर प्रदेश - कुल दावें व्यक्तिगत- 92268, सामुदायिक- 1162, कुल दावे-93430

स्वीकृत दावे:- व्यक्तिगत - 17964, सामुदायिक- 861, कुल दावे-18825

निरस्त दावे - व्यक्तिगत- 74257, सामुदायिक- 281, कुल दावे-74538

             आंवटित कुल जमीन - 135587.66 एकड़

नोट- अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वन निवासियों के अधिकांश दावे निरस्त कर दिए गए यानी 93430 दावों में 74538 दावे अभी तक निरस्त कर दिए गए है.  ढेर सारे दावों का निस्तारण भी नहीं हुआ है. 


सहकारिता


प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समितियां 2020-21

संख्या 7479

सदस्यता 13369 हजार

अंश पूंजी 86844 लाख रुपए

अल्पकालीन वितरित ऋण 708559 लाख रुपए

नकद 596741 लाख रुपए

वस्तु के रूप में 111818 लाख रुपए


शीर्ष सहकारी समितियां.  शीर्ष सहकारी समितियों में उ0 प्र0 कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड़, उ0 प्र0 कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड़, उ0 प्र0 सहकारी ग्राम विकास बैंक, उ0 प्र0 राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड़, उ0 प्र0 राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी लिमिटेड़, यूपी कोआपरेटिव यूनियन लिमिटेड़, उ0 प्र0 उपभोक्ता सहकारी संघ लिमिटेड़ आदि आते है. 

ऋण समितियां

संख्या 2 सदस्यता 1457 हजार

गैर ऋण समितियां

संख्या 7 सदस्यता 5 हजार


उत्तर प्रदेश में सहकारी बैंकों की प्रगति


उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड

संख्या 1 सदस्यता 61

उत्तर प्रदेश सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक

संख्या 1 सदस्यता 1457 हजार

जिला केंद्रीय सहकारी बैंक

संख्या 50 सदस्यता 20 हजार

(स्रोत- आयुक्त एवं निबंधक, सहकारिता विभाग उत्तर प्रदेश)


प्रारंभिक सहकारी दुग्ध समितियां

संख्या 8578 सदस्यता 3.70 लाख

दुग्ध संघों एवं संस्थाओं की अंश पूंजी 11104 लाख रुपए

दुग्ध संघों के माध्यम से दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का विक्रय

दुग्ध 78662 लाख रुपए

दुग्ध उत्पाद 13060 लाख रुपए

(स्रोत- दुग्ध आयुक्त उत्तर प्रदेश)


बैंकिंग/वित्तीय 31.3.2021

बैंक कार्यालय

उत्तर प्रदेश - 17666 प्रति बैंक कार्यालय में जनसंख्या 13 हजार

भारत - 150207 प्रति बैंक कार्यालय में जनसंख्या 9 हजार

अनुसूचित व्यवसायिक बैंकों का ऋण जमा एवं उनका अनुपात

ऋण 525691 करोड़ जमा 1287176 करोड़

अनुपात 40.84 फीसद

(स्त्रोत- संस्थागत वित्त बीमा एवं वाह्य अनुदानित परियोजना महानिदेशालय, उत्तर प्रदेश)

आॅगनाइजेशन फार इकोनामिक को आपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट के अनुसार देश में 2000 से 2016-17 के बीच किसानों को उनकी फसल का उचित दाम न मिलने से 45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है. 

एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2012-13 में किसान अपनी कुल कमाई का करीब 50 फीसदी हिस्सा जुटाता था.  लेकिन जुलाई 2018 से जून 2019 और जनवरी 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच हुए नए सर्वे के अनुसार अब फसलों की कमाई का योगदान 37 फीसदी रह गया है.  यह रिपोर्ट तब आयी है जब 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने की बड़ी बातें हो रही थी. 

उत्तर प्रदेश के किसान परिवार की मासिक आमदनी 8061 रूपये

राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय 10218 रूपये है. 

(स्रोत- एनएसओ रिपोर्ट 2019)

(नोट - 2013 की एनएसओ रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में एक किसान परिवार की मासिक औसत आय सिर्फ 4,923 रुपये है.  यह राष्ट्रीय स्तर पर किसान परिवारों की औसत प्रति व्यक्ति आय 6,223 रुपये का लगभग तीन चैथाई है.  पंजाब में किसानों की 13,311 रुपये, केरल और हरियाणा के किसान 11,008 रुपये और 10,637 रुपये थी.  जबकि बिहार 5,485 रुपये और पश्चिम बंगाल में 5,888 रुपये से भी उत्तर प्रदेश में किसानों की आय कम थी. )


    उत्तर प्रदेश का चीनी में 30 प्रतिशत, खाद्यान्न 21 प्रतिशत, फल 10.8 प्रतिशत, सब्जी उत्पादन में 15.4 प्रतिशत, दुग्ध उत्पादन व डेयरी में 16 प्रतिशत उत्पादन में योगदान है.  राष्ट्रीय कृषि निर्यात में उत्तर प्रदेश का योगदान 7.35 प्रतिशत है.  जब कि देश के कुल निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 4.73 प्रतिशत है.  इसमें प्रमुख उत्पादों में गेहूं 37.88 प्रतिशत, भैंस मांस 50.34 प्रतिशत, प्राकृतिक शहद 26.59 प्रतिशत, ताजे आम 4.12 प्रतिशत, अन्य ताजे फलों में 15.84 प्रतिशत, दुग्ध उत्पाद 13.31 प्रतिशत, गैर बासमती चावल 4.02 प्रतिशत, बासमती चावल 3.21 प्रतिशत, पुष्प कृषि उत्पाद 0.57 प्रतिशत, प्रसंस्कृत फलों और मेवे आदि 0.51 प्रतिशत कुल निर्यात में योगदान है.  2021-22 में कृषि एवं संबद्ध उत्पादों का निर्यात 50.2 बिलियन डालर पहुंच गया है.  प्रदेश में कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 26 प्रतिशत है जब कि कृषि पर जीविका के लिए आबादी का करीब 60 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है. 

      कृषि आधारित उद्योगों में प्रमुख रूप से चीनी मिल हैं.  इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से लेकर अन्य तमाम तरह के कृषि आधारित उद्योग की संख्या बेहद सीमित हैं.  खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से लेकर अन्य कृषि आधारित उद्योगों को सहकारी समितियों के माध्यम से स्थापित करने की पर्याप्त संभावनाएं हैं बशर्ते सरकार इसके लिए नीति बनाये और इसके लिए बुनियादी ढांचा का निर्माण व बाजार उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे.  इससे रोजगार के बड़े पैमाने पर अवसर पैदा होंगे जिससे बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान किया जा सकता है और निचले पायदान पर अवस्थित लोगों की आय में भी गुणात्मक रूप से बढ़ोतरी होगी.  लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कृषि संबद्ध गतिविधियों हेतु निजी क्षेत्र पर निर्भर होने की नीति ली गई है.  इसलिए प्रदेश में कहीं से भी कृषि आधारित उद्योगों को सरकार द्वारा स्थापित करने की रिपोर्ट नहीं है.  उदाहरण के लिए सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली में टमाटर व मिर्ची प्रसंस्करण उद्योग लगाया जा सकता है जिससे दसियों हजार युवाओं को प्रत्यक्ष रोजगार एवं हजारों लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिल सकता है.  इसी तरह आगरा-फरूर्खाबाद आलू बेल्ट में आलू प्रसंस्करण उद्योग लगा कर

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