खतरनाक है सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव

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खतरनाक है सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! मोदी हुकूमत और सुप्रीम कोर्ट के दरम्यान जजों की तकर्रूरी के लिए बने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम पर जिस तरह का टकराव सरकार और सुप्रीम कोर्ट के दरम्यान हो गया है.  वह देश, संविधान और अदलिया (न्यायपालिका) सभी के लिए इंतेहाई खतरनाक है.  सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के जरिए सरकार को जजों की तकर्रूरी के लिए भेजे गए, बीस नामों में से सरकार ने अट्ठारह नाम वापस कर दिए थे.  अट्ठारह में आठ ऐसे नाम थे जोे कोलेजियम ने सरकार को दूसरी बार भेजे थे.  कोलेजियम कानून के मुताबिक अगर सुप्रीम कोर्ट कोई नाम दोबारा भेज दे तो सरकार के लिए उसे तस्लीम करना लाजिमी हो जाता है.  लेकिन सरकार ने इसकी फिक्र नहीं की.  उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोलेजियम सिस्टम इस देश का कानून है, मरकजी हुकूमत को उसे मानना ही होगा.  अदालत ने यह भी कहा था कि सरकार हमें कोई आर्डर करने पर मजबूर न करे.  सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती के जवाब में मरकजी वजीर कानून किरण रिजिजू ने राज्य सभा में कहा कि कोलेजियम की जगह जजों की तकर्रूरी के लिए कोई नया सिस्टम लागू होने तक हमारी सरकार जजों की तकर्रूरी नहीं करेगी.  उन्होने यह माना कि देश के हाई कोर्टों में तीस फीसद जज कम हैं.  लेकिन हम इस तरह नए जजों की तकर्रूरी नहीं करेंगे.  याद रहे कि मरकज में मोदी सरकार आने के बाद कोलेजियम सिस्टम की जगह नेशनल ज्यूडीशियल अपवाइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) बनाने का एक बिल पार्लियामेंट में पास हुआ था, लेकिन उस वक्त के चीफ जस्टिस की कयादत में बनी पांच जजों की कांस्टीट्यूशनल बेंच ने चार-एक की अक्सरियत से एनजेएसी को रद्द कर दिया था.  तभी से मोदी हुकूमत और सुप्रीम कोर्ट के दरम्यान यह टकराव चल रहा है. 

मरकजी सरकार के वजीर कानून रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि वजीर कानून किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट पर जो बयान दिया है वह पूरी तरह गलत है.  कोलेजियम सिस्टम में कुछ मामूली तब्दीलियां तो की जा सकती हैं लेकिन उसे पूरी तरह खारिज करके सरकार को जजों की शक्ल में भगवा ब्रिगेड के लोगों को बिठाने की भी इजाजत नहीं दी जा सकती.  उन्होने कहा कि मोदी सरकार ने सभी निचली अदालतों पर तो कब्जा कर ही लिया है अब वह ‘हायर ज्यूडीशियरी’ को निशाना बना रही है वह आजादी के आखिरी बचे हुए संवैधानिक गढ पर भी कब्जा करना चाहती है.  उन्होने कहा कि पूरे देश के हाई कोर्टों में एक-तिहाई जजो के ओहदे खाली पड़े हैं पेंडिंग (जेरे समाअत) मुकदमात की तादाद पांच करोड़ से ज्यादा हो चुकी है लेकिन सरकार कोलेजियम की सिफारिश पर जजों की तकर्रूरी करने के लिए तैयार नहीं है. 

राज्य सभा में गुजिश्ता दिनों वजीर कानून किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट तक पर सख्त कमेण्ट करते हुए कहा था कि देश में पेंडिंग मुकदमात की तादाद बेतहाशा बढ रही है, लेकिन कोलेजियम की जगह कोई नया सिस्टम लागू होने तक हम जजों की तकर्रूरी नहीं करने वाले.  उन्होने कहा कि देश और पार्लियामेंट के जज्बात के मुताबिक बने एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया, ऐसा करके सुप्रीम कोर्ट ने पार्लियामेंट की बालादस्ती (वर्चस्व) को ही खत्म करने की कोशिश की.  उन्होने जजों को नौकरी के दौरान और रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सहूलतों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि जितनी सहूलतें रिटायर्ड जजों को मिलती हैं उतनी तो मुल्क के वजीरों को भी नहीं मिलती.  किरण रिजिजू ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी छुट्टियों पर गौर करना चाहिए.  पीआईएल और जमानत के मामलात सुनने के बजाए जल्द से जल्द पेंडिंग पड़े मामलात को निपटाना चाहिए.  इससे पहले किरण रिजिजू लोक सभा में भी सुप्रीम कोर्ट पर इसी तरह सख्त बयानबाजी कर चुके हैं. 

मरकजी वजीर कानून किरण रिजिजू के राज्य सभा में दिए गए बयान पर ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को बहुत नागवार गुजरा है.  शायद इसीलिए अदालते आलिया ने सर्दियों की छुट्टियों से ठीक पहले जमानत का एक मुकदमा सुना और फैसला दिया.  साथ ही चीफ जस्टिस आफ इंडिया जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ ने एलान किया कि सत्रह दिसम्बर से पहली जनवरी तक सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टियां रहेगी और इस दौरान कोई ‘वोकेशन बेंच’ भी नहीं बनाई जाएगी.  अब तमाम मामलात की सुनवाई पहली जनवरी से ही होगी.  किरण रिजिजू ने कहा था कि अदालतों में लम्बी छुट्टियां इंसाफ की उम्मीद करने वालों के लिए परेशानी का सबब बनती है.  सर्दियों की छुट्टियों में ‘वोकेशन बेंच’ का न बनना कोई नई बात नहीं है, क्योकि ‘वोकेशन बंेच’ आम तौर पर गर्मियों की छुट्टियों में ही बनाई जाती हैं.  इससे पहले भी मोदी सरकार के वजीर कानून अदालती छुट्टियों पर सवाल उठा चुके हैं.  तब के चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा था कि यह ख्याल गलत है कि जज लोग आराम से रहकर छुट्टियों का मजा लेते हैं.  जज लोग आम तौर पर हमेशा काम ही करते रहते हैं. 

मोदी हुकूमत और उसके वजीर कानून किरण रिजिजू चाहते हैं कि जजों की तकर्रूरी का मामला पूरी तरह सरकार के हाथों में आ जाए ताकि वह अपनी मर्जी से अपनी जेहनियत वाले लोगों केा हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक में बिठा सकें.  पार्लियामेंट के पिछले इजलास में लोकसभा में किरण रिजिजू ने साफ तौर पर कहा था कि हम उन्हीं लोगों को जज बनाएंगे जो हमारे नजरियात (विचारधारा) के होंगे.  कोलेजियम के जरिए भेजे गए नामों के बैकग्राउण्ड का अच्छी तरह से पता लगाए बगैर हम किसी भी नाम को मंजूरी नहीं दे सकते.  बीएसपी मेम्बर कुंवर दानिश अली ने फौरन ही उन्हें टोकते हुए कहा कि आप अपने नजरियात के लोगों को ही जज बनाना चाहते हैं.  लेकिन आपके नजरियात तो आरएसएस के हैं जो मुल्क के लिए मुनासिब नहीं हैं.  इसपर किरण रिजिजू ने कहा था कि हमारी आयडियालोजी वही है जो आयडियालोजी इस देश की है.  इसलिए इसपर कोई समझौता नहीं हो सकता.  अब देखना यह है कि सर्दियों की छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट का क्या रवैय्या रहता है. 

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