आखिर दोषी कौन है?
आलोक कुमार
बेतिया.ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया...बेतिया क्रिश्चन क्वार्टर के ईसाई लोग सिस्टर्स ऑफ मर्सी ऑफ द होली क्रॉस द्वारा संचालित
संत रीता बुनाई घर से मोहब्बत करने लगे थे.बेतिया में उक्त संस्था द्वारा स्थापित संत रीता बुनाई घर को 92 साल की मोहब्बत का अंजाम संत रीता बुनाई घर को बंद कर देने से कार्यरत कर्मी को आज भी रोना आ रहा है.
बता दें कि सिस्टर्स ऑफ मर्सी ऑफ द होली क्रॉस की कलीसिया की स्थापना फादर थियोडोसियस फ्लोरेंटिनी ओएफएम कैप ने की थी.नवंबर 1894 में, होली क्रॉस सिस्टर्स के दूसरे जनरल सुपीरियर, सिस्टर Pankratia Widmer ने चार यूरोपीय सिस्टर्स को भारत भेजा. इन साहसी करिश्मे वाली बहनों ने भारत की धरती पर उतरी.
इससे जुड़े संस्थापकों का लंबे समय से पोषित सपना 1894 में भारत में साकार हुआ, जब चार होली क्रॉस सिस्टर्स पहले मिशनरियों के रूप में बेतिया, उत्तरी बिहार में आए. 18 नवंबर 1894 एक नए अध्याय के उद्घाटन को चिह्नित करने के लिए एक मील का पत्थर था.इस दिन हमारे पहले मिशनरी सिस्टर लैम्बर्टा फ्लेम, सिस्टर पैट्रोना बिचलर, सिस्टर मिशेलिना श्रोट और सिस्टर क्राइसोगोना थोमा बॉम्बे में उतरे और पूर्वोत्तर की यात्रा की और 22 नवंबर 1894 को बेतिया पहुंचे. उन्हें टायरोलियन कैपुचिन्स द्वारा आमंत्रित किया गया था.बेतिया में एक अनाथालय की देखभाल करना था.
बताया गया कि शुरू से ही चार यूरोपीय बहनें अनाथों के बारे में चिंतित रहती थीं.यहां पर आकर लड़कियों को पढ़ना-लिखना सिखाया, उन्हें घर का काम करना सिखाया, उन्हें अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों के पास जाने का महत्व दिखाया, और मरने वालों से कैसे निपटा जाए . फिर बहनों ने पुजारियों द्वारा स्थापित पहले से मौजूद संत रीता के "बुनाई स्कूल" को अपनाया, जो गरीब महिलाओं के समर्थन के लिए था. 1930 से सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, मोमबत्ती बनाने, कपड़े धोने आदि के पेशेवर तरीके सीखने के माध्यम से, कई महिलाओं को उनके परिवारों के साथ कुछ आय और एक बेहतर जीवन मिलता था.इतना जानने के बाद भी संत रीता के "बुनाई स्कूल" को 2015 में बंद कर दिया गया.यह कहा गया कि इसे चलाने वाला कोई नहीं है.
यहां बता दें कि वर्ष 1922 में लड़कियों के लिए बेतिया में संत टेरेसा स्कूल और एक शिक्षक प्रशिक्षण स्कूल शुरू किया गया . 1938 से, सेंट टेरेसा स्कूल अपनी 2200 छात्राओं के साथ, एक ऐसा स्कूल रहा है जिसकी बहुत मांग है.इस स्कूल में 13 बहनों का समुदाय काम करता है.
बेतिया पैरिश कैंपस में संत रीता के "बुनाई स्कूल" संचालित था.इसे बेतिया के लोग मशीन घर भी कहते थे.इसमें बेतिया के क्रिश्चन क्वार्टर के अधिकांश ईसाई महिलाए कार्यरत थी.सिस्टर्स ऑफ मर्सी ऑफ द होली क्रॉस के द्वारा बाद में चर्च से संबधित कपड़े,फादर के हैबिट आदि सब बनाये जाते थे.इसके अलावे मिशनरी स्कूल के कपड़े, टाई, बेल्ट, स्पोर्ट्स ड्रेस आदि बनाया जाता था.इसमें लगभग 60 लोग कार्यरत थे.
कहा जाता है कि संत रीता के "बुनाई स्कूल" को बंद करके अब उसी बिल्डिंग में स्कूल खोला गया है.बंद कर देने से ज्यादातर कर्मी आज भी बेरोजगार है. क्योंकि उन्हें किसी जगह फेविकोल से चिपका नहीं दिया गया.इसके कारण सभी लोग इस समय मुश्किल से अपनी ज़िंदगी चला रहे हैं
जानकार लोगों का कहना है कि सिस्टर्स ऑफ मर्सी ऑफ द होली क्रॉस के द्वारा संचालित संत रीता के "बुनाई स्कूल" को बंद करके ईसाइयों के साथ नाइंसाफी कर दी गयी.आज मशीन घर के सारे काम या कहूं तो इससे अधिक ही काम एक गैर ईसाई द्वारा संचालित रॉयल फैशन वेयर को दे दिया गया है.आज रॉयल फैशन वेयर से के.आर.हाई स्कूल, संत जेवियर हाई स्कूल सदृश्य 5 स्कूलों के ड्रेस रॉयल फैशन वेयर से लेना अनिवार्य कर दिया गया है.इस धंधे में रॉयल फैशन वेयरकी मोनोपॉली है क्योंकि मिशनरी स्कूलों का संरक्षण प्राप्त है.
आज यह हाल है कि रॉयल फैशन वेयर के बल पर क्रिश्चन क्वार्टर में जमीन खरीद कर अपना बड़ा स्टोर बना रहा है. जिससे कई ईसाइयों को परेशानी हो रही है. अब ईसाई समुदाय यह सवाल पूछ रहे है कि आखिरकार संत रीता के "बुनाई स्कूल" को बंद कर रॉयल फैशन वेयर से कीमत लेकर शटर गिराया गया. बुनाई स्कूल को बंद कर देने से बेरोजगार हुए लोगो की रोजगार की व्यवस्था क्यों नहीं की गई.आज यह रॉयल फैशन वेयर ईसाई मिशनरी स्कूलों से ही कमाकर क्रिश्चन क्वार्टर में जमीन खरीदते चला जा रहा है और ईसाइयों के लिए परेशानी का कारण बनता जा हैं.आखिर दोषी कौन है?
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